For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

      कविता सिर्फ भावाभिव्यक्ति नहीं होती बल्कि वह कवि की दृष्टि और अनुभूतियों से भी पाठक का परिचय कराती है। रचना में कवि का अस्तित्व तमाम बंधनों को तोड़कर बाहर प्रस्फुटित होता है। उसके द्वारा चुने गए शब्द उसके भावों को जीते हैं और उस चित्र को साक्षात पाठक के समक्ष जीवंत करते हैं जो कहीं दूर उसके मन के भीतर रचा-बसा और दबा होता है।

      छत्तीसगढ़ के कोरबा शहर में जन्मी और वर्तमान में कनाडा में रह रही नवोदित रचनाकार मानोशी का अंजुमन प्रकाशन, इलाहाबाद से प्रकाशित कविता संग्रह ‘उन्मेष’ मुझे प्राप्त हुआ। बंगाली साहित्य ने उन्हें साहित्य के प्रति प्रेरित किया। गायन में संगीत विशारद की उपाधि प्राप्त चुकी मानोशी के गीतों में उनका संगीत ज्ञान स्पष्ट परिलक्षित होता है। गीतों में उनकी पकड़ इतनी सशक्त है कि भाव स्वयं शब्द का रूप लेकर अभिव्यक्त हो जाते हैं। यह उदाहरण देखें-

‘इक सितारा माथ पर जो, उमग तुमने जड़ दिया था

और भॅंवरा रूप बनकर, अधर से रस पी लिया था

उस समय के मद भरे पल, ज्यों नशे में जी रही हूँ

      उन्मेष में संग्रहीत 30 गीतों, 21 गज़लों, 10 मुक्तछंद, 8 हाइकू रचनायें, 6 क्षणिकाएं और दोहों में कवियित्री के सृजन की विविधता के रंग बिखरे हैं। सभी विधाओं में इनकी कलम बहुत ही मजबूती से चली है। उन्हें विषयों के लिये श्रम नहीं करना पड़ता। अपने आस-पास के अनुभवों की उनके पास ऐसी विरासत है जो सहज ही उनकी रचनाओं में व्यक्त हो जाती है। विद्रुपताओं को भी उन्होंने एक सुन्दर रूप दिया है। वे कोई घिसा-पिटा मुहावरा लेकर नहीं चलतीं। उन्होंने प्रकृति की निकटता में जीवन की सच्चाइयों को बहुत ही सहजता से स्वीकार किया है। उनकी अनुभूतियों का पटल बहुत ही विस्तृत है। प्राकृतिक अनुभूतियों से लेकर जीवन की सूक्ष्मतम संवेदनाओं और दर्शन का स्पर्श पाठक को इनकी रचनायें पढ़ते समय होता है।

      प्राकृतिक सौंदर्य को जिस खूबसूरती से उन्होंने उकेरा है, उतनी गहनता और संलग्नता बहुत कम देखने को मिलती है। जैसे कोई चित्रकार कैनवास पर दृश्यों को उकेरता है, वही कार्य मानोषी ने अपनी कलम से किया है-

भोर भई जो आँखें मींचे

तकिये को सिरहाने खींचे

लोट गई इक बार पीठ पर

ले लम्बी जम्हाई धूप

      उनकी रचनाओं में भाषा और शिल्प सहज है। उनमें भाषा को लेकर विशेष आग्रह नहीं दिखता। सहजता से आए शब्द रचना के अंग हैं जो पाठक को अनुभूतियों के संसार में विचरण करने में सहायक हैं। प्रवाह में कोई भी शब्द बाधक नहीं बनता। सहज भाषा, सार्थक प्रतीकों और बिम्ब प्रयोगों ने रचनाओं की सम्प्रेषणीयता में वृद्धि की है। ये पंक्तियाँ देखें-

सन्नाटे की भाँग चढ़ाकर

पड़ी रही दोपहर नशे में

एक चटखारेदार उदाहरण और देखें-

खट्टे अंबुआ चख गलती से

पगली कूक कूक चिल्लाये

      रचना में किसी पंक्ति की शुरूआत यदि कारक से की जाए तो आभास यह मिलता है कि किसी वाक्य को तोड़कर दो पंक्तियाँ बना दी गयी हैं। खासकर, गीतों में इससे बचने का प्रयास जरूर करना चाहिए लेकिन लेखन की सतत प्रक्रिया में इस तरह की चीजें रह ही जाती हैं-

नंगे बदन बर्फ के गोलों

में सनते बच्चे, कच्छे में

      भाव संप्रेषण इनकी विशेषता है लेकिन कहीं-कहीं भाव उस तेजी से नहीं पहुँचते। पाठक को रूकना पड़ता है, ठहरना और सोचना होता है।

