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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-17 (विषय: विरासत)

आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के पिछले 16 आयोजनों की अपार सफ़लता के बाद "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक 17  में आपका हार्दिक स्वागत हैI प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-17
विषय : "विरासत"
अवधि : 30-08-2016 से 31-08-2016 
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 30 अगस्त 2016 लगते ही खोल दिया जायेगा)
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अति आवश्यक सूचना :-
१. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
२. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
३. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
४. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
५. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी लगाने की आवश्यकता नहीं है।
६. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
७. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
८. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
९. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं। रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें।
१०. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
११. रचना/टिप्पणी सही थ्रेड में (रचना मेन थ्रेड में और टिप्पणी रचना के नीचे) ही पोस्ट करें, गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी बिना किसी सूचना के हटा दी जाएगी I
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीय विजय जी. 

अफ़सरसाही की परम्परा को सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है. सादर.

आदरणीय सुभ्रांशु पांडेय जी , आपको रचना पसंद आई , आपका ह्रदय से आभार एवम धन्यवाद , सादर।
यह विरासत भी खूब है । अफसरों की विरासत । हार्दिक बधाई आदरणीय ।
जी मैंने सोचा उस विरासत के बारे में लिखूं जो बड़े पैमाने पर देश और लोगों को क्षति पहुंचा रही है। सोचें तो आप को भी लगेगा कि विरासत में मिली बुराइयां हमें कितनी क्षति पहुंचा रहीं हैं और जो इसे भोग रहे हैं उनका कोई नुक्सान नहीं होता है , वे उसे विरासत में मिली सम्पदा की तरह संजोये हुए हैं।
आपकी उपस्थिति और विश्लेषण के लिए आभार एवम धन्यवाद , आदरणीय सुश्री कल्पना भट्ट जी , सादर।

हरामखोर अफसरशाही की विरासत का बहुत सजीव चित्रण हुआ है आ० डॉ विजय शंकर जी, लघुकथा सार्थक और विषयानुरूप हुई है जिस हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित हैI (शब्दों के मध्य अनावश्यक गैप हालाकि बदमज़गी पैदा कर रहा है)  

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी , आपकी पारखी नज़र से क्या बच सकता है , आपकी उपस्थिति और विश्लेषण के लिए ह्रदय से आभार एवम धन्यवाद , सादर।

आज की भ्रष्ट अफसरशाही की फलती फूलती आगे बढ़ती विरासत पर अच्छा व्यंग किया है आद० विजय शंकर जी हार्दिक बधाई आपको |

आदरणीय राजेश कुमारी जी , आपको रचना और व्यंग पसंद आया , आपका ह्रदय से बहुत बहुत आभार एवम धन्यवाद , सादर।

नौकरशाही की ये विरासत  सरकार दर सरकार  चलती ही आ रही है सालों से और आगे भी ले जाई जायेगी ये निश्चित है .. विरासत विषय को परिभाषित करती सार्थक कथा के लिए बधाई प्रेषित है आदरणीय ...सादर 

आदरणीय सुश्री प्रतिभा पांडे जी , लघु-कथा को व्यवहारिक सच्चाई से जोड़ने के लिए आभार और धन्यवाद , सादर।

आदरणीय डॉ. विजय शंकर सर, लघुकथा का घटनाक्रम एक ऐसा सत्य है जिसे स्वयं कई बार देख चुका हूँ. आपने नौकरशाही और लालफीताशाही को बहुत सधे हुए ढंग से शाब्दिक किया है. इस प्रभावोत्पादक लघुकथा की प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. सादर  

प्रिय मिथिलेश वामनकर जी , हमारी समस्या यही है कि कितनी विकृतियाँ हमारे जीवन में विरासत बनी हुयी हैं और हम उनका सम्मान पूर्ण निर्वहन कर रहे हैं , हम लोगों के बड़े बुजुर्ग बतातें हैं कि यह अंग्रेज सिखा गए कि बिलकुल खाली हो तो भी अफसर को यही दिखाना चाहिए कि वह बहुत ही व्यस्त है , दूसरे काम करो , न करों पर करने की नौटंकी पूरी करो. इसी विचारधारा ने पब्लिक सर्विस जैसी प्रवृति उतपन्न होने ही नहीं दी।
आपकी वैचारिक पुष्टि के लिए ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।

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