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चिट्ठियाँ नहीं जानती
वो तो बस चली आती हैं
कभी सही पते पर
तो अक्सर गलत पते पर
लेकिन उन्हें क्या पता
कि वह सालों साल
धूल खाती रहेंगी
दरअसल उनका गंतव्य
बदल चुका होता है
लेकिन लोग अपने पते
इन चिट्ठियों के लिए
अक्सर नहीं बदलते
बस फोन नंबर ही
बदल लेते हैं
सन्देश मिलते रहते हैं
उन बदले हुए नंबरों पर
लेकिन चिट्ठियाँ आती रहती हैं
उन पुराने पतों पर
लोग अक्सर भूल जाते हैं
लोग उन्हें अब नहीं बदलते !!

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on March 27, 2019 at 11:07am

बहुत बहुत आभार आ मुहतरम Sushil Sarna साहब

Comment by Sushil Sarna on March 26, 2019 at 7:10pm

आदरणीय विनय कुमार जी चिट्ठियों के माध्यम से अंतस भावों का सुंदर चित्रण हुआ है। हार्दिक बधाई।

Comment by विनय कुमार on March 26, 2019 at 3:38pm

बहुत बहुत आभार आ मुहतरम बृजेश कुमार 'ब्रज साहब

Comment by विनय कुमार on March 26, 2019 at 3:37pm

बहुत बहुत आभार आ मुहतरम समर कबीर साहब

Comment by Samar kabeer on March 20, 2019 at 3:32pm

जनाब विनय कुमार जी आदाब,अच्छी कविता हुई,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 20, 2019 at 12:53pm

बढ़िया कविता है आदरणीय..बधाई

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