For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1212 1122 1212 22

यूँ उसके हुस्न पे छाया शबाब धोका है ।।1

मेरी नज़र ने जिसे बार बार देखा है ।।

वफ़ा-जफ़ा की कहानी से ये हुआ हासिल।
था जिसपे नाज़ वो सिक्का हूजूर खोटा है ।।2

उसी के हक़ की यहां रोटियां नदारद हैं ।
जो अपने ख़ून पसीने से पेट भरता है ।।3

खुला है मैकदा कोई सियाह शब में क्या ।
हमारे शह्र में हंगामा आज बरपा है ।।4

निकल पड़े न किसी दिन सितम की हद पर वो ।
जो अश्क़ मैंने अभी तक सँभाल रक्खा है ।।5

मिले हैं फूल किताबों में आज फिर यारो ।
पता करें ये मुहब्बत का काम किसका ।।6

अब उनके बारे में चर्चा तमाम क्या करना ।
जो अपनी शर्तों पे इस ज़िन्दगी को जीता है ।।7

न घर से उठ सकी ईमानदार की अर्थी ।
ये किस के साथ खड़ा देखिए ज़माना है ।।8

हर एक ज़र्रा है रोशन ग़रीब ख़ाने का ।
अभी अभी तो मेरे घर में चाँद उतरा है ।।9

ये दिल है आज मुअत्तर सनम की खुशबू से ।
बहुत क़रीब से महबूब मेरा गुज़रा है ।।10

वो शख़्स फिर न मुहब्बत में डूब जाए कहीं ।
बहार आई है मौसम नया नया सा है ।। 11

-- नवीन

मौलिक, अप्रकाशित

Views: 492

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Shukla on June 16, 2020 at 2:55pm

आदरणीय नवीन मणि  जी अक्ष्‍छी गजल हुई बधाई 

Comment by TEJ VEER SINGH on June 13, 2020 at 6:55pm

हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी। बेहतरीन गज़ल।

उसी के हक़ की यहां रोटियां नदारद हैं ।
जो अपने ख़ून पसीने से पेट भरता है ।।3

न घर से उठ सकी ईमानदार की अर्थी ।
ये किस के साथ खड़ा देखिए ज़माना है ।।8

Comment by Samar kabeer on June 12, 2020 at 6:52pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

जनाब रवि जी से सहमत हूँ,मगर आप सुधार कम ही करते हैं ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 12, 2020 at 6:35pm

आदरणीय Naveen Mani Tripathi साहिब, इस लाजवाब ग़ज़ल पर दाद और मुबारकबाद स्वीकार करें।

/निकल पड़े न किसी दिन सितम की हद पर वो ।
जो अश्क़ मैंने अभी तक सँभाल रक्खा है ।।5/
आदरणीय, इस शे'र के मिस्रा-ए-ऊला के लिए एक सुझाव देना चाहूँगा, अगर आप को उचित लगे तो इसे यूँ कहा जा सकता है:
1212 / 1122 / 1212 / 22
गुज़र न जाए किसी दिन सितम की हद से वो

इसके इलावा कुछ टंकण त्रुटियाँ इंगित करना चाहूँगा:
2. हुज़ूर
3. यहाँ, रोटियाँ
5. अश्क
9. रौशन
10. ख़ुश्बू

Comment by Dimple Sharma on June 11, 2020 at 11:11am

नमस्ते आदरणीय, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 11, 2020 at 10:12am

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी, आदाब। 

शानदार ग़ज़ल हुई है। बधाई स्वीकार करें।

शेअ'र नं 6 में आख़िरी अक्षर टाईप होने से रह गया है। दुरूस्त कर लें। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी है, लेकिन कुछ बारीकियों पर ध्यान देना ज़रूरी है। बस उनकी बात है। ये तर्क-ए-तअल्लुक भी…"
2 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"२२१ १२२१ १२२१ १२२ ये तर्क-ए-तअल्लुक भी मिटाने के लिये आ मैं ग़ैर हूँ तो ग़ैर जताने के लिये…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )

चली आयी है मिलने फिर किधर से१२२२   १२२२    १२२जो बच्चे दूर हैं माँ –बाप – घर सेवो पत्ते गिर चुके…See More
6 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
10 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का सादर"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
14 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
15 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
15 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
16 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
16 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
16 hours ago
Aazi Tamaam commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बेहद ख़ूबसुरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय निलेश सर मतला बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें"
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service