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ग़रीबी ने ग़रीबों से यहाँ क्या क्या कराया है
कभी भूखा सुलाया है कभी रोज़ा कराया है
ये जो पानी मेरी आँखों से गिरता है मेरे यारों
भरी महफ़िल मे इसने भी तो शर्मिंदा कराया है
बहुत खूब। आपको पहली बार पढ़ा। अच्छा लगा।
महल वालों से उम्मीदें रखी हमने नहीं यारों
कराया जब भी इन्होने धोखा ही तो कराया है
में कुछ ध्यान भटक गया लगता है।
बेहतरीन मतला मुबारक बाद।
महल वालों से उम्मीदें वाले शेर की दूसरी पंक्ति में काफ़िया
आगे चला गया है ( कराया जब भी यारों ,बा अदब धोखा कराया है)
मज़ा आता है अब आँखों के आँसू को भी पीने मे
इसे भी सच की शक्कर से थोडा मीठा कराया है
वाह वाह वाह , बहुत खूब पल्लव, अच्छी ग़ज़ल कही है , बधाई आपको |
पल्लव भाई बहुत खूब
आपका कलाम निरंतर पुख्ता होता जा रहा है| इस बार भी कई अशार ध्यान खींचने में सक्षम रहे हैं
खुदा ही जाने क्या होगा मेरे इस देश का अब तो
वहाँ दिल्ली मे कुछ चोरों से ही पहरा कराया है
बहुत अच्छा शेर है
और गिरह का शेर तो ..आय हाय ...जैसे लगता है कि मिसरा -ए- ऊला इसी मिसरा-ए-सानी के लिए बना हो ..लाजवाब| आपको बहुत बहुत बधाई|
और भाई साहब कहाँ गुम हो जाते हो ..कुछ तो हाल खबर दे दिया करो|
वाह मतले से मकते तक का सुहाना सफर क्या लाजवाब रहा
हर शेर बार बार पढ़ने को मजबूर कर रहा है
बहुत खूब
waah pallv ji, bahut khoob. achcha laga apka kalaam.
kuchh bin maangi salah dena chaahunga, kshama-yachna ke sath:
मज़ा आता है अब आँखों के आँसू को भी पीने मे
इसे भी सच की शक्कर से थोडा मीठा कराया है
yahaan aap "thoda" ki jagah "zara" likhte to mujhe zyada samajh aata.
महल वालों से उम्मीदें रखी हमने नहीं यारों
कराया जब भी इन्होने धोखा ही तो कराया है
yahaan "dhokha hi to" ki jagah "faqat dhokha" hota to main zyada achchi tarah samajh paata.
BAAQI, KUL MILAAKAR MAZA AYA. BADHAAI.
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