For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की - हाँ में हाँ मिलाइये

हाँ में हाँ मिलाइये
वर्ना चोट खाइए.
.
हम नया अगर करें
तुहमतें लगाइए.
.
छन्द है ये कौन सा
अपना सर खुजाइये
.
मीर जी ख़ुदा नहीं
आप मान जाइए.
.
कुछ नये मुहावरे
सिन्फ़ में मिलाइये.
.
कोई तो दलील दें
यूँ सितम न ढाइए.
.
हम नये नयों को अब
यूँ न बर्गलाइये.
.
नूर है वो नूर है
उस से जगमगाइए.    .
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 674

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 4, 2021 at 6:17pm

कोई बात नहीं जनाब मैं समझ सकता हूँ। its ok. 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 4, 2021 at 5:31pm

आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब.
आप को ग़ज़ल पसंद आई इसका आभार ..
मैं कभी किसी की टारगेट क्र के रचना नहीं कहता .. अगर कहता हूँ तो पोस्ट नहीं करता..
यह मात्र एक अभिव्यक्ति है . इसके इतर कुछ नहीं..
आपको यदि ऐसा लगा कि मैंने आपको टारगेट किया.. तो शायद मेरे लेखन में परिस्थितिजन्य तल्खी रह गयी हो .. जिसके लिए मैं मंच से और आपसे क्षमा चाहता हूँ ..
जब दिल्ली में एक बहुत बड़े दो तीन जोकर विराजमान हैं तो आपस में क्या तंज़ किये जाएँ.
सादर 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 4, 2021 at 12:49pm

आदरणीय निलेश जी आदाब, ख़ास तौर पर मेरे लिए छोटी बह्र में अच्छी तन्ज़िया ग़ज़ल कही आपने, इस ज़र्रा नवाज़ी के लिए आपका शुक्रगुज़ार हूँ। आपसे प्रेरणा लेकर एक छोटा सा प्रयास मैं भी करना चाहूँगा। सादर। 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 14, 2021 at 1:19pm

आ. सालिक साहब,
बहुत बहुत आभार जो आप ग़ज़ल तक पहुँचे..
कवि/ शाइर का काम भावों  को रचना के माध्यम से प्रेषित करने का होता है..
जब जैसे भाव हों उन्हें छन्द/ लय आदि में बाँध कर पेश कर दिया जाना चाहिए..
ग़ज़ल का आम शे'र भी हो तो वह अपने आप पर, आसपास पर तन्ज़ करता ही रहता है ..
ग़ालिब ही को लें.. कहते हैं ..
ग़ालिब वज़ीफ़ाख़्वार हो दो शाह को दुआ
वो दिन गये कि कहते थे नौकर नहीं हूँ मैं..
सादर 

Comment by सालिक गणवीर on November 14, 2021 at 12:44pm

आदरणीय भाई Nilesh Shevgaonkar जी
सादर नमस्कार
बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है आपने , बधाईयाँ स्वीकार करें। आपके इसी तन्ज़िया मिज़ाज़ का मैं कायल हूँ। भई वाह।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 7, 2021 at 7:18pm

धन्यवाद आ. दयाराम मेठानी जी 

Comment by Dayaram Methani on November 7, 2021 at 6:10pm

आदरणीय निलेश जी, छोटी बह्र व कम शब्दों में आपने बहुत सुंदर व दमदार ग़ज़ल कही है। बधाई आपको।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 7, 2021 at 8:43am

धन्यवाद आ. चेतन प्रकाश जी ..
कवि का काम कविता करना होता है.. आलोचक का काम आलोचना करना ..
मैं अपना काम कर रहा हूँ ..
सभी भारतीय भाषाओँ की तरह उर्दू भी बड़ी प्रोग्रेसिव ज़बान है और नए नये प्रयोग करती रहती है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उर्दू का भारतीयकरण से फ़ारसी-अरबी-करण करने का कुत्सित प्रयास चल रहा है ठीक वैसा ही जैसा हिन्दी का संस्कृत-करण थोपा जा रहा है.
भाषाई शुद्धता के नाम पर ईमाम-बाड़ा जैसा साधारण शब्द ईमाम-बारगाह में तब्दील हो गया है ..
ऐसे कथित लोगों को जो उर्दू के फ़ारसी मूल पर या गर्व करते हैं या तंज़ करते हैं (दोनों टाइप के) उन्हें आरज़ू लखनवी को पढ़ना चाहिए जिनका पूरा मजमुआ यानी काव्य संग्रह उर्दू में है और जिस में एक भी फ़ारसी-अरबी शब्द उन्होंने नहीं लिया है ..संग्रह का  नाम सुरीली बाँसुरी है ..
ग़ज़ल ने हर प्रचलित आवृत्ति स्वीकार की है .. नई ग़ज़ल के दौर में कई वरिष्ठ शायर जो सिर्फ जुल्फों, साक़ी मैख़ानों को ही शायरी समझते है ने ना फैज़, मजाज़ का बहुत विरोध किया.. हुआ क्या? मुनव्वर माँ ले आए.. और राहत attitude ..
चीख-पुकार तो मचेगी ही .. क्यूँ कि कईयों को उर्दू के भारतीय होने पर शर्मिंदगी होती है .. उर्दू भारत से कुछ ले तो छोटा पन लगता है इसलिए शायद उर्दू जब मात्रिक छन्द में ग़ज़ल कहती है तो उसे मात्रिक छन्द न मान  कर उसे भी बह्र-ए मीर कहने लगते हैं.. मीर यह सुन लेते तो बेचारे वाकई बहरे मीर हो जाते 
खैर.. रस्ता लम्बा है..यात्रा जारी रहेगी  

Comment by Chetan Prakash on November 6, 2021 at 11:33pm

आदाब,  भाई,  नीलेश  शेवगांवकर साहब,  क्या  सच बयानी  की है, आप बधाई  के  पात्र  है ! अंग्रेजी में एक  कहावत  है, "Who will bell  the cat", आप ने ओ बी ओ पर  इसका जवाब  दिया है ! ग़ज़ल  अपने उद्देश्य  में पूरी तरह सफल  हुई  है, शिल्प  भी अनूठा  है ! अनावश्यक  ही कुछ लोग  यहाँ यह समझ  पाने  में असमर्थ हैं की हम भारत वासी दशकों  से हिन्दुस्तानी  लिख  बोल  रहे  हैं ! साथ  ही उर्दू भी हिन्दुस्तान  में ही जन्मी है! भाषा कोई  भी  हो, मानव , सही कहूँ  तो समाज  की प्रोडक्ट है, लेकिन  लोग  हैं कि मानने  के लिए  तैयार  नही है !  भाषा किसी देश  की पहचान  होती है और उस भूभाग  की  प्रमुख  नदी के समान  वहाँ की सभ्यता -संस्कृति का आइना  होती है ! सो ग़ज़ल  को भी अन्य  विधाओं की तरह सभी भाषा और शिल्प गत  प्रवृत्तियों को स्वीकार  करना  होगा । न जीवन  जड़ होता  है और न साहित्य / काव्य , इतनी  सी बात  लोगों की समझ में नही आती । सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service