For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ख़ुदा की खोज में निकले जो, राम तक पहुँचे (ग़ज़ल)

बह्र : 1212 1122 1212 22

 

प्रगति की होड़ न ऐसे मकाम तक पहुँचे

ज़रा सी बात जहाँ कत्ल-ए-आम तक पहुँचे

 

गया है छूट कहीं कुछ तो मानचित्रों में

चले तो पाक थे लेकिन हराम तक पहुँचे

 

वो जिन का क्लेम था उनको है प्रेम रोग लगा

गले के दर्द से केवल जुकाम तक पहुँचे

 

न इतना वाम था उनमें के जंगलों तक जायँ

नगर से ऊब के भागे तो ग्राम तक पहुँचे

 

जिन्हें था आँखों से ज़्यादा यकीन कानों पर

चले वो भक्त से लेकिन गुलाम तक पहुँचे

 

वतन कबीर का जाने कहाँ गया के जहाँ

ख़ुदा की खोज में निकले जो, राम तक पहुँचे

--------

(मौलिक एवंं अप्रकाशित)

Views: 712

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 21, 2016 at 7:18pm

शुक्रिया आदरणीय आशुतोष मिश्र जी 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 21, 2016 at 7:17pm

शुक्रिया आदरणीय सुरेंद्र नाथ जी

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 16, 2016 at 11:27pm
हार्दिक बधाई धर्मेन्द्र जी
Comment by नाथ सोनांचली on December 15, 2016 at 2:46am
आदरणीय धर्मेन्द्र सिंह जी सादर अभिवादन, इस बेहतरीन गजल के लिए दाद के साथ बधाई निवेदित हैं।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 14, 2016 at 10:18pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रवि शुक्ला जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 14, 2016 at 10:18pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सोमेश जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 14, 2016 at 10:17pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथिलेश जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 14, 2016 at 10:17pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर साहब। आप की बात ठीक है प्रगति उच्चारण के अनुसार 111 हो रहा है इससे लयभंग की स्थिति उत्पन्न हो रही है। ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद

Comment by Ravi Shukla on December 14, 2016 at 1:39pm

आदरणीय घमेंन्‍द्र सिंंह जी बहुत बहुत बधाई इस बढि़या गजल के लिये 

Comment by Mahendra Kumar on December 14, 2016 at 9:42am
जिन्हें था आँखों से ज़्यादा यकीन कानों पर
चले वो भक्त से लेकिन गुलाम तक पहुँचे ...बहुत ख़ूब आदरणीय धर्मेन्द्र जी। इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई। सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service