For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

१२ मार्च की काव्य-गोष्ठी : एक रिपोर्ट // --सौरभ

साहित्य का संसार रचनाओं के पठन-पाठन के अलावे सद्साहित्य के संसरण और इसी क्रम में इसके संवर्धन के कार्य की अपेक्षा करता है. साहित्यिक गोष्ठियाँ या अदबी नशिश्त इस कार्य हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण इकाइयाँ हैं. आत्मीय माहौल में रचनाकार की रचनाओं को सुनना तथा उन रचनाओं से जुड़े अन्य तमाम पहलुओं को उन रचनाकारों से सुनना अक्सर सामुदायिक कार्यक्रमों या आयोजन में न संभव हो पाता है न इसका वहाँ उचित वातावरण ही होता है.

शहर की गोष्ठियों और सम्मेलनों में शिरकत करते रहने के क्रम में कई सुखनवर, कई साहित्यिक सज्जनों से आत्मीय रिश्ता-सा बन गया है. इन सुधीजनों का साहित्य के प्रति अनुराग न केवल चकित करता है बल्कि उनका व्यक्तिगत समर्पण हिन्दी-उर्दू जैसे वर्गों-अनुवर्गों को खुल्लमखुल्ला नकारता हुआ आम जन की बोलचाल की भाषा को अपना हेतु समझता है, जहाँ आम जन का सुख, दुख, व्यवहार, भरोसा, रिश्तों की कश्मकश और उत्साह स्वर पाता है.

कहते हैं, विचारों की नींव पर बना रिश्ता अन्य किसी नींव पर बने रिश्तों से कहीं अधिक स्थायी और सार्थक होता है.


वीनसभाई का मुझे इसी महीने की ९ तारीख की सायं फोन पर ये सूचना देते हुए कहना कि विवेक मिश्र सोलन (हिप्र) से १२ मार्च को नैनी, इलाहाबाद में होंगे क्यों न इस क्रम में नैनी स्थित मेरे आवास पर एक अनौपचारिक काव्य-गोष्ठी का आयोजन हो जाय. समझिये तो बातें भले वीनसजी की थीं, लेकिन मेरे सोचे को ही स्वर मिल रहा था ! एक अरसे से मेरी  इच्छा थी कि इलाहाबाद के आत्मीय सुधीजनों की सात्विक उपस्थिति से अपने आवासीय वातावरण को कभी तरंगित करने के अवसर पाता.  अतः, इससे पहले कि वीनसजी की बात पूरी होती, मैंने एकदम से हाँ कर दिया. साथ ही, यह भी जड़ दिया कि वे इस नितांत पारिवारिक वातावरण में आयोजित कार्यक्रम हेतु आत्मीय जनों को सूचित कर दें और कुछ अपनों को मैं सूचित कर दूँगा. 

१० मार्च को महाशिवरात्रि के अवसर पर गंगा-स्नान, पूजा-अर्चन और उपवास के बाद ११ मार्च को लोगों को सूचित करने का क्रम प्रारंभ हुआ. कई-कई विन्दुओं के आलोक में कवियों और ग़ज़लकारों के नामों पर चर्चा कर मैं और वीनसजी ने कुछ नामों पर अपनी परस्पर सहमति कायम की. १२ मार्च को गोष्ठी का समय सायं चार बजे नियत हुआ ताकि वह साढ़े चार तक प्रारंभ हो जाय.


समयानुसार वीनसभाई, फ़रमूद इलाहाबादी, तलबजौनपुरी, रमेश नाचीज़, विवेक मिश्र, शक्तीश सिंह, प्रो. कर्णाकान्त तिवारी, प्रो. विभाकर डबराल, घनश्यामजी, अश्विनी कुमार, शुभ्रांशु पाण्डेय और मैं हाल में उपस्थित हो गये. कुछेक अपेक्षित कवि और ग़ज़लकार कतिपय व्यक्तिगत कारणों से चाह कर नहीं आ पाये, जिनकी कमी सभी ने महसूस किया. वीनसजी ने संचालन का दायित्व स्वीकार किया तथा गोष्ठी की अध्यक्षता के लिए तलबजौनपुरी का नाम सहर्ष अनुमोदित हुआ. सामुहिक तौर पर यह सर्वमान्य हुआ कि प्रस्तुतकर्ताओं पर सिर्फ़ एक रचना या एक ग़ज़ल की बंदिश न लगायी जाय. बल्कि रचनाकार तीन से चार रचनाएँ या ग़ज़ल प्रस्तुत करें. इसके अलावे श्रोताओं के अनुरोध पर रचनाकार-कवि इस संख्या के आगे भी जा सकते हैं.


