For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक ग़ज़ल ---नहीं आता

एक ग़ज़ल ....
न याद आओ मुझे तुम कोई पल ऐसा नहीं आता
तुम्हारे ख़्वाब में फिर भी मेरा चेहरा नहीं आता

*तुम अपने बाप के शाने पे रखदो ख़्वाहिशें अपनी*
*मेरे बच्चों हक़ीक़त में कोई सांता नहीं आता*

मेरी ग़ज़लों में पढ़ लेना मेरे ग़म की इबारत तुम
मुझे गाना तो आता है मगर रोना नहीं आता

जिधर देखो उधर नफ़रत जहाँ जाओ वहाँ साज़िश
तअज्जुब है अदीबों आपको गुस्सा नहीं आता

ज़रा ख़ुश पेट होता है मगर दिल ख़ूब रोता है
मनीआर्डर तो आता है मगर बेटा नहीं आता

मुसीबत, रोग, आफ़त, मुश्किलें उस घर में आती है
पसीने की कमाई का जहाँ पैसा नहीं आता

मेरा तो फ़र्ज़ है दुनिया में सबको रौशनी देना
बिना पर जात-मज़्हब की मुझे चलना नहीं आता
मौलिक और अप्रकाशित
©ख़ुरशीद खैराड़ी जोधपुर ।
शाना-- कंधा
अदीब-- साहित्यकार
त अज्जुब-- आश्चर्य , अचम्भा
बिना -- नींव, आधार।

Views: 627

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on January 23, 2020 at 8:10am

गज़ल बहुत अच्छी बनी है, मित्र खुर्शीद खैराड़ी जी। बधाई।

Comment by मनोज अहसास on January 21, 2020 at 7:27pm

एक बेहद शानदार गजल के लिए हृदय से दाद पेश करता हूं आदरणीय मित्र आदरणीय समर कबीर साहब गजल को देख ही चुके हैं इसलिए अब गजल मुकम्मल हो गई है सादर

Comment by नाथ सोनांचली on January 20, 2020 at 2:45pm

आद0 खुर्शीद खैराड़ी जी सादर अभिवादन। बेहतरीन मुरस्सा और उम्दा ग़ज़ल पढ़ने को मिली,, शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।

Comment by Samar kabeer on January 19, 2020 at 9:17pm

जनाब ख़ुर्शीद खैराड़ी जी आदाब, बहुत समय बाद ओबीओ पर आपको देख कर प्रसन्न हूँ ।

बहुत उम्द: और मुरस्सा ग़ज़ल से नवाज़ा आपने इस मंच को,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

तअज्जुब है अदीबों आपको गुस्सा नहीं आता'

'गुस्सा'--"ग़ुस्सा"

'मुसीबत, रोग, आफ़त, मुश्किलें उस घर में आती है'

इस मिसरे में 'है' को "हैं" कर लें ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on January 15, 2020 at 10:24am

आदरणीय ख़ुर्शीद साहब, आदाब। बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कभी इधर है कभी उधर है भाती कभी न एक डगर है इसने कब किसकी है मानी क्या सखि साजन? नहीं जवानी __ खींच-…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय तमाम जी, आपने भी सर्वथा उचित बातें कीं। मैं अवश्य ही साहित्य को और अच्छे ढंग से पढ़ने का…"
5 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय सौरभ जी सह सम्मान मैं यह कहना चाहूँगा की आपको साहित्य को और अच्छे से पढ़ने और समझने की…"
7 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कह मुकरियाँ .... जीवन तो है अजब पहेली सपनों से ये हरदम खेली इसको कोई समझ न पाया ऐ सखि साजन? ना सखि…"
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"मुकरियाँ +++++++++ (१ ) जीवन में उलझन ही उलझन। दिखता नहीं कहीं अपनापन॥ गया तभी से है सूनापन। क्या…"
13 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"  कह मुकरियां :       (1) क्या बढ़िया सुकून मिलता था शायद  वो  मिजाज…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"रात दिवस केवल भरमाए। सपनों में भी खूब सताए। उसके कारण पीड़ित मन। क्या सखि साजन! नहीं उलझन। सोच समझ…"
21 hours ago
Aazi Tamaam posted blog posts
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
Thursday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service