For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

121 22 121 22 121 22

हरिक  धड़क पे  तड़प  उठें बद-हवास आँखें
बिछड़ के  मुझसे कहाँ गईं  ग़म-शनास आँखें

कहाँ  गगन  में  छुपे  हुये  हो ओ चाँद जाकर
तमाम  शब  अब  किसे  निहारें  उदास आँखें

बिछड़ के तुझसे सिवाय इसके रहा नहीं कुछ
कि  एक  बिगड़ा हुआ  मुक़द्दर क़यास आँखें

यक़ीन  होता  नहीं  कि  कैसे  चला  गया  वो
दिखा  रही थीं  डगर  उसी की  उजास आँखें

हँसी ग़ज़ल सी गुलों सा चहरा था महजबीं का
मचल  रहे  थे  गुलाब  लब  पे  कपास  आँखें

उदासियाँ  ही  उदासियाँ  हैं  हद्द-ए-नजर तक
लुटा लुटा  'ब्रज'  ह्रदय  नगर है तो आस आँखें

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 515

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 16, 2022 at 4:51pm

आदरणीय अशोक जी...ग़ज़ल पे आपकी बारीक नजर के लिए शुक्रिया...बिल्कुल ध्यान रखूँगा आपकी बात का...सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 12, 2022 at 7:07pm

आदरणीय बृजेश कुमार जी सादर, अच्छी ग़ज़ल हुई है आपकी. सुझावों पर अमल से निखार आया भी है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. ह्रदय/हृदय ...लिखा करें. सादर .

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 7, 2022 at 11:14pm

उचित है आदरणीय समर जी...ऐसा किया जा सकता है...जल्द ही सम्पूर्ण सुधार के साथ रचना एडिट करूँगा...सादर

Comment by Samar kabeer on October 7, 2022 at 5:55pm

//एक जिज्ञासा और है क्या "मुस्कुराहट और हरारत" एक साथ काफ़िये के रूप में सहीह है//

नहीं,ये दुरुस्त नहीं हैं ।

//कहाँ गगन में छुपे हुये हो ओ चाँद तारो' -आदरणीय यहाँ किसी एक व्यक्ति को ध्यान में रखकर बात कही है इसलिए सिर्फ 'चाँद' को लिया है//

ऐसा है तो  'छुपे हुए हो ऒ' की जगह यूँ कहना उचित होगा:-

'कहाँ गगन में छुपा हुआ है तू चाँद जाकर'

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 7, 2022 at 12:20pm

जी आदरणीय महेंद्र जी...एक नई जानकारी हुई...यही तो इस मंच की विशेषता है...आपका धन्यवाद

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 7, 2022 at 12:18pm

आदरणीय समर जी ग़ज़ल की विस्तृत समीक्षा के लिए आभार व्यक्त करता हूँ...काफ़िये को लेकर नई जानकारी हुई...रचना को ग़ज़ल का रूप देने की कोशिश करता हूँ...एक जिज्ञासा और है क्या "मुस्कुराहट और हरारत" एक साथ काफ़िये के रूप में सहीह है?

'हरिक धड़क पे तड़प उठें बद-हवास आँखें'--इस मिसरे में 'धड़क' क्या है ?यहाँ धड़क दिल के धड़कने को लिया है...जब दो मनुष्य सच्चे प्रेम में हों तो एक के धड़कते दिल किसी भी कारण से दूसरे की आँखों का व्याकुल होने का भाव है।

'कहाँ गगन में छुपे हुये हो ओ चाँद  जाकर'--इस मिसरे को उचित लगे तो यूँ कहें :

''कहाँ गगन में छुपे हुये हो ओ चाँद तारो' -आदरणीय यहाँ किसी एक व्यक्ति को ध्यान में रखकर बात कही है इसलिए सिर्फ 'चाँद' को लिया है।

बाकी आपके बताए सुझाव सम्मिलित करता हूँ ...सादर

Comment by Mahendra Kumar on October 7, 2022 at 10:13am

आदरणीय बृजेश जी, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। आपकी इस प्रस्तुति से मंच को भी क़ाफ़िये पर नयी जानकारी मिली। 

Comment by Samar kabeer on October 6, 2022 at 6:00pm

जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आदाब , ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है लेकिन कुछ अशआर में क़वाफ़ी ग़लत हो गए हैं, बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें.

//दरअसल कई जगह 'त' और 'थ' को लेकर काफ़िया देखा है और 'स' एवं 'श' भी पढ़े हैं.//

'त' और 'थ' के इसलिए दुरुस्त माने जाते हैं कि 'थ' उर्दू में जब लिखते हैं तो पहले 'त' आता है उसके बाद उसमें 'ह दो चश्मी' आता है , लेकिन 'स' और 'श' में ऐसा कुछ नहीं है जिस के कारण इसे तस्लीम किया जाए, बहतर ये होगा कि जिन अशआर में 'श' के क़ाफ़िये लिए हैं उन्हें दुरुस्त कर लें,

अब आता हूँ ग़ज़ल की बारीकियों पर.

'हरिक धड़क पे तड़प उठें बद-हवास आँखें'--इस मिसरे में 'धड़क' क्या है ?

'कहाँ गगन में छुपे हुये हो ओ चाँद  जाकर'--इस मिसरे को उचित लगे तो यूँ कहें :

''कहाँ गगन में छुपे हुये हो ओ चाँद तारो'

'कि एक बिगड़ा हुआ मुकद्दर निराश आँखें'--इस मिसरे में 'मुकद्दर' को "मुक़द्दर" कर लें.

'हँसी ग़ज़ल सी गुलों सा चेह्रा था महजबीं का' --इस मिस्रेव में 'चेह्रा' को "चहरा" लिखें.

'उदासियाँ ही उदासियाँ हैं हद-ए-नजर तक'-- इस मिसरे में 'हद-ए-नज़र' शब्द ठीक नहीं है सहीह शब्द है "हद्द-ए-नज़र" देखिएगा.

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 6, 2022 at 8:40am

आदरणीय अमीरुद्दीन जी रचना पटल पे आपकी उपस्थित स्वागतयोग्य है...आपने जिस दोष को इंगित किया है वो जानबूझ कर किया गया है...दरअसल कई जगह 'त' और 'थ' को लेकर काफ़िया देखा है और 'स' एवं 'श' भी पढ़े हैं...अभी याद नहीं आ रहा ...मैं कोशिश कर रहा हूँ कि वो रचनाएं प्रस्तुत कर सकूँ... ओ बी ओ पे इसे पोस्ट करने का यही उद्देश्य है कि बात जरा साफ हो...क्या 'त' और 'थ' ...'स' एवं 'श' के काफ़िये सही हैं या नहीं... सादर

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 5, 2022 at 9:42pm

आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी आदाब, मतले में मुक़र्रर किया गया क़ाफ़िया 'आस' ग़ज़ल के कई अशआर में बदल गया है, ग़ौर फ़रमाएं। बहरहाल इस प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  ______ जगमग दीपों वाला उत्सव,उत्साहित बाजार। जेब सोच में पड़ी हुई है,कैसे पाऊँ…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"चार पदों का छंद अनोखा, और चरण हैं आठ  चौपाई औ’ दोहा की है, मिली जुली यह ठाठ  विषम…"
8 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद * बम बन्दूकें और तमंचे, बिना छिड़े ही वार। आए  लेने  नन्हे-मुन्ने,…"
18 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
" प्रात: वंदन,  आदरणीय  !"
23 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद : रौनक  लौट बाजार आयी, जी   एस   टी  भरमार । वस्तुएं …"
23 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम..."
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Oct 12

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service