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आ० विजय सर i
कुछ हो नहीं सकता क्योंकि मुझे न खुद पर विशवास है न आप पर i यह विश्वास कैसे बने i मूल समस्या यही है i हां कुछ भी हो सकता है समुद्र में पुल भी बन सकता है i पर इतना आत्म विश्वास तो हो i सादर i
Aadarniya Dr.Vijay shankar Ji,
Samayik wa sargarbhit rachna ke liye sadhuwad. Badhai.
Aaj ke iss daur main shayad phir koi bhudh, mahavir ya nanak peda hoga
Iss Gahan Andhkar main nahee roshni Roshani Dega.
आदरणीय आप ने सही कहा ...क्यों नहीं हो सकता? .... मैं मनाता हूँ क्रांति रचनाकारों से ही शुरू होती है ...बधाई स्वीकार करें ...सादर
अहा!! कालजयी रचना !!मुक्तिबोध जी की कवितओं का ओज आँखों में आ गया!!बहुत खूब!!इस रचना पर आपको नमन आ० विजय शंकर जी!
सर, आपका आशीर्वाद हमेशा बना रहेगा ,इसी कामना के साथ पुन: आपकी लेखनी को नमन ! सादर
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