जीवन के रिश्तों में इतने झोल नहीं होते
अपने मुँह में जो ये कड़वे बोल नहीं होते
रस्ता एक पकड़ कर यदि चलते ही जाते हम
मंजिल तक अपने पग डाँवाडोल नहीं होते
कृष्ण भक्ति में अगर नहीं डूबी होती मीरा
उसके प्याले में भी विष के घोल नहीं होते
गाँव शहर में कुछ तो फर्क रहा होगा, वरना
आज वहाँ पर बिन तारों के पोल नहीं होते
प्यार को अपने नजर नहीं लगती इस दुनिया की
रोजाना यदि हमने पीटे ढोल नहीं होते
कुछ तो खोना ही पड़ता है प्यार मुहब्बत में
त्याग बिना तो ये रिश्ते अनमोल नहीं होते
मोबाइल पर किसने छेड़ा उनको हाय 'बसन्त'
वरना यूँ ही उनके लाल कपोल नहीं होते
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी सादर नमस्कार , आपकी हौसलाअफजाई ही मेरा संबल है, सादर नमन आपको
आद0 बसन्त कुमार शर्मा जी सादर अभिवादन। बढ़िया हिंदी शब्दों का प्रयोग करते हुए आम बोल चाल में ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकार कीजिये
आदरणीय Dayaram Methani जी सादर नमस्कार, आपकी हौसलाअफजाई हेतु दिल से शुक्रिया
सुंदर गज़ल आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी। बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय TEJ VEER SINGH जी सादर नमस्कार , आपकी हौसलाअफजाई हेतु दिल से शुक्रिया
हार्दिक बधाई आदरणीय बसन्त कुमार शर्मा जी। बेहतरीन गज़ल।
कुछ तो खोना ही पड़ता है प्यार मुहब्बत में
त्याग बिना तो ये रिश्ते अनमोल नहीं होते
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