For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राष्ट्रधर्म: छन्द- दोहा

राष्ट्रधर्म ही सार है, राष्ट्रधर्म ही मूल ,

लेशमात्र सन्देह भी, कर देगा सब धूल !

 

रहे राष्ट्र के प्यार में, मानव का हर कृत्य,

रोम–रोम में राष्ट्रहित, क्या अफसर क्या भृत्य !

 

राष्ट्रघात या द्रोह से, जग में प्रलय दिखाय,

राष्ट्रप्रेम वह शक्ति है, विश्वविजय हो जाय !

 

राष्ट्र इतर अस्तित्व सब, समझो है बेजान ,

राष्ट्र रहे तो सब रहे, आन बान औ शान !

 

लहू बहा दो राष्ट्रहित, और बहा दो स्वेद,

प्राण जाय गर राष्ट्रहित, तो भी क्या है खेद !  

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 750

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 26, 2015 at 7:53pm

देश भक्ति की भावना से लबरेज दोहे बहुत सुन्दर ..आ० डॉ० गोपालनारायण जी के मार्गदर्शन से दोहे  और निखर उठे |

बहुत बहुत बधाई आपको हरि प्रकाश दूबे जी  

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on February 26, 2015 at 7:21pm

राष्ट्र प्रेम से ओत-प्रोत दोहे पढ़कर संतुष्टि हुई! ये भावनाएं हम सभी के दिलों में होनी चाहिए.. सादर !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 26, 2015 at 4:00pm

बहुत सुंदर  और  भावपूर्ण दोहों के लिए बधाई | शेष आद औरभ पाण्डेय जी और दो गोपाल नारायण जी ने महत्त्व पूर्ण टिप्पणियाँ  की है जिन्हें संज्ञान में लेना चाहिए | सादर  

Comment by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 9:54am

राष्ट्र इतर अस्तित्व सब, समझो है बेजान ,

राष्ट्र रहे तो सब रहे, आन बान औ शान !

 

लहू बहा दो राष्ट्रहित, और बहा दो स्वेद,

प्राण जाय गर राष्ट्रहित, तो भी क्या है खेद !  

 आदरणीय हरिप्रकाश जी सर ,सुन्दर दोहावली है |हार्दिक बधाई स्वीकार करें |सादर अभिनन्दन |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 25, 2015 at 7:43pm
आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी आपकी दोहावली पढ़कर आनंद आ गया। आपको छन्दों की बढ़ते हुए देखना सुखद भी है और संतोष भी दे रहा है। आप में अपार संभावनाओं की झलक है ये दोहावली। बहुत बहुत बधाई। आदरणीय गोपाल सर के मार्गदर्शन पर ध्यान जरूर दीजियेगा। शुभकामनायें और बधाई।
Comment by Sushil Sarna on February 25, 2015 at 7:19pm

आदरणीय राष्ट्र प्रेम को दर्शाते इन दोहों के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by maharshi tripathi on February 25, 2015 at 6:06pm

लहू बहा दो राष्ट्रहित, औ बहा दो स्वेद,

प्राण जाए गर राष्ट्रहित, तो भी क्या है खेद ,,,,,,,,देश हित को समर्पित इन दोहों पर आपको हार्दिक बधाई . हरिप्रकाश जी |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 25, 2015 at 4:45pm

1 आ० हरि प्रकाश जी

आपसे कुछ बाते साझा करना चाहता है -

राष्ट्रघात और द्रोह से, जग में प्रलय दिखाय,------बोल्ड में 14 मात्राएँ हैं - मात्र तेरह चाहिए i और को औ अथवा  या कह सकते है

राष्ट्रप्रेम वह शक्ति है, विश्वविजय हो जाय !

 

राष्ट्र इतर अस्तित्व सब, समझो है बेजान ,

राष्ट्र रहे तो सब रहे, आन बान और शान !,------बोल्ड में 1 मात्राएँ हैं - ग्यारह चाहिए---और को औ कर सकते हैं

लहू बहा दो राष्ट्रहित, औ बहा दो स्वेद,        ,------बोल्ड में 10 मात्राएँ हैं - ग्यारह चाहिए---औ को और कर सकते हैं

प्राण जाए गर राष्ट्रहित, तो भी क्या है खेद !  ,------बोल्ड में 14 मात्राएँ हैं - मात्र तेरह चाहिए--- 'जाए'  चार मात्रा है 'जाय' कर सकते हैं

सादर  

 

Comment by Pari M Shlok on February 25, 2015 at 2:42pm
राष्ट्र इतर अस्तित्व सब, समझो है बेजान ,

राष्ट्र रहे तो सब रहे, आन बान और शान !

राष्ट्र भाव से ओत-प्रोत बहुत ही उम्दा ...सादर
Comment by Hari Prakash Dubey on February 25, 2015 at 11:30am

रचना आपका आशीर्वाद पाकर धन्य हुई, आदरणीय डा.विजय शंकर सर , अपना आशीर्वाद बनाए रखियेगा सादर !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
51 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
53 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
53 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
54 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
55 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
14 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service