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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-138

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 138वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा जनाब नज़ीर अकबराबादी साहब की गजल से लिया गया है|

"जिस के ऊपर दो घड़ी हो मेहरबानी आप की"

  2122          2122        2122        212

फ़ाइलातुन    फ़ाइलातुन     फ़ाइलातुन     फ़ाइलुन

बह्र: बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़

रदीफ़     : आप की

काफिया : आनी (निशानी, मानी, कहानी, जानी आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है. मुशायरे की शुरुआत दिनांक 28 दिसंबर दिन मंगलवार को हो जाएगी और दिनांक 29 दिसंबर दिन बुधवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

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मंच संचालक

राणा प्रताप सिंह 

(सदस्य प्रबंधन समूह)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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अभी मतले और मक़्ते पर और मिहनत करें ।

आदरणीय सर जी, नमस्कार

एक और कोशिश की है कृपया देखिएगा--

सादर

चाहता है दिल अगर ये पासबानी आपकी
हम पे क्यों होती नहीं फिर मेहरबानी आपकी।1

प्यार था जब दिल हमारे पास आए थे "रिया" "
दूर लेकर जा रही है बदगुमानी आपकी।7

'चाहता है दिल अगर ये पासबानी आपकी
हम पे क्यों होती नहीं फिर मेहरबानी आपकी'

सानी में 'हम पे' की जगह "इस पे" कर लें ।

मक़्ता यूँ कर लें:-

'ज़ीस्त की दुश्वार राहों पर हमेशा ही 'रिया'

काम आई है हमारे हक़ बयानी आपकी'

आदरणीय सर जी, अभिवादन

बहुत बहुत बहुत शुक्रियः आपका,

आपकी इस्लाह के बाद ख़ूबसूरत मतला और मक़्ता हुआ।

सादर

आदरणीया ऋचा जी तरही मिसरे पर उम्दा ग़ज़ल कही आपने पाचवे शेर के सानी  में सबने मानी बाकी मिसरे से अलग सा  लग रहा है मकते में भी काफिया रदीफ कुछ अलग से लग रहे हैं । इस उम्दा कोशिश पर दिली मुबारक बाद पेश है  गिरह अच्छी लगी । बहुत बहुत बधाई 

आदरणीय रवि जी, नमस्कार

बहुत बहुत शुक्रियः आपका,हौसला अफ़ज़ाई के लिए, जी सुधार की कोशिश की है।

सादर

आदरणीया ऋचा जी सादर अभिवादन, बहुत ख़ूब, आदरणीय कबीर सर की इस्लाह के बाद ग़ज़ल उम्दा हो गई, बहुत-बहुत बधाई

आदरणीया, नमस्कार

बहुत शुक्रियः आपका।

सादर

आदरणीया ऋचा यादव जी ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, शेष समर कबीर साहिब ने कह ही दिया है

आदरणीय नमस्कार

बहुत शुक्रियः आपका।

सादर

आदरणीय रिचा जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।

आदरणीय , नमस्कार

बहुत शुक्रियः आपका।

सादर

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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"अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय आपने आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह भी ख़ूब हुई है ग़ज़ल और निखर जायेगी"
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"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह हर ग़ज़ल पर बेहतरीन हुई है काबिल ए गौर है ग़ज़ल…"
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