For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"क़तरा-क़तरा मेरा-तेरा!" (लघुकथा) :

अपने दिल के टुकड़े को अपने सीने से अचानक चिपटे देख उसने कहा -"स्वागत-अभिनंदन, ख़ैर-मक़्दम बहादुर, मेरे लख़्ते-जिगर!"

अपने ही भू-खंड पर पैराशूट समेत गिरा जवां पायलट सैनिक पहले तो भौंचक्का था, इस भ्रम में कि यह भू-खंड उसका अपना वाला है या पड़ोसी मुल्क द्वारा हथियाया हुआ! फ़िर जब उसने कुछ युवकों से पुष्टि करनी चाही, तो उनके जवाब सुन वह  चौकन्ना हो गया। उसके ज़ख़्मी मुख से देशभक्ति के नारे समां में गूंज उठे।

"अभिनंदन मेरे अज़ीज़ शेर-ए-हिंद!" एक अजीब सी क़ैद से रिहा होने की चाह में वह भू-खंड कराहता हुआ बोला।

उस मिट्टी को माथे पर लगा वह घायल सैनिक अपने मुल्क के ज़रूरी दस्तावेज़ संभाले हवा में फायरिंग करता रहा और वहां के युवा पत्थरबाज़ उसके पैर ज़ख्मी कर उसे वहां की सेना के हवाले करने ही वाले थे कि वह पानी-पानी पुकारता हुआ एक तालाब में कूंद पड़ा कुछ गोपनीय दस्तावेज़ गले में उतारता और कुछ पानी में गलाता हुआ।

"अय हिंदुस्तान के बहादुर, तेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता! तेरे तन और कंठ की क्षुधा हमने बुझा दी! अब तू भी हमें अपने पड़ोसी की ज़ालिम क़ैद से हमें रिहा करा दे!" उस तालाब ने दोनों पड़ोसी मुल्कों की भिड़ंत में उस भू-खंड पर मिग-21 से अवतरित हुए उस ज़ख्मी सैनिक को अपने मन के ज़ख़्म ज़ाहिर करते हुए कहा।

कुछ ही पलों में वह उस पड़ोसी मुल्क की सेना की कस्टडी में था। अब वह सुरक्षित व स्वस्थ्य तो था, लेकिन अपने देशवासियों के मन-मस्तिष्क में क़ैद सपनों और इस भूखंड के निवासियों के मन-मस्तिष्क के प्रश्नवाचक भावों के बीच स्वयं को अजीब सी क़ैद में महसूस कर रहा था।

"क्या वह यहां युद्ध-बंदी करार कर दिया जायेगा या अपनी मातृभूमि का चरण-स्पर्श शीघ्र ही कर लेगा!" वह सैनिक आत्मविश्वास व संयम बरकरार रखते हुए भी इतिहास के झरोखों से झांक कर अपने भविष्य के प्रति सशंकित सा था।

ख़ैर, दोनों पड़ोसी मुल्कों का जंग टालने का इरादा अंततः बैठक, विचार-विनिमय या शर्तों की क़ैद से मुक्त होकर इस निर्णय पर पहुंचा कि आवश्यक पूछताछ और औपचारिकताओं के बीच उसे सुरक्षित उसकी मातृभूमि और सरकार को सुरक्षित सौंप दिया गया।

"अभिनंदन, मेरे शेर-ए-वतन!" हर आम-ओ-ख़ास हिंदुस्तानी के मुख से निकले कथनों, नारों, काव्य-पंक्तियों आदि से मुल्क का फ़लक गूंज उठा।

लेकिन एक तरफ़ परमाणु-युद्ध और साम्प्रदायिक दंगे-फ़सादों की संकीर्ण मानसिकता की क़ैद से स्वार्थी, मौकापरस्त राजनीति अब भी मुक्त होती नज़र नहीं आ रही थी। दूसरी तरफ़ सीमाओं पर गोलीबारी और शहादतें जारी थीं।

"आर-पार की लड़ाई अब हो ही जाने दो! अत्याधुनिक सैन्य प्रहार से आतंकियों को नेस्तनाबूद हो जाने दो!" दिमागों में क़ैद योजनायें इस इरादे से क्रियान्वित होने को छटपटा रहीं थीं।

"नहीं! .. क़तरा-क़तरा बहेगा, महकेगा या बहकेगा! .. दुश्मन को सुधरने का एक और मौक़ा अब भी दिया जाना चाहिए! आख़िर पैदाइशी जात तो हमारी एक ही है! हैं तो एक ही मुल्क के टुकड़े न! अमन-ओ-अमान की गुंजाइश अब भी है!" देशभक्ति की सोच नाना-प्रकार से कुछ लोगों के दिलो-दिमाग़ से अब भी शाब्दिक और क्रियान्वित होने के लिए छटपटा रही थी।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 475

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 11, 2019 at 7:40pm

मेरी इस रचना पर अपना अमूल्य समय देकर अपनी राय से अवगत कराने और मेरी हौसला अफ़ज़ाई हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सतविंदर कुमार राणा साहिब, आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब, आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव साहिब, आदरणीय समर कबीर साहिब और आदरणीया नीलम उपाध्याय साहिबा। 

Comment by Neelam Upadhyaya on March 6, 2019 at 4:09pm

अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी।

Comment by Samar kabeer on March 5, 2019 at 3:53pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Hariom Shrivastava on March 4, 2019 at 11:06pm

वाह,वाहह,बहुत सुंदर लघुकथा

Comment by TEJ VEER SINGH on March 4, 2019 at 3:41pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।बेहतरीन लघुकथा।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on March 4, 2019 at 2:57pm

आदरणीय शेख शहज़ाद जी सादर नमन! हालात ए हाज़रा को बयां करती हुई  इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
5 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
yesterday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service