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ग़ज़ल : हमेशा के लिए गायब लबों से मुस्कुराहट है

बह्र : हज़ज मुसम्मन सालिम
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,

हमेशा के लिए गायब लबों से मुस्कुराहट है,

मुहब्बत में न जाने क्यों अजब सी झुन्झुलाहट है,

निगाहों से अचानक गर बहें आंसू समझ लेना,
सितम ढाने ह्रदय पर हो चुकी यादों की आहट है,

दिखा कर ख्वाब आँखों को रुलाया खून के आंसू,
जुबां पे बद्दुआ बस और भीतर चिडचिड़ाहट है,

चला कर हाशिये त्यौहार की गर्दन उड़ा डाली,
दिवाली की हुई फीकी बहुत ही जगमगाहट है,

बदलने गाँव का मौसम लगा है और तेजी से,
किवाड़ों में अदब की देख होती चरमराहट है...

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by वीनस केसरी on November 3, 2013 at 12:14am

बाकी ग़ज़ल तो रवां दवां है मगर ....झुन्झुलाहट !!!! ये क्या होता है भाई

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 27, 2013 at 8:58am

बहुत ख़ूब आदरणीय .. मतले पर गुणी जनों ने अपने विचार रखें है जो विचारणीय है .. दिखा कर ख्वाब आँखों को रुलाया खून के आंसू, में 'रुलाये' करने से बेहतर होगा ऐसा मुझे लगता है...
एक बेहद कामयाब रचना के लिए बधाई   

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on October 26, 2013 at 11:17pm

चला कर हाशिये त्यौहार की गर्दन उड़ा डाली,
दिवाली की हुई फीकी बहुत ही जगमगाहट है,

बहुत खूब........बेहद उम्दा गजल कही आपने भाई !!!

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 26, 2013 at 8:58pm

आदरणीय अनन्त जी मेरे ज्ञान के अनुसार शब्द झुन्झुलाहट न होकर झुझुलाहट होता है। हो सकता है आप जिस क्षेत्र में रहते हों वहाँ झुन्झुलाहट का ही उच्चारण होता हो। पर विवाद में न पड़ कर बेहतर होगा कोर्इ नया शब्द जैसे तिलमिलाहट आदि का इस्तेमाल किया जा सकता है। गजल वाकर्इ लाजबाब है। बहुत बहुत बधार्इ। 

Comment by ram shiromani pathak on October 25, 2013 at 5:01pm

अपने तो भावों कि सरिता बहा दी, वाह भाई वाह बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय भाई अरुण शर्मा जी... //हार्दिक बधाई आपको


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Comment by शिज्जु "शकूर" on October 25, 2013 at 4:18pm

//निगाहों से अचानक गर बहें आंसू समझ लेना,
सितम ढाने ह्रदय पर हो चुकी यादों की आहट है// बेहतरीन!

पूरी ग़ज़ल लाजवाब है अरुण जी वाह! छू लिया दिल को दाद कुबूल करें

Comment by शकील समर on October 25, 2013 at 12:28pm

बेहद खूबसूरत भावों से सजी गजल के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीय अरुन शर्मा 'अनन्त'  सर।

मक्ते ने मुझे बेहद प्रभावित किया। सादर।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 25, 2013 at 12:20pm

अरुण जी ...निगाहों से अचानक गर बहें आंसू समझ लेना,
सितम ढाने ह्रदय पर हो चुकी यादों की आहट है,..इस बेहतरीन ग़ज़ल के इस शेर के लिए बिशेष रूप से तहे दिल बधाई ...

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 25, 2013 at 12:18pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय विजय सर आशीष यूँ ही बना रहे

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 25, 2013 at 12:18pm

हार्दिक आभार आदरणीय जीतेंद्र भाई जी

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