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आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
विषय : साथी/जीवन साथी
अवधि : 30-08-2024 से 31-08-2024 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, 10-15 शब्द की टिप्पणी को 3-4 पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाए इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

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आदरणीया बबिता जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर

साथ थी! (लघुकथा):


उनके दोनों बच्चे विदेश में अपने -अपने परिवारों के साथ वहां की जीवन शैली में किसी तरह जी रहे थे। यहॉं ये दोनों पति-पत्नी यहॉं की पारम्परिक जीवनशैली में किसी तरह जी रहे थे। वहॉं वालों की अपनी अच्छी या बुरी मिलीजुली परिस्थितियाॅं थीं। यहॉं वालों की यहॉं वाली परिस्थितियाॅं! वहॉं से इनके लिए आभासी औपचारिकतायें मात्र सम्पन्न हो रहीं थीं। यहॉं वाले बच्चों और नाती-पोतों के लिए सच्चा प्रेम जताते -जताते अब औपचारिक होने लगे थे। अतीत की यादें सबके साथ थीं ही।
यहॉं पत्नी गंभीर रूप से पक्षाघात से पीड़ित थीं और पति ही उनकी वैसी देखभाल कर रहे थे जैसी पहले कभी की ही नहीं थी या नौकरी की व्यस्तता के चलते कर ही नहीं सके थे। पत्नी उनसे आजकल की सेवा पाकर हतप्रभ भी थी और ख़ुश भी। लेकिन अतीत की यादें तो साथ थीं ही...मीठी कम और कड़वी अधिक। दरअसल आज जब पति ने पत्नी को व्यायाम कराते समय भावुकता में गले से लगा कर मुहब्बत का इज़हार करना चाहा, तो एक कुटिल मुस्कुराहट के साथ पत्नी के माथे पर सिलवटें उभर आईं और उसने पीछे मुॅंह मोड़ लिया। पति हतप्रभ भी था और शर्मिंदा भी। अतीत की कड़वी यादें जो साथ थीं।


(मौलिक व अप्रकाशित)

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी ।आपकी चिर परिचित शैली में एक नये विषय में वर्तमान जीवन शैली की दुश्वारियों और विषमताओं को उजागर करती एक मनोवैज्ञानिक विचारधारा से ओतप्रोत बेहतरीन लघुकथा।

मौके
नीकू भाई और भीखू दा फिर से दोस्त हुए।उनकी राजनीति की धाराएं अब  सामनधर्मा हो गईं।बेचारे कक्काजी की शामत आ गई।उनके यहां एक पुलिसिया छापा पड़ा।खबर आई कि उनके यहां से गैर लाइसेंसी हथियार ,कारतूस  वगैरह बरामद हुए हैं।कक्काजी को जेल हुई। अब  जाकर कक्काजी से भीखू  की रंजिश परवान चढ़ी।उसके यहां जलसे हुए। खुशियां मनाई गईं।
फि नीकू भीखू  की दोस्ती टूटी।उधर कक्काजी के केस की सुनवाई में हथियार की बरामदगी छापे की तिथि के बाद की पाई गई।मामला खारिज हो  गया।उधर भीखू का जमीन घोटाला वाला केस खुल गया। नीकू -कक्का  गले मिले।उन्होंने फिर से जीवन भर साथ रहने कसमें खाई।
"मौलिक एवं अप्रकाशित"

आदाब। दोस्ती और दुश्मनी भी जीवन के साथी होते हैं बारी-बारी से।‌ सच्चे दोस्त ही साथी होते हैं। विषय को एक दूसरे कोण से लेते हुए बढ़िया रचना।‌ हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। कुछ टंकण त्रुटियाॅं रह गई हैं।

आ. भाई मनन जी, अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।

आदरणीय मनन कुमार सिंह जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर

तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब तेजवीर सिंह साहिब प्रोत्साहन और मार्गदर्शन हेतु।

आ. भाई शेख शहजाद जी, अभिवादन।अच्छी लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।

शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी।

आदरणीय उस्मानी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब।

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