कार्यक्रम फ़रमूद भाई की हास्य-ग़ज़लों सेशु्रु हआ. फ़रमूद भाई अपनी चुटीली और हास्य ग़ज़लों के लिए इलाहाबाद ही नहीं राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुशायरों में आज जाने-माने नाम हैं. बेशक कहा जा सकता है कि आपने इलाहाबाद में अकबर इलाहाबादी की परिपाटी और उनके अंदाज़ के परचम को बखूबी संभाला हुआ है. आपकी हास्य ग़ज़लों का प्रस्तार वास्तव में अत्यंत व्यापक है.
आपने हास्य ग़ज़ल प्रस्तुत करते हुए उनके पीछे की घटनाओं का भी दिलचस्पघटनाएँ सुनायीं इससे प्रस्तुतियों का असर दूना होगया था.


काश गर्मी के महीनों में भी जाड़ा होता
तो शबेवस्ल का मेरी यों न कबाड़ा होता
कैस ने फाड़ लिये जोशेजुनूं में कपड़े
पैरहन हमने तो लैला का ही फाड़ा होता


या,
रटता आया रट्टू तोता आता जाता कुछ नहीं
बना है ’अकबर’ का पोता आता जाता कुछ नहीं.. 


आपकी ग़ज़लों के बाद तो महफ़िल एकदम से परवान चढ गयी. ’अकबर’ का संदर्भ इतना सटीक था कि हँसते-हँसते श्रोतागण के दोहरे हो गये.


फ़रमूद भाई के बाद घनश्यामजी ने अपनी एक ग़ज़ल और कतिपय दोहे छंदों से सभी का मन जीत लिया. घनश्याम जी का साहित्यानुराग प्रशंसनीय ही नहीं अनुकरणीय भी है. आपके दोहे पूरी तरह से छंद शिल्प और कथ्य के तथ्य को संतुष्ट करते हैं.  आपके दोहों का कथ्य इतना व्यापक और आधुनिक परिवेश से उपजे मानवीय कश्मक को सस्वर करता हुआ था कि सभी उपस्थित सुधीजन वाह-वाह कर उठे.


रोजी-रोटी के लिए, भटक रहे हैं लोग
कहने को तो है यहाँ, बड़े-बड़े उद्योग ॥


शुभ्रांशुजी हास्य की गद्यविधा में तेज़ी से उभरते हुए नाम हैं. आपकी शैली चुटीली तथा किस्सागोई अत्यंत मुखर है. गद्य-हास्य ’खाली ज़मीन’ में आपने आज की आवासीय कॉलोनियों में नवधनाढ् दबंगों की ’हड़पाऊ’ संस्कृति पर ग़ज़ब का वार किया है. आपकी लेखन क्षमता का लोहा एक तरीके से सभी ने माना.

विवेक मिश्रा ने अपनी एक प्रखर ग़ज़ल से उपस्थित समुदाय को चकित कर दिया. आपके लगभग सभी अश’आर ग़ज़ब कर रहे थे !

 
एक मुसलसल जंग सी जारी रहती है --
जाने कैसी मारा मारी रहती है ॥
इक ख्वाहिश की ख़ातिर ख़ुद को बेचा था
अब तक शरमाई, खुद्दारी रहती है ॥

कहना न होगा, विवेक ने इस ग़ज़ल की सोच और शेरों के अंदाज़ पर खूब वाहवाहियाँ बटोरीं.


प्रो. करुणा कात तिवारी ने सरकारी मौसम विभाग को इंगित कर बहुत सटीक हास्य कविता पढी.
तूफ़ान से पीड़ित महिला ने कहा
खबर भी सुनी थी
और जान भी प्यारी थी
पर विश्वास नहीं हुआ
क्योंकि खबर सरकारी थी. ..

वीनस केसरी ने अपनी ग़ज़लों से समा को ऐसा बाँधा कि माहौल अश-अश कर उठा.

 

शाम ढलते उतर रहा होगा
जो कभी दोपहर रहा होगा ॥
मंज़िलें जैसे तंज हों मुझपर
सोचिये क्या सफ़र रहा होगा ॥

या,
खुद को समझे बिन किसी को क्या समझ पाऊंगा मैं,
इसलिए अब खुद से खुद का इक सफ़र मेरा भी है |

या,

मैंने पल भर झूठ-सच पर तब्सिरा क्या कर दिया,
रख गए हैं लोग मेरे घर के बाहर आइना |





प्रस्तुत रिपोर्ट का लेखक इस ख़ाकसार ने भी जो बन सका प्रस्तुत किया जिसमें फ़ागुनी दोहों और दो-एक ग़ज़लों का पाठ पसंद किया गया.


