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बहुत बहुत आभार आदरणीय ।
पापा मैं सीता तो नहीं,पर लक्ष्मण रेखा मुझे दिखाई देती है ! वाह वाह !!
आदरणीय पवनजी, आपकी इस लघुकथा नेण् आश्वस्त किया है कि बेटियों को यदि सकारात्मक पहलू के हवाले से बड़ा किया जाय तो बेटियाँ अधिक संवेदनशीलता के साथ सामाजिकता निभाती हैं.
हृदय से बधाई स्वीकार करें,आदरणीय
शुभ-शुभ
आभार आदरणीय सौरभ पांडे जी, आपने कथा पर समय दिया धन्यवाद ।बेटियों पर अभिभावकों का इतना विश्वास है कि बेटियाँ सारे विश्व में भारतीय संस्कृति की पताका लहरा रही है ।पुनः आभार एवं धन्यवाद आदरणीय ।
बहुत बहुत आभार अर्चना जी ।
शिक्षा और संस्कार अच्छे मिले तो उसपर लालच का रंग नहीं चढ़ता | सुंदर लघु कथा रची है श्री पवन जैन साहब
आभार आदरणीय, शिक्षा और संस्कार जीवन की नीव बनाते हैं ,सुदृढ़ नीव को हिलाना आसान नहीं ।पुनः धन्यवाद एवं आभार ।
माता-पिता की चिंता और संस्कारित लड़की के बीच के वार्तालाप का प्रवाह ऐसा हुआ है कि प्रारंभ से कब अंत तक पहुँच गए पता ही नहीं चलता, इस कसी हुई लघुकथा के सृजन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय पवन जैन जी सर|
बहुत बहुत आभार आदरणीय चंद्रेश जी।
आभार आदरणीय।
बेटी के प्रति असुरक्षा की भावना, प्रदत संस्कारों पर भारी होकर थप्पड़ में परिवर्तित हो गयी, किन्तु बेटी का लक्ष्मण रेखा के प्रति आश्वासन शांतिलाल को अवश्य शान्ति दिया होगा, अच्छी लघुकथा हुई है आदरणीय पवन जैन जी, बधाई.
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