For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अलग अलग कारण- लघुकथा

सुबह का अखबार जैसे खून से सना हुआ था, इतनी वीभत्स खबर छपी थी जिसकी कल्पना करके ही दिमाग सुन्न हो जा रहा था. सामने चाय की प्याली रखी हुई थी लेकिन उसे पीने की इच्छा मर चुकी थी. उसने अपना सर पकड़ा और बिस्तर पर ही निढाल हो गयी.
"क्या हो गया है इस समाज को, अब और कितना नीचे गिरेंगे हम लोग?, उसके मुंह से बुदबुदाहट की शक्ल में आवाज निकली.
कुछ देर बाद कामवाली बाई आयी और उसने देखा कि चाय वैसे ही रखी है तो उसने टोका "मैडम, तबियत ठीक नहीं है क्या? मैं दूसरी चाय बना लाती हूँ और कोई दवा भी ला दूँ क्या?
उसने सर से हाथ हटाया और बाई को देखने लगी. कम उम्र की बाई सुबह सबसे पहले उसके घर ही आती थी और लगभग दोपहर में जाती थी. वापस शाम को आकर फिर रात में ही जाती थी, इसलिए वह उसे उसकी मेहनत से ज्यादा ही पैसा दे देती थी.
"नहीं मैं ठीक हूँ, तू अभी चाय रहने दे, मन नहीं है", उसने उठते हुए कहा.
बाई ने चाय की ट्रे उठायी और जाते जाते बोली "मैडम, आज शाम को नहीं आउंगी, बिटिया का जन्मदिन है".
उसके चेहरे पर मुस्कराहट फ़ैल गयी, बहुत प्यारी बेटी थी बाई की. कभी कभी बाई उसको ले आती थी तो उसके साथ खेलकर उसे काफी अच्छा लगता था. घरपर वह अकेली ही रहती थी, बच्चे विदेश में थे और पति बहुत पहले ही साथ छोड़ गए थे.
"अच्छा यह बता, आज कहाँ लेकर जायेगी उसे", उसने बाई से पूछा.
बाई के चेहरे पर भी मुस्कराहट आ गयी "कहीं नहीं मैडम, उसे पार्क ले जाउंगी और फिर कुछ बाहर ही खिला दूंगी. ज्यादा रात में डर सा लगता है उस तरफ, इसलिए जल्दी ही घर लौट आउंगी".
उसका दिमाग फिर से उस खबर की तरफ चला गया, वह बच्ची भी तो इसकी बेटी की ही उम्र की थी.
"तू एक काम कर, आज बेटी को लेकर यहीं आ जा, उसका जन्मदिन हम साथ साथ मनाएंगे. वैसे भी तू अकेली है आजकल, यहीं रुक जाना", उसने कहा तो बाई थोड़ा चौंकी, पहले वह कभी मैडम के यहाँ रात में बेटी के साथ नहीं रुकी थी.
"एक और बात, आगे से तू अपनी बेटी को दिन में यहीं छोड़कर जाया कर, मेरे साथ रहेगी तो मेरा भी मन लगा रहेगा", उसने बाई से कहा. बाई अंदर से बहुत खुश हुई और वह भी, बस दोनों के कारण अलग अलग थे.


मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 729

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on June 12, 2019 at 4:32pm

इस उत्साह बढ़ाने वाली टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ नीलम उपाध्याय जी

Comment by Neelam Upadhyaya on June 12, 2019 at 2:59pm

आदरणीय विनय कुमार जी, अच्छी संदेशपरक रचना की प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें ।

Comment by विनय कुमार on June 11, 2019 at 3:49pm

इस उत्साह बढ़ाने वाली टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ मुहतरम समर कबीर साहब

Comment by विनय कुमार on June 11, 2019 at 3:48pm

इस उत्साह बढ़ाने वाली टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी

Comment by विनय कुमार on June 11, 2019 at 3:48pm

इस उत्साह बढ़ाने वाली टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ रचना भाटिया जी

Comment by TEJ VEER SINGH on June 11, 2019 at 12:53pm

हार्दिक बधाई आदरणीय विनय जी। बहुत सुंदर संदेशप्रद लघुकथा ।

Comment by Samar kabeer on June 11, 2019 at 12:32pm

जनाब विनय कुमार जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।

मुहतरमा प्रतिभा जी के सुझाव अच्छे हैं ।

Comment by Rachna Bhatia on June 10, 2019 at 7:51pm
हर दिल में उठती चिंता का चित्रण करती अच्छी लघुकथा।
आदरणीय बधाई स्वीकार करें।
Comment by विनय कुमार on June 10, 2019 at 7:16pm

इस विस्तृत प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आ प्रतिभा पांडे जी, आपके सुझाव अमूल्य हैं. उम्मीद है आप आगे भी ऐसे ही मार्गदर्शन करती रहेंगी, शुक्रिया

Comment by pratibha pande on June 10, 2019 at 8:19am

समस्या पर चिंतन और समाधान की कोशिश करती हुई एक अच्छी सकारात्मक रचना के लिये बधाई आपको। ऐसी कई समस्याएँ  हैं जिनका हर जागरूक नागरिक अपने स्तर पर कुछ समाधान ढूँढ सकता है पर हम अक्सर बस चिन्ता दिखा कर अपना फर्ज पूरा कर लेते हैं। शिल्प स्तर पर अ आप कथा का आरंभ बाई के आगमन और गर्म चाय बना लाने की पेशकश से कर सकते हैं। बाई के अपनी बेटी का जिक्र करने के बाद मेडम के दिमाग मे चल रही चिंताओं को शाब्दिक किया जा सकता है। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
20 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service