For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"अरी भागवान, क्यों हमेशा कामवाली के पीछे हाथ धोकर पडी रहती हो ?"
"आजकल इसका दिमाग बहुत ख़राब हो गया है।"  
"आखिर बात क्या हुई?"  
"एक हो तो बताऊँ। बिना बताये छुट्टी मार जाती है, काम करते हुए मौत पड़ती है इसे, पर एडवांस हर महीने चाहिए मुई को"
"अरे शान्त रहो, वो सुन रही है।"     
"सुनती है तो सुने, गर्मियों के बाद उठा कर बाहर फ़ेंक दूँगी इसको।"
"मगर कामवाली के बगैर घर के इतने सारे काम कौन करेगा ?"
"क्यों ? बेटे की शादी करके नई बहू किस लिए ला रहे हैं ?"

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 1259

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 17, 2017 at 10:32pm

बहुत सुंदर लघुकथा हुई है यह भी , सच है आज भी अनेको घरों में बहुओं से ऐसी ही उम्मीद की जाती है | नमन सर |

Comment by kanta roy on May 24, 2015 at 10:08pm
हाँ , अभी भी निम्न मध्यम वर्गीय घरों मे बहुओं की यही दशा है । औसत लडकियां जो कम पढी लिखी होती है वो ऐसी ही कुंठित जिंदगी बिताती है । लडकियों का ससुराल में यह भी एक रूप होता है .....सर जी , आपकी इस लेखनी ने आपकी पैनी नजर जो सामाजिक गतिविधियों पर होती है उसका परिचायक है । सुंदरतम सार्थक रचना ..... नमन श्री सर जी
Comment by kanta roy on March 9, 2015 at 11:13pm
बाई की जगह नई बहू का प्रत्यारोपण .. बहुत सुंदर .. आभार आ. योगराज प्रभाकर सर जी आपको । सीखने को बहुत कुछ मिलता है सदा आपकी कथाओं में।
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 8, 2015 at 8:46pm

"मगर कामवाली के बगैर घर के इतने सारे काम कौन करेगा ?"
"क्यों ? बेटे की शादी करके नई बहू किस लिए ला रहे हैं ?"

जब यह लघुकथा पढ़ी थी तब लगा था, ऐसा शायद ही होता होगा। पर हाल की एक घटना ने आपकी इस लघुकथा को जीवंत कर दिया, जब एक घर में सचमुच बेटे की शादी के बाद कामवाली को हटा दिया गया और बहू जिसके हाथ पैरों की मेहदी, आलता के रंग भी धूमिल नहीं हुए थे कि घर-आँगन को साफ़ करने लगी जबकि शादी में सारे रश्म और रिवाज धूम धाम से संपन्न हुए थे, उम्मीद यही की जा सकती है की दहेज़ में भी अच्छी रकम मिली होगी.      

Comment by भुवन निस्तेज on March 7, 2015 at 2:50pm
कमाल है आदरणीय, बहुत खूब!
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on February 26, 2015 at 7:06pm

एक कटु सत्य पर परम्पराएँ टूटनी चाहिए टूट भी रही है अब सभी बहुओं खासकर कामकाजी महिलाओं से ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती ...सादर!

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on February 25, 2015 at 8:32pm

आदरणीय योगराज भाईजी

भारतीय परिवारों में चली आ रही यह परम्परा  टूटनी ही चाहिए।  

बहू घर की लक्ष्मी है, बन के रहे ओ रानी।

पर सासू को चाहिए, अदद एक नौकरानी॥

सासू परम्परा को तोड़े, तभी तो “माँ” कहलाएगी।

बेटी जैसी बहू लगे तो, शुभ लक्ष्मी घर आएगी॥

लघु कथा की हार्दिक बधाई।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 25, 2015 at 4:23pm

महिलाओं के विरुद्ध एक ऐसा षडयंत्र या फिर ऐसी सच्चाई जो लगभग प्रत्येक भारतीय परिवार में परम्परा और संस्कार की ओट में स्वीकृत है. इस पहलू का सीधा पक्ष वस्तुतः आत्मीय सच्चाई है जिसके होने से ही कोई परिवार सात्विक वातावरण हुआ करता है, जहाँ पीढ़ियाँ सबल होती हैं. इसी पहलू का उलटा पक्ष घृणित है, जिसके कारण महिलाएँ परिवारों में आजीवन दासानुदास बन कर जीती हैं. और इस घोर कुकृत्य की सम्पादिका अकसर परिवार की वरिष्ठ महिलाएँ ही हुआ करती हैं.

आदरणीय, आपकी दृष्टि की संवेदना तथा ऐसी मुखर अभिव्यक्ति आपके कहे के प्रति नत कर देती है. हम जैसे नये हस्ताक्षरों को ’कहना’ सिखाने के लिए आपके पास अनुभवों और अभिव्यक्तिों का भरा-पूरा कोश है.
सादर शुभकामनाएँ एवं हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीय योगराजभाईसाहब.

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on February 25, 2015 at 12:06pm

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी आप की कथा पर कुछ कहना हम नए रचनाकारो के लिए सूर्य को रौशनी दिखाना ही है.....

बेहतरीन लघु कथा.....एक माँ अपने बेटे के लिए बहु लाते समय क्या मानसिकता  रखती है इस का बहुत सुन्दर चित्रण किया आपने कथा में ....हार्दिक बधाई स्वीकार करे .../\.... प्रणाम सहित !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 25, 2015 at 10:29am

आपने एक सच्चाई को आइना दिखा दिया, आदरणीय योगराज जी. बहुत महीन से विषय को आपने, बहुत ही सुन्दरता से बयां कर दिया आपकी लेखनी को नमन ,सर.  समाज में अक्सर यही मानसिकता रहती है, कि बहु के आने पर कई संकट कट जायेंगे. किन्तु यह सोच अधिकतर उनकी होती है जो बहु के आने के बाद पूरी तरह से मुक्ति चाहतीं हो. लेकिन जो सास, कभी बहु बनकर घर में आई थी और अपने हाथों से पुरे घर की गृहस्थी को संभाला हो, वो बहु के साथ मिलकर चलतीं है.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service