ठूंठ - लघुकथा -
राम दयाल अपनी घर वाली की जिद के आगे झुक गया। हालांकि उसकी दलील इतनी मजबूत तो नहीं थी लेकिन वह घर में किसी प्रकार की क्लेश नहीं चाहता था। उसकी घर वाली का मानना था कि उसके सासु और ससुर की वजह से उसके बेटे की शिक्षा पर बुरा प्रभाव पड़ रहा था।
अतः वह चाहती थी कि सासु ससुर जी को वृद्धाश्रम भेज दो।
आज मजबूरन राम दयाल उन दोनों को वृद्धाश्रम छोड़ कर घर वापस जा रहा था।लेकिन उसका मन इस कृत्य के लिये उसे धिक्कार रहा था।
वृद्धाश्रम से बाहर जैसे ही वह मुख्य सड़क पर मुड़ा, उसकी नज़र सड़क किनारे कुछ कटे हुए वृक्षों के ठूंठों पर पड़ी।
उन ठूंठों की बगल में उन पेड़ों के ऊपरी अवशेष पड़े हुए थे। जो कि सूख चुके थे।क्योंकि उन्हें उनकी जड़ों से जुदा कर दिया गया था।
थोड़ा आगे निकलते ही राम दयाल को अपने माँ बाप उन कटे हुए पेड़ों की मानिंद नज़र आये।राम दयाल का हृदय चीत्कार कर उठा।
उसकी गाड़ी के ब्रेक अपने आप लग गये। कुछ पल वह ऊहापोह की स्थिति में उलझा रहा।लेकिन उस स्थिति से उबरने मेंउसे कुछ क्षण लगे।
अब उसकी गाड़ी पुनः वृद्धाश्रम जा रही थी।
मौलिक, अप्रकाशित एवम अप्रसारित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।
हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब जी।
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। अच्छी लघुकथा हुई है हार्दिक बधाई स्वीकारें ।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी।
आदाब। बेहतरीन भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई जनाब तेजवीर सिंह साहिब।
हार्दिक आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी।
सुन्दर i आत्मग्लानि से उभरता आत्मबोध i
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