आदरणीय साथियो,
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आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। कई सालों बाद लघुकथा का प्रयास किया है। अभी गुंजाइश है। कसावट का प्रयास करता हूं। सादर
आदरणीय मिथिलेश जी, इतना ही कहूँ, ... ' पहचान पता न चले। बस। ' रहस्य - रोमांच का बेहतर सामंजस्य। बधाइयाँ।।
आदरणीय मनन कुमार सिंह जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर
लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी हो चुके पिता का दर्द कहती हुई बहुत भावुक पंक्तियाँ हैं ये। पहचान विषय को सार्थक करती एक शानदार लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय मिथिलेश जी। ये अवश्य है कि कुछ एक जगह पर कसावट और स्पष्टता की गुंजाइश दिख रही है
आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर।
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और प्रोत्साहन हेतु।
पहचान की परिभाषा कर्म - केंद्रित हो, वही उचित है। आदरणीय उस्मानी जी, बेहतर लघुकथा के लिए बधाइयाँ प्रेषित हैं।
तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई हेतु।
आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के जीवन के विभिन्न चरणों—नवविवाहिता, पत्नी, माँ, सास, और अंत में एक अकेली वृद्धा—को प्रभावी ढंग से क्या ही खूब दर्शाया है आपने। यह लघुकथा रैखिक समयरेखा में चलती है, जो पाठक को नायिका के जीवन की यात्रा को समझने में मदद करती है। प्रत्येक अनुच्छेद एक नई भूमिका और उससे जुड़ी पहचान को उजागर करता है, जो समाज द्वारा उस पर थोपी गई है। अंतिम पंक्ति में उसकी मृत्यु के बाद भी उसकी पहचान को "बॉडी" के रूप में संबोधित करना कथा को एक मार्मिक और शीर्षक को सार्थक करता अंत प्रदान कर रहा है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर
लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी
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