छटपट उसमें फॅंसी दुपहरी

समय काटने ठूँठ उगाती

      अनुभूतियों के विविध आयामों को जिस तरह उनकी रचनाओं में स्थान मिला है वह उनकी रचनाओं और इस संग्रह की उपलब्धि है। उनकी रचनायें तार्किकता के आधार पर बजबजाती भावुकता को अपने से दूर धकेलती हैं। मिथकों को नकारते हुए उन्होंने जीवन के सत्य को स्वीकारा है-

छूटे हाथों से खुशी, जैसे फिसले धूल।

ढूँढा अपने हर तरफ, बस इतनी सी भूल।

उनकी छंदमुक्त रचनायें सीधे बात करती हैं, बिना कोई ओट लिए-

घुटनों से भर पेट

फटे आसमाँ से ढक बदन

पैबंद लगी जमीं पर

सोता हूँ मैं आराम से।

      भीतर की पीड़ा को उन्होंने अपनी रचनाओं में प्रतिष्ठित कर समाज को दिशा देने की सफल चेष्ठा की है। जीवन के अस्तित्व के सवाल को बहुत खूबी के साथ उनकी रचना में उकेरा गया है। यथार्थ से परिचित कराती उनकी ये पंक्तियाँ-

वो आखिरी बिंदु

जहाँ ‘मैं’ समाप्त होता है

‘तुम’ समाप्त होता है

और बस रह जाता है

एक शून्य।

आओ उस शून्य को पा लें अब।

जीवन के विभिन्न पहलू उनकी रचनाओं में बहुत प्रमुखता से उभरे हैं-

तेरा मेरा रिश्ता क्या है

दर्द का आखिर किस्सा क्या है

उनका दर्द जब बयां होता है तो अपना सा लगता है। यह उनके रचनाकर्म की सशक्तता है।

कहीं बहुत कुछ भीग रहा था।

हर पंखुड़ी पर जमा थीं कई

पुराने उघड़े लम्हों की दास्ताँ,

एक छोटा सा लम्हा टपक पड़ा

मानोषी संघर्षों के सत्य को स्वीकारते हुए भी जीवन के प्रति सकारात्मक हैं।

कुछ मिले काँटे मगर उपवन मिला

क्या यही कम है कि यह जीवन मिला?

एक और उदाहरण देखें

दो क्षण के इस जीवन में क्या

द्वेष द्वंद को सींच रहे हो

सबसे कठिन दिनों के एकाकीपन को कितनी सुन्दरता से शब्द मिले हैं-

जब माँगा था संग सभी का

तब कोई भी साथ नहीं था

अब देखो एकांत मनाने जग-उन्माथ नहीं देता है

अपने को पहचानने की छटपटाहट उनकी रचनाओं में भी मुखरित हुई है-

और अकेले जूझती हूँ,

पहनती हूँ दोष,

ओढ़ती हूँ गालियाँ,

और फिर भी सर ऊँचा कर

ख़ुद को पहचानने की कोशिश करती हूँ

      प्रकृति के सानिध्य में पकी और जीवन को करीब से जीती मानोशी की रचनायें पाठक को एक सुखद अनुभव दे जाती हैं।

                                                                               -  बृजेश नीरज

                                                                  (मौलिक व अप्रकाशित)

!! पुस्तक विवरण !!

कवियत्री - मानोशी

प्रकाशन वर्ष - 2013

ISBN - 13 - 9788192774602

पृष्ठ संख्या - 112

बाईंडिंग - हार्ड बाउंड

प्रकाशक - अंजुमन प्रकाशन,  इलाहाबाद

                                                                               

Views: 1592

Replies to This Discussion

सर्वप्रथम आदरणीया मानोशी जी को उनकी पुस्तक संग्रह "उन्मेष" हेतु हृदयतल से हार्दिक बधाई एवं अनंत शुभकामनाएं, यह पुस्तक सभी पाठकों के ह्रदय को स्पर्श कर सके एवं उनके माप दंड पर खरा उतारे यही मंगल कामना करता हूँ. आदरणीय बृजेश भाई जी के द्वारा पुस्तक की समीक्षा बहुत ही सहजता सरलता एवं सुन्दरता से की गई है, एक एक बिंदु पर प्रकाश डाला है और उदाहरण के साथ प्रस्तुत भी किया है. छोटी छोटी सुन्दर पंक्तियाँ ही रचनाओं की परिपक्वता का आभास करा रही हैं, निःसंदेह यह पुस्तक पाठकों के ह्रदय को स्पर्श करेगी. ऐसी सुन्दर समीक्षा हेतु आदरणीय बृजेश भाई जी अनेक अनेक बधाई एवं शुभकामनाएं.

