For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हर सम्त आस पास गुलिस्तान बन गये- ग़ज़ल

221 2121 1221 212

हर सम्त आस पास गुलिस्तान बन गये

ये माहो शम्स गुल मेरी पहचान बन गये

 

जो लोग शह्र फूँक के नादान बन गये

बदकिस्मती से आज निगहबान  बन गये

 

आँखों में धूल झोंक के लोगों की देख लो

मतलब परस्त मुल्क के सुल्तान बन गये

 

चमके तो मेह्र बन गये जो आसमान की

वो आँखों में उतरते ही अरमान बन गये

 

जिनकी ज़बाँ उगलती रही ज़ह्र अब तलक

कैसे ये मान लूँ कि वो इंसान बन गये

 

सूरत बदल गई कि निगाहें मेरी “शकूर”

आईने देख कर मुझे अंजान बन गये

 

-मौलिक व अप्रकाशित

 

Views: 650

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 27, 2014 at 8:45pm

आदरणीय करुण सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 27, 2014 at 8:44pm

आदरणीय विजय निकोर सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 27, 2014 at 8:43pm

आदरणीय खुर्शीद जी रचना की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया

Comment by Santlal Karun on September 27, 2014 at 8:27pm

आदरणीय शिज्जु शकूर जी,

सारगर्भित ग़ज़ल के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ --

"जो लोग शह्र फूँक के नादान बन गये

बदकिस्मती से आज निगहबान  बन गये"

Comment by vijay nikore on September 27, 2014 at 1:36pm

इस अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

Comment by khursheed khairadi on September 27, 2014 at 12:50pm

जो लोग शह्र फूँक के नादान बन गये

बदकिस्मती से आज निगहबान  बन गये

आदरणीय शकूर साहब उम्दा अशहार हुये हैं ,सादर अभिनन्दन


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 26, 2014 at 6:17am

आदरणीय डॉ आशुतोष सर आपका हार्दिक आभार मेह्र का वज्न होगा 21
चम2 के2 तो1 मेह्र21 बन2 ग1ये1 जो2 आ2स1 मा2न1 की2
सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 26, 2014 at 6:14am

आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा सर आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 26, 2014 at 6:13am

आदरणीय जितेन्द्र भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 26, 2014 at 6:12am

आदरणीय़ डॉ विजय शंकर सर आपका हार्दिक आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
14 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service