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माँ स्मरण (मातृदिवस पर विशेष )

                     :: 1 ::

             मॉं तू माने या न माने !

तेरी  वाणी-वीणा  के स्वर ।
रस-वत्सल के बहते निर्झर ।
मै अबोध तन्मय सुनता था वह सारे कलरव अनजाने ।

            मॉं तू माने या न माने !

वह तेरे पायल की रून-झुन ।
मै बेसुध घुंघुरू की धुन सुन ।
मेरे  मुग्ध  मन:स्थिति  की गति अन्तर्यामी  ही जाने ।
             मॉं तू माने या न माने !

सरगम सा आँखो का पानी ।
तू कच्छपि रागो  की रानी ।
इन तारो की ही झंकृति से मैने स्वर के स्वर पहचाने ।
             मॉं तू माने या न माने !

                    :: 2 ::
           कवि कुछ का कुछ कर देते है !

 तिक्त स्वाद पीड़ा का चखना ।
 नौ-नो माह  उदर मे रखना ।
 शत-शत  व्रत-संयम के तप से  शिशु को मधुर भाव सेते है ।
           कवि कुछ का कुछ कर देते है !

  तू अंसख्य  पुत्रो की माता ।
  कहते तेरा जनक विधाता ।
  दर्द अपरिमित बहलाने को पर त्रिदेव भी कब चेते  है ।
           कवि कुछ का कुछ कर देते है !
 
 तुझको    वीणा-धारिणि  माना ।
 पीडा़-धारिणि  को   कब जाना ।
 तू मृदु-भाव प्रसव करती है हम -शिशु गीत उठा लेते है ।
           कवि कुछ का कुछ कर देते है !

(मौलिक व् अप्रकाशित )

 

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Comment by vijay nikore on May 12, 2015 at 4:43pm

आपकी रचनाएँ, उनके भाव ... मुग्ध करते हैं। हार्दिक बधाई।

Comment by Samar kabeer on May 12, 2015 at 10:21am
आली जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ,आदाब,माँ को समर्पित सुन्दर रचना के लिये हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 12, 2015 at 4:13am

आदरणीय  डॉ o गोपाल नारायण सर बहुत सुन्दर गीत हुए है मुग्ध कर दिया आपने. 

इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक आभार 

नए अभ्यासियों के लिए सीखने का अवसर ... 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 12, 2015 at 12:51am

बहुत ही सुंदर रचना. सच ही है,  माँ , माँ ही होती है. बहुत-बहुत बधाई आदरणीय डा.गोपाल जी

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 11, 2015 at 11:09pm
आदरणीय डॉ o गोपाल नारायण जी , सत्य, सुन्दर प्रस्तुति,
बधाई, सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 11, 2015 at 9:44pm

आदरणीय बड़े भाई , दोनो गीत बहुत मनमोहक रचे हैं और मातृत्व को सुन्दरता से परिभाषित कर रहे हैं , आपको हार्दिक बधाइयाँ रचना के लिये ॥

कृपया ध्यान दे...

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