For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अतुकांत : अमावस की कविता (गणेश बाग़ी)

सुबह-सुबह

सूरज को देखा
बहुत ही सुंदर

फूलों को देखा
बहुत ही प्यारे

रंग बिरंगी तितलियों को देखा
हृदय हुआ प्रफुल्लित

प्यारे प्यारे बच्चों को देखा
मन हुआ आनंदित

दोपहर में देखा
बादलों संग सूरज की लुका छिपी
आहा ! कितना सुंदर...

शाम को देखा
आकाश का सौंदर्य
पश्चिम दिशा की सुनहरी लालिमा
चिड़ियों का कौतुहल..

सब कुछ कितना सुंदर
कविता सृजन हेतु
सभी तत्व थे मेरे पास ।

बैठ गया लिखने
कविता..

तभी दूसरे कमरे से
समाचार की छन-छन आवाज आने लगी -


ड्रग का नशा
सत्ता का नशा
गुंडागर्दी
बलात्कार
कोरोना
समाज बाढ़ से तबाह
आह !

कविता छोड़, सोचा
चलो चाँद देखते हैं

छत पर गया
चाँद नहीं था
रात अमावस की थी ।

लौट आया कमरे में

ओह!
यह क्या !
कविता ने
आत्महत्या कर ली थी
मैं निश्शब्द था !

और......

पंखा निस्तब्ध !!
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 533

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 14, 2020 at 10:24pm

ग़ज़ब ! 

भाई गनेस जी !! ..

चामत्कारिक बिंबों से आपने, सच कहूँ, तो अनायास प्रतीत होते, अलिप्त-से दीखते दैनिक प्रवाह में प्रचण्ड प्रवाह पैदा कर दिया है. यथार्थबोध का ऐसा सान्द्र निवेदन कम ही समक्ष आता है. 

यदि कहूँ कि यह कविता मुझे यहाँ पटल पर खींच लायी, तो अन्यथा न होगा. बिंब, शिल्प, कथ्य, प्रवाह तथा संदर्भ सबकुछ श्रेष्ठ है. 

मैं चकित हूँ. और, आपकी रचनाधर्मिता ही नहीं आपकी वैचारिकता पर भी मुग्ध हूँ. 

बधाई.. बधाई.. बधाई.. 

शुभातिशुभ

Comment by Samar kabeer on September 14, 2020 at 6:24pm

जनाब गणेश जी 

"बाग़ी" साहिब आदाब, बहुत उम्द: कविता लिखी है आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'बहुत ही प्यारे'

इस पंक्ति में 'प्यारे' की जगह "प्यारी" शब्द उचित होगा ।

'दोपहर में देखास

इस पंक्ति में 'देखा' की जगह "देखी" शब्द उचित होगा ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 14, 2020 at 7:31am

आ. भाई गणेष जी, सादर अभिवादन ।सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है । हार्दिक बधाई ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 14, 2020 at 12:06am

सराहनायुक्त प्रतिक्रिया हेतु हृदय से आभार आदरणीय हर्ष महाजन जी ।

Comment by Harash Mahajan on September 13, 2020 at 3:35pm

आदरणीय गणेश जी बागी जी कविता का बहुत ही सुंदर सृजन हुआ । दाद कबूल कीजियेगा ।

सादर ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 13, 2020 at 3:35pm

त्वरित प्रतिक्रिया हेतु हृदय से आभार मोहतरम अमीरुद्दीन साहब ।

टंकण त्रुटि ठीक कर लिया है।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 13, 2020 at 2:34pm

आदरणीय जनाब गणेशजी बागी जी आदाब, बहुत ही ख़ूबसूरत कविता का सृजन हुआ है बधाई स्वीकार करें। 

महोदय शायद टंकण त्रुटि के कारण प्रफुल्लित शब्द ग़लत टाईप हो गया है। सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कभी इधर है कभी उधर है भाती कभी न एक डगर है इसने कब किसकी है मानी क्या सखि साजन? नहीं जवानी __ खींच-…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय तमाम जी, आपने भी सर्वथा उचित बातें कीं। मैं अवश्य ही साहित्य को और अच्छे ढंग से पढ़ने का…"
5 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय सौरभ जी सह सम्मान मैं यह कहना चाहूँगा की आपको साहित्य को और अच्छे से पढ़ने और समझने की…"
7 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कह मुकरियाँ .... जीवन तो है अजब पहेली सपनों से ये हरदम खेली इसको कोई समझ न पाया ऐ सखि साजन? ना सखि…"
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"मुकरियाँ +++++++++ (१ ) जीवन में उलझन ही उलझन। दिखता नहीं कहीं अपनापन॥ गया तभी से है सूनापन। क्या…"
13 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"  कह मुकरियां :       (1) क्या बढ़िया सुकून मिलता था शायद  वो  मिजाज…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"रात दिवस केवल भरमाए। सपनों में भी खूब सताए। उसके कारण पीड़ित मन। क्या सखि साजन! नहीं उलझन। सोच समझ…"
21 hours ago
Aazi Tamaam posted blog posts
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
Thursday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service