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मैं तुम्हारे दिल में आकर बैठ जाऊँगा - ग़ज़ल सादर समीक्षा

2122 2122 2122 2 

एक ग़ज़ल  मीठी सुनाकर बैठ जाऊँगा 

मैं तुम्हारे दिल में आकर बैठ जाऊँगा 

 

वक्त मुझको अपने आने का बताओ तो 

राह में पलकें बिछाकर बैठ जाऊँगा 

 

सामने सबके कहूँगा प्यार है तुझसे 

ये न सोचो मैं लजाकर बैठ जाऊँगा 

 

तुम हृदय के एक कोने में जगह दे दो 

मैं वहीँ धूनी रमाकर बैठ जाऊँगा 

 

हो अगर कोई गिला-शिकवा, बता देना 

प्यार को दिल में छुपाकर बैठ जाऊँगा 

 

“मौलिक एवं अप्रकाशित”

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Comment

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 22, 2020 at 9:38pm

आदरणीय  अमीरुद्दीन खा़न "अमीर " जी  सादर नमस्कार 

आपकी हौसलाअफजाई के लिए दिल से शुक्रिया।, आपका सुझाव लाजबाब है, अनुकरणीय है , धन्यवाद आपका, इसी तरह मार्गदर्शन करते  रहें सादर 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 22, 2020 at 11:51am

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब।

ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने, दाद पेश करता हूँ।

वक्त मुझको अपने आने का बताओ तो 

राह ह में पलकें बिछाकर बैठ जाऊँगा      शेअ'र ख़ास है ।

 हो अगर कोई गिला-शिकवा, बता देना 

प्यार को दिल में छुपाकर बैठ जाऊँगा    यहाँ पर अगर छुपाकर की जगह दबाकर हो तो मेरे नज़रिए बेहतर होगा।  सादर। 

 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 22, 2020 at 11:22am

आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सादर नमस्कार- आपकी हौसलाअफजाई  का दिल से शुक्रिया 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 22, 2020 at 9:02am

आ. भाई बसंत जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

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