For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

श्राद्ध

"सुनो !! आज दो लीटर दूध और लेकर आना , बाबूजी का श्राद्ध करना है," ममता ने अपने पति रोहन से कहा ।

"ठीक है, ले आऊंगा," ये कहकर रोहन दूध लेने चला गया। 

"चलो सोनू बेटा जल्दी करो! आज पाँच ब्राह्मणों को भोजन कराना है ;फटाफट नहा कर आओ! क्योंकि श्राद्ध तुम्हारे हाथ से होगा,"ये कहते हुए वो रसोई में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने में व्यस्त हो गई। 

"मम्मा ये श्राद्ध हम क्यों कर रहे हैं ?" सोनू ने पूँछा। 

"ये करने से तुम्हारे दादू हमें आशीर्वाद देंगे," हमारे घर में सम्पन्नता आएगी,तुम पढ़ाई में होशियार बन अच्छे नंबर लाओगे," ममता ने खीर में बादाम डालते हुए कहा।   

"बहु! मुझे आधा कप दूध दे दो,दवाई खानी है," सीमा जी ने आवाज़ लगाई। 

"ये भी ना चैन से कोई काम नहीं करने देतीं! हमेशा इनके आगे पीछे घूमते रहो बस!पता नहीं कब इनसे पीछा छूटेगा!! नौकरानी समझ है मुझे तो!!" झुंझलाते हुए ममता बोले जा रही थी। 

ये सब सुनकर सीमा जी की आँखों में आँसू आ गए,आज वो अपने आप को बहुत बेबस महसूस कर रहीं थीं।वो अपनी सारी जायदाद अपने बच्चों के नाम कर चुकीं थीं।जबसे पति का देहांत हुआ वो बिल्कुल अकेली हो गईं थीं, क्योंकि बेटा बहु तो अपनी ही दुनिया में मस्त रहते थे,सोनू ही उनका एकमात्र सहारा था ;वो थोड़ी देर उनके पास बैठ जाया करता था।  

"सोनू!मैं ब्रहमणों को बुलाने जा रही हूँ," ममता ने कहा।

"उठो दादी जी खाना खा लो! देखो! मैं आज आपके लिए ख़ीर,पूरी,सब्ज़ी,लड्डू और जलेबी लाया हूँ ;आप जल्दी से खा लो," सोनू ने बहुत प्यार से कहा। 

"अरे खीर!! एक अरसा हो गया खीर खाए हुए! जुग जग जियो मेरे बच्चे!... सचमुच!... आज खाना खाने में मज़ा आ गया,"सीमा जी ने जलेबी खाते खाते कहा।     

"सोनू! ये क्या किया तुमने?!! सारा खाना झूठा कर दिया! अब तुम्हारे दादाजी का श्राद्ध कैसे करेँगे?!!, "ममता ने गुस्से से कहा। 

" दादाजी तो अब इस दुनिया में नहीं है फिर वो खाना कैसे खा सकते हैं? वो हमें आशीर्वाद भी नहीं दे सकते ;परन्तु दादीजी तो जीवित हैं,वो हमें आशीर्वाद दे सकती हैं ना मम्मा," सोनू ने बहुत ही मासूमियत से कहा। 

उसकी बात सुनकर ममता को अपनी ग़लती का एहसास हो गया,उसने सोनू को गले लगाया और अपनी सास के चरण स्पर्श किए तथा सारा खाना ग़रीबों में बाँट दिया। 

 मौलिक व अप्रकाशित       

 

         

   

Views: 651

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 13, 2020 at 11:32am

आ. मधु महक जी , अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Madhu Passi 'महक' on September 12, 2020 at 11:05am

आदरणीय समर कबीर जी आदाब! आपकी हौसला अफ़ज़ाई के लिए तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ और आपकी बात का ध्यान रखूंगी। 

Comment by Madhu Passi 'महक' on September 12, 2020 at 11:01am

आदरणीय आशीष यादव जी सादर नमस्कार! मेरी लघुकथा तक आने के लिए  और प्रोत्साहन देने के लिए बहुत बहुत आभार महोदय! 

Comment by आशीष यादव on September 10, 2020 at 10:59pm

बहुत ही अच्छी लघुकथा है। संदेशपरक्। आदरणीया मधु जी बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Samar kabeer on September 10, 2020 at 3:58pm

मुहतरमा मधु जी आदाब, अच्छी लघुकथा लिखी आपने, बधाई स्वीकार करें ।

निवेदन है कि रचना के साथ उसकी विधा भी लिख दिया करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
10 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
13 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
18 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
21 minutes ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
3 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service