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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-120

विषय - "अवसर"

आयोजन अवधि- 10 अक्टूबर 2020, दिन शनिवार से 11 अक्टूबर 2020, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 10 अक्टूबर 2020, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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स्वागतम

कुण्डलिया ः अवसर

अवसर .मिलता .जब उसे, करता .है .वो वार ।
कूट नीति .खाद्य .जिसकी, चालाकी अवतार।।
चालाकी ...अवतार, फिरे ..जब.. वोट ...माँगता ।
झुक- झुक जाता द्वार, खाक दर ब दर छानता।।
कह.. चेतन ..कविराय, विकल पसीने तर ब तर।
नेता ...माँगे. ..वोट, है  .जन - जन को अवसर।।

मौलिक एवंं अप्रकाशित

आ. भाई चेतन प्रकाश जी, सादर अभिवादन । प्दत्त विषय पर अच्छी कुंडली हुई है । हार्दिक बधाई ।

आदरणीय  चेतन भाई

अवसरवादी नेताओं  पर सुंदर कटाक्ष। हार्दिक  बधाई

कूट नीति .खाद्य .जिसकी,.........गेयता कुछ बाधित  है इसका विन्यास   3 3 2 3 2 में करके देखिए

है .जन - जन को अवसर। ....... मात्रा कम है

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बेहतरीन कुण्डलिया छंद हुआ प्रदत्त विषय पर। हार्दिक बधाई

सादर अभिवादन..

अवसर......कविता

अवसर....जीवन में
बार-बार नहीं आते...
परन्तु यह सच है कि
द्वन्द साथ भी लाते हैं
यह सार्वकालिक सत्य है
या कहूँ ध्रुव सत्य है कि
अवसर चुनौती के वाहक हैं
और कई विकल्पों में से एक चुनने का
दवाब सदैव अवसर के
मुँह बायें खड़़ा रहता है,
और, दवाब......जनाब,
एकबारगी आदमी को
किंकर्तव्यमूढ़ बना देता है,
त्रिशंकु बना देता है.........!
मानो आप भँवर में फँस जाते है
न रोते बन पड़ता है,
और न हँसते,,,,,
फिर भी डूबते उतराते रहते है आप
सोच के ठाठे मारते
सागर में......!
नास्तिक भी जपने लगते हैं
अपने भगवान को...।
या फिर अवसर कहता है,
"मत चूके चौहान"
आप अवसर वादी बन जाते है
मौसम वैज्ञानिक के खोल से
समय की नब्ज भाँप जाते है...
और, अन्ततोगत्वा आप

सफलता के पर्याय बन जाते हैं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

आदरणीय चेतन प्रकाश जी विषय आधारित अच्छी रहना के लिए सादर बधाई

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन । विषयानुरूप अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई।

आदरणीय चेतन प्रकाश जी ,सुंदर रचना

सुन्दर रचना

अवसर ( दोहे )

उद्यम के सौ  वर्ष भी,  राजनीति में व्यर्थ
एक घड़ी अवसर भरी, करती रही समर्थ।१।
**
पाने की यदि चाह हो, होता सफल प्रयास
हर अवसर बेकार है, आलस जिसके पास।२।
**
करता सोच विचार जो, अवसर का उपयोग
कहे उसे तो भाग्य भी, जीवन भर सुख भोग।३।
**
पीड़ित को ज्यों एक से, सावन पौष अषाढ़
भ्रष्टों को अवसर सदा, क्या सूखा क्या बाढ़।४।
**
बढ़चढ़ जो पहचानता, नित अवसर की धार
प्रतिभाशाली  है  वही,  कहता समय पुकार।५।
**
अवसरवादी नित रखे, सुनो सफलता हाथ
अवसर से  जो  चूकता, उद्यम कब दे साथ।६।
**
अवसर से मत चूकना, बन अर्जुन का तीर
भीष्म नहीं जो तू तजे, इच्छित समय शरीर।७।
**
सदा रखे व्यवहार जो, अवसर के अनुकूल
निश्चित उसको  ज्ञात  है, तालमेल का मूल।८।
**
एकलव्य  सी  रख  लगन, उद्यम  करना मीत
अवसर पाकर कर्ण कब, भाग्य सका है जीत।९।
**
बहती गंगा में न जो, धो पाया निज हाथ
हासिल होना कुछ नहीं, रहे ईश के साथ।१०।

-मौलिक /अप्रकाशित

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