फगुनाई  ऐसी  चढ़ी,  टेसू धारें आग
दोहे तक तउआ रहे, छेड़ें मन में आग॥

बोल हुए मनुहार से, आकुल मन तस्वीर
मुग्धा होली खेलती, गद-गद हुआ अबीर ॥


या, ग़ज़ल -
सूरज भले पिघल कर बेजान हो गया है ।
इस धुंध में अगन है.. तूफ़ान पल रहा है ॥


ग़र खंडहर चिढ़े हों ख़ामोश पत्थरों से  
ये मान लो कि जुगनू को ख़ौफ़ रात का है !!

सुधीजनों की उदार हौसलाअफ़ज़ाई के हम सदा आभारी रहेंगे.  अपनी रचना ’पान-सुपारी..’ का भी हमने पाठ किया, जिस हेतु सभी सुधीजनों की विशेष मांग थी. 



रमेश नाचीज़ ने फागुनी दोहों के अलावे ग़ज़लें भी कहीं जिसकी भूरि-भूरि प्रशंसा हुई.
लिक्खो ज़िन्दाबाद लिखो
भगतसिंह आज़ाद लिखो
भ्रष्टाचार में देश अपना
है तो है उस्ताद लिखो
अदबी राजधानी में लोगो
लिखो, इलाहाबाद लिखो


यह अवश्य था कि आपके इन फागनी दोहों का उन्मुक्त हुलास सभी को तिर्यक मुस्कानों में लिपटी परस्पर कनखियों से देखने को बाध्य कर रहा था. बाद में, माहौल ’बुरा न मानों होली है’ करता हुआ आगे बढ़ गया.


अध्यक्षता कर रहे तलबजौनपुरी साहब की ग़ज़लों का अपना एक अलग अंदाज़ है. आप अपनी ग़ज़लों में फ़लसफ़ाना फ़िक़्र को बड़ी काबिलियत से पगाते हैं.

महारत हमको हासिल ’तलब’ मर्दुम शनासी में -
मुखौटे तुम लगाओ लाख हम पहचान लेते हैं ॥



अल्पाहार में जो कुछ बन पड़ा नीचे रसोई से उपलब्ध कराया गया.

गोभी के, प्याज के, साबुदाना-आलू के गर्मागर्म पकौड़ों का मनोहारी स्वाद, इमली की चटनी का खटमिट्ठापन, भरवां कचौरियों का खास्तापन, पुदीने की चटनी का चटखारापन , मसालेदार खास्ता मठरियों मुँह में जाते घुलते जाना, कलाकन्द की मुलायम मधुरता बार-बार खाली होते प्लेटों को खाली न रहने देने को बाध्य करतीं रही. आखीर में गर्मागर्म फेनिल कॉफ़ी का स्वागत तो यों हुआ मानों सारी जिह्वाएँ और सारे कण्ठ तर होने को आतुर बैठे हों. 

यह सारा कुछ घरेलू रसोई के ही सौजन्य से था.  इन प्रस्तुतियों में माताजी के स्नेहिल स्पर्श तथा स्नेहाशीष और बहुओं की संलग्नता तथा भावमय समर्पण को सभी ने महसूस किया.

सायं आठ बजे तक चली इस काव्य-गोष्ठी ने उस रोज़ की सध्या को लगभग बाँधे रखा था. गोष्ठी पर अश्विनीकुमार और प्रो. विभाकर डबराल ने अपने-अपने मंतव्य दिये. इस आयोजन की सफलता को सभी ने मुखर रूप से स्वीकारा.

**************

--सौरभ

Views: 2283

Reply to This

Replies to This Discussion

आभार-आदरणीय-

सादर-

धन्यवाद भाईजी.. . 

आदरणीय सौरभ जी,

सादर सुप्रभात !

सुबह सुबह काव्य- गोष्ठी की विषद रिपोर्ट पा कर मानों कोई खूबसूरत तोहफा मिल गया हो... बहुत बहुत आभार आदरणीय वरना पाठकजनों को सिर्फ फोटो ही देख टुकड़ों टुकड़ों में आप सब द्वारा अयोजित काव्य-संध्या का आनंद आ रहा था.

इस तरह की विषद रिपोर्ट्स  वस्तुतः एक चेतना को साँझा करती हैं, जिनके आवरण में सुधि पाठकजन साहित्यिक प्राणवायु की सुगंधि में जी भर साँस ले पाते हैं और खुद की चेतना को साहित्य की सकारात्मक ऊर्जा से जोड़ पाते हैं.

