For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-118

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 118वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब  बशीर बद्र साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो "

11212    11212    11212       11212

 

मुतफ़ाइलुन     मुतफ़ाइलुन     मुतफ़ाइलुन       मुतफ़ाइलुन

(बह्र: कामिल मुसम्मन सलीम  )

रदीफ़ :- करो।
काफिया :- आ( मिला, हवा, बचा, दिया, कहा, दिखा आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 अप्रैल दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 अप्रैल दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 24 अप्रैल दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 4241

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

अभी वक्त है ये कहर भरा यूं ही आशियां में रहा करो।
जो जहां पे है वहीं खुश रहे सभी इस तरह से दुआ करो।।१।।

जो नहीं हैं मेरे नसीब में कभी जिक्र उनका किया करो।
अभी हाल क्या हैं जनाब के कोई बात ये भी कहा करो।।२।।

कभी हो खफा किसी बात पे तो बेखौफ तुम कहिए मुझे।
मेरे नाम से जो शुरू हुआ उसे खत्म मुझ पे किया करो।।३।।

ये जहान हमने देखा मगर नहीं कोई तुझ सा मिला हंसी।
तुझे लग न जाए तेरी नजर यूं ही आइना न तका करो।।४।।

जो दिया था मैंने कभी तुम्हें खिला फूल था वो गुलाब का।
यूं ही हिज्र में मुरझाओ मत उसी फूल जैसा खिला करो।।५।।

मेरे यार से मिला दो मुझे वो ही बस इलाज-ए-मर्ज है।
हूं मरीज मैं एक इश्क़ का मेरे दर्द की ना दवा करो।।६।।

मुझे इस तरह से न देखिए यूं "अमित" जी इतने करीब से।
ये नए मिज़ाज का शहर है जरा फासले से मिला करो।।७।।

 "मौलिक व अप्रकाशित" 

अभी वक्त है ये कहर भरा यूं ही आशियां में रहा करो।
जो जहां पे है वहीं खुश रहे सभी इस तरह से दुआ करो।।१।।........सुंदर एवं सामयिक मतला।

 

आदरणीय दयाराम मथानी जी मतला पसंद करने और हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

आ. भाई अमित जी, एक बेहतरीन समसामयिक गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई ।

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई जी गजल पसंद करने और हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

भाई,अमित

ख़ूबसूरत मक़ते के साथ शानदार तरही ग़ज़ल के लिए हार्दिक शुभकामनाएं

जनाब अमित साहिब, आपने मुश्किल बह्र में अच्छा प्रयास किया है l मुबारकबाद कुबूल फरमाएं 

  • शेर - 1,ऊला मिसरा बह्र में नहीं है, यूँ कर सकते हैं (अभी कह्र से है भरा समय यूँ ही आशियाँ में रहा करो)
  • शेर 3,ऊला बह्र में नहीं, यूँ कर सकते हैं (कभी हो ख़फ़ा किसी बात पे तो बिना डरे ही कहो मुझे)
  • शेर - 4,ऊला बह्र में नहीं, यूँ कर सकते हैं (ये जहान देखा तो है मगर नहीं कोई तुम सा मिला हसीं)
  • शेर - 5,सानी बह्र में नहीं, यूँ कर सकते हैं (ये उदासी कैसी है हिज्र में उसी फूल जैसा खिला करो)
  • शेर - 6,दोनों बह्र में नहीं, यूँ कर सकते हैं (मुझे यार से तो मिलाइऐ यही बस इलाज है मर्ज़ का _हूं मरीज़ इश्क़ का दोस्तों मेरे दर्द की न दवा करो) 

आदरणीय तस्दीक अहमद साहब जी गजल पर अपना समय देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद  आपके बताए अनुसार सुधार करने का प्रयास करूंगा

आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी बहुत-बहुत धन्यवाद कृपया थोड़ा सा समय देकर मुझे यह समझाने का कष्ट करें की मेरे कहे गए शेरों में बह्र कहांं खारिज हो रही है। आभार

जनाब अमित कुमार साहब कठिन बह्र मे गजल कहने का आपका प्रयास सराहनीय है, बह्र को लेकर तसदीक़ साहब ने पहले ही कह दिया है, मैं और जोड़ते हुए यह कहना चाहूँगा कि इस ज़मीन मे शुतुरगुरबा ऐब कि संभावनाएं बहुत ही बढ़ जाती हैं| चूंकि रदीफ़ हआई "करो" तो मिसरा ऊला मे हमे यदि किसी को संबोधित करना हो तो "तुम" कि तरह से करना  होगा, आप, तू, तुम्हें, आदि करने से ऐब हो जाएगा|

बहुत बहुत  शुभकामनायें|

आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी गजल के प्रयास को सराहनीय के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आपकी बताई हुई सारी बातों को ध्यान रखूंगा सादर

  • बेहिजाब यूँ ना फिरा करो, ज़रा रूख पे पर्दा रखा करो,
    देखो जमाना खराब है, तुम बुरी नज़र से बचा करो !!

    यूँ ही हूर सी लगती हो तुम, इस रेशमी लिवास में,
    कहीं कत्ल ना हो जायें सब, इतना भी तुम ना सजा करो !!

    हैं चाँहने वाले बहुत, माना तेरे इस शहर में,
    ये नये मिज़ाज का शहर है, ज़रा फासले से मिला करो !!

    यूँ ओढ़ कर झूठी हँसी, लूटी हैं तुमने महफिलें
    मुझसे ना तुम पर्दा करो, जैसी हो वैसी दिखा करो !!

    गुमराह कर देगी तुम्हें, ये जो तमाम भीड़ है
    मंजिल हमारी एक है, यूँ ही साथ मेरे चला करो !!

    एक बार फिर से मुस्कुराकर, चल पड़ेगी जिंदगी
    बेचैन कर दे जो तुम्हें, उस बात को अब दफा करो !!

    मौलिक व अप्रकाशित

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"आदरणीय नीलेश भाई,  आपकी इस प्रस्तुति के भी शेर अत्यंत प्रभावी बन पड़े हैं. हार्दिक बधाइयाँ…"
28 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"साथियों से मिले सुझावों के मद्दे-नज़र ग़ज़ल में परिवर्तन किया है। कृपया देखिएगा।  बड़े अनोखे…"
39 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. अजय जी ...जिस्म और रूह के सम्बन्ध में रूह को किसलिए तैयार किया जाता है यह ज़रा सा फ़लसफ़ा…"
53 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"मुशायरे की ही भाँति अच्छी ग़ज़ल हुई है भाई नीलेश जी। मतला बहुत अच्छा लगा। अन्य शेर भी शानदार हुए…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post उस मुसाफिर के पाँव मत बाँधो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद और बधाइयाँ.  वैसे, कुछ मिसरों को लेकर…"
2 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"हार्दिक आभार आदरणीय रवि शुक्ला जी। आपकी और नीलेश जी की बातों का संज्ञान लेकर ग़ज़ल में सुधार का…"
2 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"ग़ज़ल पर आने और अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए आभार भाई नीलेश जी"
2 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"अपने प्रेरक शब्दों से उत्साहवर्धन करने के लिए आभार आदरणीय सौरभ जी। आप ने न केवल समालोचनात्मक…"
2 hours ago
Jaihind Raipuri is now a member of Open Books Online
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post ठहरा यह जीवन
"आदरणीय अशोक भाईजी,आपकी गीत-प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँ  एक एकाकी-जीवन का बहुत ही मार्मिक…"
20 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. रवि जी "
21 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"स्वागत है आ. रवि जी "
21 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service