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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-115

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 115वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब  बशीर बद्र साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"ये जनम जनम का रिश्ता तिरे मेरे दरमियाँ है "

1121       2122         1121     2122

फइलातु      फाइलातुन     फइलातु      फाइलातुन   

(बह्र:  रमल मुसम्मन् मशकूल )

रदीफ़ :- है।
काफिया :- आँ( कहां, निशां, आसमां, बेज़बां, गुमां आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 जनवरी दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 जनवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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1 1 2 1  /  2 1 2 2  //  1 1 2 1  /  2 1 2 2

ये उधार की है हस्ती तिरा ख़्वाब ये जहाँ है
न ज़मीं यहाँ पे तेरी न ही तेरा आसमाँ है

मैं जिधर भी देखता हूँ या दुकाँ है या मकाँ है
मैं तलाश करके हारा यहाँ आदमी कहाँ है

जिसे ख़ाक बन के पूजा वही आज सरगिराँ है
जिसे जाँ से बढ़ के चाहा वही मुझ से बदगुमाँ है

यहाँ क़िस्मतें पलटती हैं पलक झपकते हमदम
कभी था करीम मुझ पर वो जो तुझ पे मेहरबाँ है

जो अज़ल से मेरी मिट्टी तिरा आस्ताँ तलाशे
ये जनम जनम का रिश्ता तिरे मेरे दरमियाँ है

जो फ़क़ीर पा गया वो नहीं शाह को मयस्सर
जो मिटा गया ख़ुदी को वही शख़्स कामराँ है

ये चमन चमन ख़िज़ाँएं ये क़दम क़दम उदासी
जो बता रहे थे रहबर वो इरम भला कहाँ है

ये गुमाँ है आशिक़ों को उन्हें कौन जा बताए
न तो जिस्म बे-बदल है न ही इश्क़ जावेदाँ है

तिरे साथ साथ चल के मुझे मिल गई है जन्नत
मिरे हम-क़दम है इशरत मिरी राह गुलसिताँ है

कभी खो के करना हासिल कभी पा के भी गँवाना
यही खेल ज़िन्दगी का तिरा सख़्त इम्तिहाँ है

न तो मंज़िलों की ख़्वाहिश न ही जुस्तुजू-ए-मस्कन
मैं चला हूँ उस पे 'शाहिद' जो कि राह-ए-गुमरहाँ है
(मौलिक व अप्रकाशित)

आ. भाई रवि भसीन जी, सादर अभिवादन। एक उत्तम गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहब, आपकी बधाई और हौसला-अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया!

रविजी बहुत खूब
मतला बहुत पसंद आया।

आदरणीय अमित भाई, ग़ज़ल पे उपस्थिति और हौसला-अफ़ज़ाई के लिए तहे-दिल से धन्यवाद!

जनाब रवि भसीन 'शाहिद' जी आदाब,बहुत अच्छी ग़ज़ल से आपने मुशायरे का आग़ाज़ किया, बधाई स्वीकार करें ।

'ये उधार की है हस्ती तिरा ख़्वाब ये जहाँ है
न ज़मीं यहाँ पे तेरी न ही तेरा आसमाँ है'

मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,उचित लगे तो ऊला यूँ कर लें:-

'ये उधार की है हस्ती यहाँ तेरा कुछ कहाँ है'

गिरह ठीक नहीं लगी ।

बाक़ी शुभ शुभ ।

मोहतरम समर कबीर साहब, आदाब। आपकी बधाई और ज़र्रा-नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया। आपकी दोनों बातें दरुस्त हैं, और मैं आगे से इनका ध्यान रखूँगा। आपकी इस्लाह और आशीर्वाद इसी तरह मिलता रहा तो भविष्य में और बेहतर कहने की कोशिश रहेगी।

आदरणीय रवि भसीन साहब जी एक अच्छी गजल के आने के लिए बहुत-बहुत बधाइयां बाकी समर साहब की बात पर और ध्यान दें।

आदरणीय अमित कुमार जी, बधाई और हौसला-अफ़ज़ाई के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद।

आदरणीय रवि जी नमस्कार  बहुत ही अच्छी ्ग़ज़ल कही  शेर दर शेर दाद हाजिर है 

आदरणीय रवि शुक्ला साहब, नमस्कार। आपकी दाद के लिए मैं आपका तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।

बहुत उम्दा ग़ज़ल श्रीमान रवि भसीन जी

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