पारिवारिक माहौल में रखी गयी इस अनौपचारिक काव्य-गोष्ठी के आयोजन की सात्विक पृष्ठ्मूमि, आयोजन की तैयारियों, निमंत्रण (सूचना ),  सब कुछ साँझा कर, कितनी सहजता व सुहृदयता से ऐसी गोष्ठियों को आयोजित किया जाना चाहिए ये सभी को बताया है. 

वीनस जी , फ़रमूद इलाहाबादी जी , तलबजौनपुरी जी , रमेश नाचीज़ जी , विवेक मिश्र जी , शक्तीश सिंह जी , प्रो. कर्णाकान्त तिवारी जी , प्रो. विभाकर डबराल जी , घनश्यामजी, अश्विनी कुमार जी , शुभ्रांशु पाण्डेय जी और आपकी गरिमामय उपस्थिति और काव्य-पाठ से यह काव्य-संध्या कितनी सफल व संतुष्टि प्रदायक  रही होगी, यह रिपोर्ट को पढ़ कर सहज ही ज्ञात हो रहा है.

सबसे खास बात इस काव्य गोष्ठी की कि, कविजन कितनी भी रचनाएँ पढ़ सकते थे और अपनी रचनाओं पर चर्चा भी कर सकते थे यह रही.. 

साथ ही रसोई से बने गरमागरम पकौड़ों और विविध चटनियों के चटकारों के ज़िक्र, कलाकंद की मिठास और साथ ही साथ गरमागर्म फेनिल कॉफी के स्वाद नें इस रिपोर्ट को बिलकुल जीवंत बना दिया. घर की स्त्रियों के सहयोग से इस गोष्ठी को एक सुलभ आधार मिला और भावमय समर्पित ऊर्जस्विता मिली, इसे पाठक जन भी महसूस कर पा रहे हैं.

इस काव्य-गोष्ठी के सफल आयोजन के लिए आपको , संचालन के लिए आदरणीय वीनस जी को, और इस खूबसूरत रिपोर्ट के लिए आपको कोटिशः बधाई आदरणीय.

शुभकामनाएं.

सादर.

//इस तरह की विषद रिपोर्ट्स  वस्तुतः एक चेतना को साँझा करती हैं, जिनके आवरण में सुधि पाठकजन साहित्यिक प्राणवायु की सुगंधि में जी भर साँस ले पाते हैं और खुद की चेतना को साहित्य की सकारात्मक ऊर्जा से जोड़ पाते हैं.//

इस रिपोर्ट के हेतु को इतनी स्पष्टता से स्वर देने के लिए आपका सादर धन्यवाद, आदरणीया.

//घर की स्त्रियों के सहयोग से इस गोष्ठी को एक सुलभ आधार मिला और भावमय समर्पित ऊर्जस्विता मिली,//

आदरणीया, किसी भी आयोजन की वास्तविक सफलता नेपथ्य से मिले निष्काम सहयोग का ही प्रतिफल होता है. जिस तल्लीनता और समर्पण भाव से घरों की महिलाएँ सहयोग करती हैं यदि उसे यथोचित आदर न मिले, धन्यवाद एवं प्रतिष्ठा न मिले तो यह कार्यक्रम की सफल संपन्नता के पश्चात अपनायी गयी कृतघ्नता ही होगी.

इस आयोजन की रपट पर आपकी प्रतिक्रिया और उत्साहवर्द्धन के लिए सादर धन्यवाद.

आदरणीय सौरभ जी,

 

काव्य-गोष्ठी का वृतांत रोचक है ... इसलिए भी कि आपने हम सभी के आनन्द के लिए

कविताओं के अंश साझे किए हैं ... और फिर पकोड़े, मिठाई और काफ़ी का स्वाद तो अब

हमारे मुँह में भी आ गया।

 

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर

 

सादर धन्यवाद, आदरणीय विजय जी.. .

आदरणीय!
वाह वाह ....आँखों पढ़ी रिपोर्ट में इतना आनन्द है तो आँखों देखी और कानो सुनी में तो जाने क्या होता!
सादर वेदिका 

सही कहा है आपने, वेदिकाजी. 

