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''आत्‍महत्‍या''

क्‍या है ये।

क्‍यों हो रही है ये,

क्‍यों भागते है वे,

जिन्‍दगी से,

कर्तव्‍यों से,  

क्‍यों नहीं सामना करते

कठिनाईयों का,

समस्‍याओं का,

परिस्थितों का,

किस के दम पर

छोड जाते है वे 

बूढे मॉं -बाप को,  

अवोध बालको केा,

अपनी विवाहिता केा

जिसका संसार बदल दिये वे

एक चुटकी सिन्‍दूर से

क्‍या कसूर है इनका

यही , वे करते है

प्‍यार उनसे

चाहते है उन्‍हें।

क्‍या,वे नहीं जानते

कितने जीवन जुडे है उनसे

क्‍या होगा उनका

दर-दर की ठोकर

समाज के ताने 

तन को भेदती निगाहें

कायर है वे जो

चुनौतीयो का

सामना नहीं करते 

कलंकित करते है

मानव जीवन का  

अपमान करते है

जीवन देने वाले का

यारों

नहीं है यह रास्‍ता गमो से, 

कर्तव्‍यों से उलझनो से

मुक्ति पाने का

मानव हो तुम

अडिग बनो  

संयोग से मिला है जीवन 

कायरता से नहीं

बहादुरी से सामना करो

लडो अपनी चुनौतियों से

जीतों जंग अपने लिये

अपनो के लिेये

प्रयास करों

सफलता का,

यश,जश का

रक्षा करो उस

एक चुटकी सिन्‍दूर का,

उजाड चुके तुम बहुत ही

आशियाने' अखंड 

अब आशियानों को

बचाने की चाह करो

उजड ना पाये किसी का

आशियाना  यारो

अब तुम इसका प्रयास करो 

बहुत हेा चुका बर्बादी का

यह खेल दोस्‍तों

अब आत्‍महत्‍या नहीं,

आत्‍ममंथन करो

आत्‍ममंथन करो

मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी

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Comment

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Comment by ram shiromani pathak on November 10, 2013 at 8:00pm

सुन्दर रचना हुई है आदरणीय अखंड गहमरी जी…बहुत बहुत बधाई आपको। ..सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 10, 2013 at 9:50am

सार्थक सन्देश देती सुन्दर रचना के लिए बधाइयाँ...............

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 8:37pm

सुंदर संदेशपरक इस प्रस्तुति हेतु बहुत बहुत बधाई आ0 अखंड गहमरी जी.... आ0 प्राची जी की टिप्पणी पर ध्यान दीजिएगा.....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 9, 2013 at 4:58pm

आदरणीय अखंड गहमरी जी इस बेहतरीन रचना के लिये बधाई स्वीकार करें

Comment by annapurna bajpai on November 9, 2013 at 1:56pm

आ0 गहमरी जी सुंदर संदेश युक्त रचना हेतु बधाई । आ0 प्राची जी कथन विचारणीय है । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 9, 2013 at 1:44pm

आदरणीय प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें मैं स्वयं भी आदरणीय प्राची दीदी से सहमत हूँ उनकी बातों पर ध्यान दें.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 9, 2013 at 12:20pm

मानव हो तुम अडिग बनो  

संयोग से मिला है जीवन 

कायरता से नहीं

बहादुरी से सामना करो

लडो अपनी चुनौतियों से

जीतों जंग अपने लिये

अपनो के लिेये प्रयास करों

सफलता का,यश,जश का

रक्षा करो उस एक चुटकी सिन्‍दूर का,

अब आत्‍महत्‍या नहीं, आत्‍ममंथन करो - बहुत खूब | सार्थक रचना हुई है | हार्दिक बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 9, 2013 at 10:19am

आदरणीय अखंड गहमरी जी 

सार्थक कथ्य को प्रस्तुत किया है..

सपाटबयानी के कारण ये प्रस्तुति मुझे अतुकांत के स्थान पर एक उद्घोषणा / भाषण के जैसी प्रतीत हुई.. अतुकांत प्रस्तुतियों में गद्यात्मकता से बचना ज़रूरी है. सतत सजग पाठन करते रहिये अतुकांत प्रस्तुति के लिए कई आवश्यक तत्व स्वतः ही अभिव्यक्ति में आते जायेंगे.

इस प्रयास पर हार्दिक शुभकामनाएं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 8, 2013 at 10:00pm

सुन्दर सन्देश देती हुई प्रस्तुति ,बधाई आपको 

Comment by Meena Pathak on November 8, 2013 at 7:38pm

बहुत सुन्दर रचना | बधाई आप को 

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