For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खेतों के दरके सीने पर बादल बनकर आ रामा

होठों के तपते मरुथल पर छागल बनकर आ रामा

 

बोली लगकर बिकता है अब आशीषों का रेशम भी

निर्वसना है श्रध्दा मेरी मलमल बनकर आ रामा

 

भक्ति युगों से दीवानी है राधा मीरा के जैसी

मन से मन मिल जाये अपना पागल बनकर आ रामा

 

दीप बुझे हैं आशाओं के रात घनेरी है गम की

प्राची से उजली किरनों का आँचल बनकर आ रामा

 

छप्पन भोगों के लालच में क्यूं पत्थर बन बैठा है

भूखों की रीती थाली में चावल बनकर आ रामा

 

सूख चुके हैं बरगद-पीपल मानवता ओ करुणा के

मन की बंजर धरती पर नव कोंपल बनकर आ रामा

 

चूता छप्पर सर पर कर्जा तिस पर बड़की का गौना

अंबार समस्याओं का है तू हल बनकर  आ रामा

 

धनवानों को झुकती दुनिया बलवानों से डरता जग

निर्धन का धन बनकर निर्बल का बल बनकर आ रामा

 

इस जीवन में तो ‘खुरशीद’ बड़ा खल कामी है राघव

पिछले जन्मों के सत्कर्मों का फल बनकर आ रामा

मौलिक व अप्रकाशित 

 

Views: 575

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 2, 2014 at 12:21pm

आदरणीय भाई खुर्शीद जी इस बेहतरीन गजल के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by विजय मिश्र on September 30, 2014 at 4:44pm
खुरसिद भाई , प्रशंसा के शब्द नहीं मिल रहे , विवेचना के भी शब्द नहीं मिल रहे , इतनी खूबसूरत लिखी आपने | दिल को हिलाकर रख दिया आपने |जितनी तारीफ करूँ कम |ऐसे अल्फ़ाज कलम की कालिख से नहीं ,दिल की कसक से निकलते हैं |हार्दिक आभार , आ.................. रामा |
Comment by harivallabh sharma on September 30, 2014 at 12:39pm

वाह...आ रामा...वाकई कितनी जरुरत हे ईश्वर ...कितना मार्मिक चित्रण करते अशआर ..

सूख चुके हैं बरगद-पीपल मानवता ओ करुणा के

मन की बंजर धरती पर नव कोंपल बनकर आ रामा

 

चूता छप्पर सर पर कर्जा तिस पर बड़की का गौना

अंबार समस्याओं का है तू हल बनकर  आ रामा....बहुत बहुत बधाई मर्म स्पर्शी...ग़ज़ल 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 29, 2014 at 11:00pm

गजब!! क्या खूब शे'र कहे है आपने. दिली बधाई आपको आदरणीय खुर्शीद साहब

Comment by Chhaya Shukla on September 29, 2014 at 12:50pm

सूख चुके हैं बरगद-पीपल मानवता ओ करुणा के

मन की बंजर धरती पर नव कोंपल बनकर आ रामा ... की व्व्व्वाह्ह्ह ! निकले आपकी गजल पढ़कर बधाई आपको शानदार गज़ल के लिए सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 29, 2014 at 11:30am

बोली लगकर बिकता है अब आशीषों का रेशम भी
निर्वसना है श्रध्दा मेरी मलमल बनकर आ रामा ".................बिलकुल सही कहा है 

इस शानदार ग़ज़ल पर आपको हार्दिक बधाई सदर 

Comment by ram shiromani pathak on September 29, 2014 at 9:52am
आहा आहा क्या कहने आदरणीय,बहुत ज़ोरदार प्रस्तुति।। हार्दिक बधाई आपको।। सादर
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 28, 2014 at 9:48pm

" बोली लगकर बिकता है अब आशीषों का रेशम भी
निर्वसना है श्रध्दा मेरी मलमल बनकर आ रामा "
आदरणीय खुर्शीद जी, आपकी अन्य ग़ज़लों की तरह यह ग़ज़ल भी बहुत अच्छी बन पडी है है।
बहुत बहुत बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 28, 2014 at 7:00pm

बोली लगकर बिकता है अब आशीषों का रेशम भी

निर्वसना है श्रध्दा मेरी मलमल बनकर आ रामा-----कमाल का शेर 

छप्पन भोगों के लालच में क्यूं पत्थर बन बैठा है

भूखों की रीती थाली में चावल बनकर आ रामा---ला जबाब 

आ० खुर्शीद खैराबादी जी ,इस ग़ज़ल को पढ़कर मन मुग्ध हूँ ...जबरदस्त भाव क्या कहने ....इसके साथ बह्र भी लिख देते तो समझने में और आसानी होती और समीक्षा बेहतर होती ...खैर आप ढेरों दाद कबूलें सादर 

 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service