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मंत्रमुग्ध सी कथा पढ़ती गयी। सुविधाओं के नाम पर छलावा जैसे साकार हो उठा और मन तिक्तता से भर उठा। सटीक चित्रण किये हैं आपने प्रत्युत्तर के। बधाई स्वीकार करें अदरणीय मोहन बेगोवाल जी।
आदरणीय भावनात्मक विविरण ने मंत्रमुग्ध कर दिया.
ग्रामीण क्षेत्रों में चिक्त्सिय सुविधाओं का क्या हाल हैं इस दर्द को कथा के माध्यम से बखूबी उभारा हैं आपने आदरणीय मोहन बेगोवाल जी
आ० मोहन बेगोवाल जी,आपकी ये लघु कथा गाँव में आज के हालत को बयाँ कर रही है वोट की राजनीति,झूठे वायदे ,औपचारिकता ,लोगों को सपने दिखाना नतीजा ...वाही ढ़ाक के तीन पात ...बिलकुल सच्चा आईना दिखाती लघु कथा बहुत बहुत बधाई
सन्नी के डायलाग से पहले " कोमा लगाना भूल गए आप |
वादों और सच्चाई के बीच का ये जो खेल हमारे देश में चलता आ रहा ,सच में बहुत दुखी करने वाला है , सशक्त रचना के लिए बधाई आपको आदरणीय
ऐसे छलो को करते रहने वालो की भरमार हैं |छले जाने पर लोग खुद को ठगा सा महसूस करते हैं | कई सरकारी अस्पताल सफेद हाथी ही तो साबित हो रहें ..बधाई बढ़िया कथा ...सादर अभिवादन
सुन्दर कथा आ० मोहन बेगोवाल जी.. सरकारी योजनाओं की कमी से अधिक उनकी क्रियान्वयन की कमी होती है...दोष किसी का भी हो सुविधा पात्र तक नहीं पहुँचती... विकट समस्या को इंगित करती कथा के लिए अनेकानेक बधाई..
अच्छी लघुकथा है आ० मोहन बेगोवाल जी, बधाई स्वीकारें I थोडे सम्पादन से रचना और मारक बन सकती है I
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