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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।
 
पिछले 48 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-49

विषय - "बंधन"

आयोजन की अवधि- 14 नवम्बर 2014, दिन शुक्रवार से 15 नवम्बर 2014, शनिवार की समाप्ति तक  (यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)


बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए.आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम दो स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक ही दे सकेंगे, ध्यान रहे प्रति दिन एक, न कि एक ही दिन में दो. 
  •  रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.


सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 14 नवम्बर 2014,दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालिका 
डॉo प्राची सिंह 
(सदस्य प्रबंधन टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

प्रदत्त विषय को लेकर गीत पर सुन्दर कलम आजमाइश हुई है आ० लक्ष्मण प्रसाद जी 

आलस सुस्ती ही बाधाए, बंधन उनका एक बहाना,

कर्मशील बंधन को तोड़े, जीवन सार उन्ही ने जाना |.......बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ , सुन्दर  भाव 

हार्दिक बधाई 

रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ है | आपका अतिशय आभार आद डॉ प्राची सिंह जी 

आ. लडीवाला जी सादर,

इस सुन्दर गीत हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें

रचना सराहने की लिए सादर धन्यवाद श्री सत्यनारायण सिंह जी 

आदरणीय  लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी, संभवत: आपका गीत पहली बार ही पढ़ रहा हूँ, प्रदत्त विषय के अनुरूप बहुत ही भावपूर्ण और मधुर गीत हेतु बधाइयाँ...............

जी, प्रथम गीत रचना ही है ओबीओ के पटल पर | रचना सरहाने के लिए आपका अतिशय आभार श्री अरुण कुमार निगम जी |

आप का आना अछा लगा | 

आलस सुस्ती ही बाधाए, बंधन उनका एक बहाना,

कर्मशील बंधन को तोड़े, जीवन सार उन्ही ने जाना |

डरे न कूदे दरियाँ में जो, पथरीले पथ पर वे चलते,

उनको जीवन लगे सुहाना, वे बंधन का पहने बाना |

बैसाखी वे नहीं ढूंढते,

   क्रंदन उनको नहीं सुहाता |.......................सुन्दर गीत रचा है आदरणीय लड़ीवाला साहब, दिए विषय को सार्थक करती इस प्रस्तुति पर बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.

(1)

छटपटाकर निकली

घूंघट

और

बुर्केनुमा

कोकून से बाहर

अब खुश हैं

हाथों पर दस्ताने

और चेहरे पर

स्कार्फ लपेटे

तितलियाँ

(2)

उन्हें भी

कहाँ सुकून देते हैं

ये तराशे हुए बगीचे

उन्हें भी

बुलाते हैं

बेतरतीब फैले जंगल

जंगल पर खुला आसमान

लेकिन

लौटकर दुबक रहीं हैं

चिड़ियाएँ

बाज के पैंतरे देखकर

 -मौलिक एवं अप्रकाशित 

वहुत खूब वंदना जी।

आप की सराहना से उत्साहवर्धन हुआ बहुत२ आभार आदरणीय प्रभाकर सर 

वाह ------

परदे के प्रच्छन्न बंधन से निकलकर भी आजादी कहाँ i क्या सांकेतिक प्रस्तुति है i  सुंदर i

आप गुणीजनों से कुछ सीख पाऊं यही आशीर्वाद चाहती हूँ आदरणीय गोपाल सर 

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आवश्यक सूचना:-

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