For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जन्मदिन का केक (लघुकथा)

 शंभू सिंह्जी  पत्नी के देहांत के बाद,  बेटे ब्रिगेडियर बाबू सिंह के साथ रहने लगे थे! ब्रिगेडियर साहब के बंगले पर रात को पार्टी चल रही थी!

 आउट हाउस में शंभू सिंह जी  रात के खाने का इंतज़ार कर रहे थे! पार्टी के कारण किसी को शंभू सिंह को खाना देने की  याद ही नहीं रही !

 शंभू सिंह जी की, लेटे लेटे ,  कब आंख लग गयी ,पता ही नहीं चला!

 सुबह ब्रिगेडियर  साहब का अर्दली चाय लेकर आया तो शंभू सिंह जी पूछ बैठे,"रात को किस बात की पार्टी थी"!

"जन्म दिन की"!

शंभू सिंह जी ने देखा कि चाय के साथ केक भी  है, फ़िर सोचने लगे कि कल किस का जन्म दिन था!बहुत ज़ोर डालने पर भी याद नहीं आरहा था!

फ़िर अचानक याद आया,अरे कल तो खुद उनका अपना ही जन्म दिन था!बेटे पर गर्व महसूस होने लगा!खुशी में, रात को खाना ना मिलने की बात भी भूल गये!

केक का टुकडा  मुंह मे रखा,"बडा स्वादिष्ट है, किसने बनाया"!

"साहब टॉमी (कुत्ते) के जन्म दिन पर  सबसे अच्छी बेकरी “ बेकवैल” से ही केक मंगवाते हैं"!

अचानक शंभू सिंह जी को केक कडुआ लगने लगा, जैसे, किसी ने  ज़बरन, उनके मुंह में , नीम की निंबोडियां   डाल दी हों!

.

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 897

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on July 13, 2015 at 10:46am

आदरणीय धर्मेंद्र कुमार सिंह जी और आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी, आप दौंनों का हार्दिक आभार!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 13, 2015 at 9:11am

aadarneey

achhee katha kahee. saadar .

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 12, 2015 at 9:50pm

आदरणीय तेजवीर जी, इस अच्छी लघुकथा हेतु दाद कुबूल करें।

Comment by TEJ VEER SINGH on July 12, 2015 at 6:03pm

आदरणीय महिमा जी, कथा अवलोकन एवम सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार!

Comment by MAHIMA SHREE on July 12, 2015 at 5:50pm

हृदयस्पर्शी प्रस्तुति..बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 11, 2015 at 12:02pm
ब्लॉग के ऊपर आप्शन में एडिट लिंक है वहां से एडिट कर सकते है। सादर।
Comment by TEJ VEER SINGH on July 11, 2015 at 11:51am

आदरणीय मिथिलेश जी, कथा के हर पहलू पर आपकी व्याख्या मन को प्रसन्न कर गयी!कथा लेखन का मेरा अनुभव बहुत नया है अतः छोटी मोटी त्रुटियां होना स्वाभाविक है!आपने मेरी कथा को सराहा, मन अभिभूत हो गया!क्या आपके द्वारा सुझाये गये तरीके से कथा को पुनः लिख सकते हैं!आपका हार्दिक आभार!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 11, 2015 at 3:22am

आदरणीय तेजवीर सिंह जी, बहुत ही संवेदनशील विषय पर, बड़े ही सधे शिल्प के साथ, कथानक की कसावट के अनुरूप शब्द चयन करते हुए एक सफल लघुकथा लिखी है आपने. अचानक मिलने वाला झटका ही लघुकथा को सफल भी बना रहा है और गहरे तक सोचने को विवश भी कर रहा है. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई.

लघुकथा के वाक्यों को अलग अलग पंक्ति में न रखकर, इस तरह पैरा वाइज रखें तो और आकर्षक लगेगी.

------------------------------------------------------------------ 

शंभू सिंहजी पत्नी के देहांत के बाद,  बेटे ब्रिगेडियर बाबू सिंह के साथ रहने लगे थे।  ब्रिगेडियर साहब के बंगले पर रात को पार्टी चल रही थी।  आउट हाउस में शंभू सिंह जी,  रात के खाने का इंतज़ार कर रहे थे। पार्टी के कारण किसी को शंभू सिंह को खाना देने की याद ही नहीं रही ।  शंभू सिंह जी की, लेटे लेटे,  कब आंख लग गयी, पता ही नहीं चला।

सुबह ब्रिगेडियर  साहब का अर्दली चाय लेकर आया तो शंभू सिंह जी पूछ बैठे-

"रात को किस बात की पार्टी थी"!

"जन्म दिन की"!

शंभू सिंह जी ने देखा कि चाय के साथ केक भी है, फ़िर सोचने लगे कि कल किस का जन्म दिन था। बहुत ज़ोर डालने पर भी याद नहीं आरहा था। फ़िर अचानक याद आया, अरे कल तो खुद उनका अपना ही जन्म दिन था। बेटे पर गर्व महसूस होने लगा। खुशी में, रात को खाना न मिलने की बात भी भूल गये।

केक का टुकडा  मुंह मे रखा, "बडा स्वादिष्ट है, किसने बनाया?"

"साहब टॉमी (कुत्ते) के जन्म दिन पर  सबसे अच्छी बेकरी 'बेकवैल' से ही केक मंगवाते हैं।"

अचानक शंभू सिंह जी को केक कड़वा लगने लगा, जैसे किसी ने ज़बरन उनके मुंह में, नीम की निंबोलियाँ डाल दी हों ।

Comment by TEJ VEER SINGH on July 10, 2015 at 9:18pm

आदरणीय मदन लाल श्रीमाली जी, लघु कथा अवलोकन हेतु आपका हार्दिक आभार!मगर वृद्ध ब्रिगेडियर सहब नहीं हैं ,उनके पिता जी हैं!पुनः आभार!

Comment by Madanlal Shrimali on July 10, 2015 at 5:57pm
वृद्ध ब्रिगेडियर साहब की मनोदशा का सुन्दर शब्दांकन।बधाई इस सुन्दर कथा के लिए।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service