For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122      1122      1122       22
खोजने  जाऊँ कहाँ  जान से प्यारे  आँसू
ढल गये  आँख  से  चुपचाप हमारे  आँसू

इस तरह  देख सकूँगा न बिखरते  इनको
कितना टूटे हैं तो आँखों  में  सँवारे  आँसू

शब अँधेरी  है हवा  सर्द  तसव्वुर  उनका
याद  मीठी  है  बड़ी  और  हैं खारे  आँसू

मुझको भाती नहीं ये बोलती पुरनम आँखें
काश  आँखों से  चुरा लूँ  मैं  तुम्हारे  आँसू

ये भला कौन सा इंसाफ  हुआ उल्फ़त  में
की ख़ता  दिल ने  बहे  दर्द  के मारे  आँसू
बिन  तुम्हारे  न  कहीं   जान  हमारी  जाये
वक़्त-ए-फुरक़त में बने दिल के सहारे आँसू

काश इनसे ही बुझे प्यास हरिक मंज़र की
हमने  पलकों  से  यही  सोच  उतारे आँसू
बस इसी  बात पे हैरान  हुआ जाता  'ब्रज'
ग़म  किसी और का  बहते हैं  हमारे आँसू
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 586

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 27, 2021 at 9:58pm

स्वागत संग आभार आदरणीय धामी जी...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 26, 2021 at 9:39am

आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 8, 2021 at 9:10pm

आदरणीय मेथानी जी आपके सुंदर और मनोहारी शब्दों के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन और आभार...स्नेह बनाये रखें।

Comment by Dayaram Methani on November 8, 2021 at 1:47pm

आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी, बहुत सुंदर ग़ज़ल प्रस्तुत की है आपने। कुछ पंक्तियां तो बहुत सुंदर है। मसलन ..... याद मीठी है बड़ी और हैं खारे आँसू और की ख़ता दिल ने बहे दर्द के मारे आँसू। इसी प्रकार अन्य पंक्तियां भी बहुत अच्छी लगी। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 8, 2021 at 11:33am

आदरणीय अमीरुद्दीन जी ग़ज़ल पे आपकी शिरकत और हौसलाफजाई के लिए शुक्रिया..

सातवें शे'र का भाव नहीं समझ सका हूँ। शेष शुभ-शुभ

सब कल्पनाओं का खेल है आदरणीय...विरह में तपता हुआ एक व्यक्ति को हर चीज व्याकुल जैसी भी प्रतीत होती है।कई बार वो अपने आसुओं में सब कुछ डुबो देने की बात करता है...कई बार विरहानल मे जला देने की...ऐसे ही हर तड़पती शय की प्यास बुझे..आगे आपकी राय महत्पूर्ण है...सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 8, 2021 at 11:25am

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है ..
याद मीठी है बड़ी और हैं खारे आँसू.. इस मिसरे के लिए विशेष दाद लीजिये
बधाई

आदरणीय नीलेश जी आपके शब्द पारितोषिक हैं मेरे लिए..इस काफ़िये और रदीफ़ पे बड़ी ही प्यारी ग़ज़लें पढ़ी हैं बस उन्हीं का अनुसरण करने की कोशिश है।सादर

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on November 7, 2021 at 10:59pm

आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें। 

'ढल गये आँख से चुपचाप हमारे आँसू'  (आँखों कर लें) 

सातवें शे'र का भाव नहीं समझ सका हूँ। शेष शुभ-शुभ। 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 7, 2021 at 7:21pm

आ. बृजेश ब्रज जी,

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है ..
याद  मीठी  है  बड़ी  और  हैं खारे  आँसू.. इस मिसरे के लिए विशेष दाद लीजिये 
बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
4 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
22 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service