आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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जनाब प्रदीप नील साहिब , विषय को सार्थक करती अच्छी लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
आपकी मुबारकबाद मेरे लिए बहुत ही कीमती है आ तस्दीक जी। प्रेम बनाए रखिएगा।
आदरणीय प्रदीप जी,
प्रतीकों ने कथा को एक अलग रूप प्रदान किया है. नीली पगडी़ और खादी ने दो विचारों को इंगित किया है. नीली पगडी भी अब धूर्त बनने की राह पर आगे बढ गयी है. अपनी बेटी को आगे करते समय उसे भी पता था कि क्या होने वाला है. लेकिन मामला केस के जीतने का था. सुन्दर भावों के साथ कथा कही गयी है. आज के समाज का गहन सोच के साथ चित्रण किया गया है.
सादर.
प्रिय भाई , समय निकाल कर विस्तृत टिप्पणी द्वारा कथा को इतना मान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।
डा साहब बहुत आभारी हूँ कि आपने मेरा उत्साह बढ़ाया। स्नेह बनाए रखें , यही प्रार्थना है।
आदरणीय प्रदीप नील जी, प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर
आपकी बधाई तो विशिष्ट है ही मिथिलेश जी , समय निकाल कर इधर आना मेरे लिए और भी विशिष्ट। बहुत बहुत धन्यवाद।
ओहो ! क्या बात कही है, इस आयोजन का शुभारम्भ बहुत ही खुबसूरत और मार्मिक लघुकथा से हुई है, बेहतरीन. मुझे लगता है कि अंतिम पक्ति से पहले कथा को समाप्त कर देनी चाहिए. बहरहाल इस बेहतरीन प्रस्तुति के साथ लघुकथा गोष्ठी को शुभारम्भ करने हेतु बहुत बहुत बधाई.
प्रिय बागी जी , इतनी प्रशंसा आप जैसे कथा लेखक से पाना बहुत बड़ी उपलब्धि है। आपकी बधाई को को सहेज लिया है , मैंने। // अंतिम पक्ति से पहले कथा को समाप्त कर देनी चाहिए // शुक्रिया सुझाव देने के लिए। आपने अन्य पाठकों की तरह बिलकुल सही इशारा किया है। मैंने उन से से जो कहा वही निवेदन आपसे भी : आप बिलकुल सही कह रहे हैं। क्लाइमैक्स तो वहीँ था बाद में कुछ कहने की जरूरत ही नहीं थी। इतना तो मैं भी समझता हूँ कि लघुकथा में एक भी फालतू वाक्य बहुत महंगा पड़ता है , भविष्य में ध्यान रखूंगा। यही दृष्टि बनाए रखिएगा।
एक बार कथा पढने के बाद फिर और फिर से पढ़ी.हर बार उतना ही असर हुआ.अन्दर तक जाकर ठहर जाने वाली अनुभूति.- कहते हैं कथायें समाज का ही दर्पण होती हैं,समाज का एक कुरूप रूप दर्शाती बेहद सधी हुई रचना, आ.प्रदीप नील वसिष्ठ सर जी.
बहुत आभारी हूँ महिमा जी आपकी इस अमूल्य टिप्पणी के लिए। आपने सच कहा समाज का कुरूप चेहरा। आपने इतना समय और रचना को मान दिया , धन्यवाद।
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