आदरणीय अरुन भाई आपका हार्दिक आभार! मेरे इस प्रथम प्रयास पर आपके शब्दों ने बहुत उत्सावर्धन किया है।

धन्यवाद अरुन जी। आप इस पुस्तक को अंजुमन प्रकाशन के वेबसाइट से प्राप्त कर सकते हैं। यह किताब बहुत जल्द फ़्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध होगी।

 

सादर,

मानोशी

आदरणीया मानोशी जी! को इस अभूतपूर्व उपलब्धि पर बधाई!
आदरणीय बृजेश जी की कलम के द्वारा मानोशी जी की किताब संग्रह 'उन्मेष' की खूबियाँ बहुत अच्छी तरह से वर्णित की गयी है, आदरणीय बृजेश जी का यह प्रयास हमें भली भांति पुस्तक से परिचित करा रहा है।   
पुस्तक पाठकों के अंतर को स्पर्श करे, यही कामना!
आदरणीय बृजेश जी को अनेक धन्यवाद समीक्षा हेतु! 

आदरणीया गीतिका जी आपका हार्दिक आभार! विशेष तौर पर आभार इसलिए भी कि आपने अपनी तमाम व्यस्तताओं के बीच मेरे इस प्रयास को देखा, पढ़ा।

धन्यवाद गीतिका जी। आप इस पुस्तक को अंजुअन प्रकाशन के वेबसाइट से प्राप्त कर सकती हैं। यह किताब बहुत जल्द फ़्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध होगी। 

सादर,

मानोशी

पहले तो आदरणीय बृजेश जी आप का बहुत बहुत दिली आभार जो इतनी सुन्दर पुस्तक की इतनी
सुन्दर समीक्षा आपने रखी और समीक्षक का जो गुण होता है मेरे हिसाब से वो ये कि उसकी समीक्षा
पुस्तक के लगभग उन हर पहलुओं को छुए जो उस पुस्तक का मुख्य आधार होते हैं , और आप इस
छोटी सी समीक्षा में पूरे सफल मालुम पड़ते हैं आपकी शैली प्राकृतिक और धारा प्रवाह है आपने
पुस्तक का सारा रस निचोड़ के जो हमारे सामने रखा है उसके लिए एक बार पुनः ह्रदय से आभार
प्रकट करता हूँ , निसंदेह ये मंनोशी जी की बहुत उत्कृष्ट रचना है जो आप हमारे सामने लेकर आये
सच में बहुत में बहुत सुन्दर कविता लिखी उन्होंने ,

तेरा मेरा रिश्ता क्या है

दर्द का आखिर किस्सा क्या है
आदरणीया मानोशी जी ने यह साबित कर दिया की साधारण जीवन में ही छुपी होती हैं कितनी गहरी बातें
यही तो कवि की आँख है यही तो है उसकी दार्शनिकता सब वही जीवन जीते हैं पर उसे जीकर भी समझ
नही पाते पर कवी तो जीवन के एक एक पहलू को गौर से देखता है .....उसको समझता है और उसे कहने
की कोशिश करता है .........
आप ने जो इतनी सुन्दर पुस्तक की इतनी सुन्दर समीक्षा प्रस्तुत की उसके लिए एक बार पुनः कोटि कोटि
आभार ।
सादर ।

आदरणीय नीरज जी आपका बहुत बहुत आभार! आपकी विस्तृत टिप्पणी ने मनोबल बढ़ाया है।

आदरणीया मानोशी जी को "उन्मेष" के लिए हार्दिक बधाइयाँ व्  शुभकामनायें

आदरणीय बृजेश जी

आपका हृदयतल से शुक्रिया आपने विस्तारपूर्वक , आदरणीया मानोशी जी द्वारा लिखित "उन्मेष" की समीक्षा से साहित्य में एक अनुपम कार्य किया

सादर !!

आदरणीय जितेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार!

शुक्रिया जितेंद्र जी।  आप इस पुस्तक को अंजुअन प्रकाशन के वेबसाइट से प्राप्त कर सकते हैं। यह किताब बहुत जल्द फ़्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध होगी।

सादर,

मानोशी

आदरणीय बृजेश जी,

मेरी किताब उन्मेष की समीक्षा हेतु धन्यवाद। आपने मेरी रचनाओं को ध्यानपूर्वक पढ़ा और अपना इतना समय दिया। आप सभी का आशीर्वाद बना रहे, यही कामना है।

सादर,
मानोशी

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"सभी सदस्यों को सादर अभिवादन।"
56 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"1212 1122 1212 22/112) * नशा ये इश्क़ का इसमें तो बेख़ुदी न मिला गमों का दौर है भाया खुदा खुशी न…"
57 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"तू शर्बतों में ये नफ़रत की शोरिशी न मिला  ओ बाबा खीर के प्यालों में तुर्शगी न…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदाब अर्ज़ है महफ़िल-ए-मुशायरा। "
1 hour ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"स्वागतम"
1 hour ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मंच संचालक जी , मेरी रचना  में जो गलतियाँ इंगित की गईं थीं उन्हे सुधारने का प्रयास किया…"
Monday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 178 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत रोला छंदों पर उत्साहवर्धन हेतु आपका…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"    आदरणीय गिरिराज जी सादर, प्रस्तुत छंदों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी छंदों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिये हार्दिक आभार "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service