उक्त संध्या के दूसरे दिन हम आनन्द के सागर में हिलोरें लेते हुए देर सुबह तक सोते रहे थे.  ..   :-))))))

 विद्यार्थी जीवन से ही  बतौर श्रोता कवि सम्मेलनों में जाने का शौक रहा है, जहाँ गंगा-जमनी तहजीब देखने को मिलती है | 

एक युवा संगठन का महामंत्री रहते जयपुर के मुख्य जौहरी बाजार में होली के दिन अ.भा. स्तर का हुड़दंग-८२ आयोजित करने का

सौभाग्य आज तक अविस्मरनीय है | 

आदरणीय सौरभ जी के यहाँ कवि गोष्ठी की रिपोर्ट पढ़ कर उपस्थित श्रोता जैसा ही आनंद आ गया | फरमूद भाई की ये हास्य गजल 

काश गर्मी के महीनों में भी जाड़ा होता
तो शबेवस्ल का मेरी यों न कबाड़ा होता-  बहुत अच्छी लगी | 

घनश्याम जी का यह  यथार्थ दोहा भी बहुत खूब है - 

रोजी-रोटी के लिए, भटक रहे हैं लोग
कहने को तो है यहाँ, बड़े-बड़े उद्योग ॥-  

श्री वीनस जी की गजले तो ओ बी ओ पर पढ़ते ही रहते है | उन्हें बोलते देखने का सौभग्य नहीं मिला | 

और सौरभ जी आपकी तो हर तरह की छंद रचना लाजवाब होती है, आडियों के माध्यम से आवाज भी बेहद कर्ण प्रिय लगी है | गोष्ठी में ये दोहा और गजल

लाजवाब लगा -

बोल हुए मनुहार से, आकुल मन तस्वीर 
मुग्धा होली खेलती, गद-गद हुआ अबीर ॥  

या, 

सूरज भले पिघल कर बेजान हो गया है ।

इस धुंध में अगन है.. तूफ़ान पल रहा है ॥

आपका  और इस गोष्ठी के लिए सुझाव के लिए श्री वीनस जी का हार्दिक आभार 

 

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी,  यह बहुत अच्छा लगा कि आपके पास अखिल भारतीय स्तर का आयोजन कराने का महती अनुभव है.

आपको मेरी रपट का कथ्य और शैली रोचक लगी इस हेतु मैं आपका आभारी हूँ.   आपने तो उक्त गोष्ठी के किसी श्रोता की तरह अपनी टिप्पणी की हैं.

//सौरभ जी आपकी तो हर तरह की छंद रचना लाजवाब होती है, आडियों के माध्यम से आवाज भी बेहद कर्ण प्रिय लगी है//

आदरणीय, मैंने तो इस गोष्ठी में पढ़ी रचनाओं क ऑडियो या वीडियो नहीं लगाया है. आप अवश्य ही अन्य ऑडियो का उद्धरण दे रहे हैं.  इस आयोजन में अपने पाठ का वीडियो संभव हुआ तो लगाऊँगा.

सधन्यवाद

सुबह-सुबह संगम स्नान, दोपहर में, वीनस जी के साथ, साहित्यिक पुस्तकों की खरीददारी और शाम को, उच्च कोटि के कवियों / शायरों से एक साथ मुलाक़ात.. अहा.. वह दिन भला कभी भूलेगा भी..

मैं तो फरमूद साहब के 'धत्त तेरे की' और 'तुझे ऐ गन्दगी! हम दूर से पहचान लेते हैं" का कायल हो गया.

फिर आपका वो शे'र-- "साधना है, योग है, व्यायाम है / घर चलाना घोर तप का नाम है /" अभी भी गुनगुना रहा हूँ. दो मिसरों में इतना बड़ा जीवन दर्शन.. उफ़्फ़..
वीनस जी का 'हमका का' पहले भी फोन पर सुन चुका हूँ, पर रू-ब-रू सुनने का अलग ही लुत्फ़ रहा.
और अंत में 'प्याज' की पकौड़ियों के साथ पुदीने की चटनी का सुख, मेरे जैसे हॉस्टलर / बैचलर से ज्यादा कौन समझ सकता है भला. :)))

सही मायनों में, मेरी इलाहाबाद यात्रा २००% सफल रही.
कार्यक्रम के संचालन के लिए वीनस जी को तथा इस सफल आयोजन और उसकी रिपोर्ट प्रस्तुति के लिए आपको, हार्दिक बधाई.

बार बार आओ भाई इसी बहाने सौरभ जी के यहाँ पकौड़ी काफी ...... ;))))

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत दोहे चित्र के मर्म को छू सके जानकर प्रसन्नता…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर,  प्रस्तुत दोहावली पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आर्ष ऋषि का विशेषण है. कृपया इसका संदर्भ स्पष्ट कीजिएगा. .. जी !  आयुर्वेद में पानी पीने का…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत दोहों पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service