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ग़ज़ल

1222 1222 122

अभी तक आना जाना चल रहा है ।
कोई रिश्ता पुराना चल रहा है ।।

सुना है शह्र की चर्चा में आगे ।
तुम्हारा ही फ़साना चल रहा है ।।

इधर दिल पर लगी है चोट गहरी ।
उधर तो मुस्कुराना चल रहा है ।।

कहीं तरसी जमीं है आब के बिन ।
कहीं मौसम सुहाना चल रहा है ।।

तुझे बख्सा खुदा ने हुस्न इतना ।
तेरे पीछे ज़माना चल रहा है ।।

दिया था जो वसीयत में तुम्हें वो ।
अभी तक वह खज़ाना चल रहा है ।।

तुम्हारे मैकदे में देखता हूँ ।
बहुत पीना पिलाना चल रहा है ।।

ग़ज़ल को गुनगुनाने की थी हसरत ।
तस्व्वुर में तराना चल रहा है ।।

यूँ उसकी शायरी पे जाइये मत ।
वहाँ मकसद रिझाना चल रहा है ।।

अरूजे फ़न से अब डरना है कैसा ।
तुम्हारे साथ दाना चल रहा है ।।

शराफत बिक रही बाज़ार में अब ।
शरीफों का बयाना चल रहा है ।।

सुना है शह्र की चर्चा में आगे ।
तुम्हारा ही फ़साना चल रहा है ।।

डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

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Comment by Samar kabeer on January 18, 2019 at 12:06pm

जनाब डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'तुझे बख्सा खुदा ने हुस्न इतना'

इस मिसरे में 'बख्सा' को "बख़्शा" कर लें ।

'दिया था जो वसीयत में तुम्हें वो'

इस मिसरे को यूं कर लें,खटक निकल जायेगी:-

"दिया था जो वसीयत में तुम्हें,क्या"

'अरूजे फ़न से अब डरना है कैसा'

इस मिसरे में 'अरूजे फ़न' को "अरूज़-ओ-फ़न" कर लें ।

Comment by Md. Anis arman on January 18, 2019 at 10:50am

अच्छी ग़ज़ल हुई है नवीन मणि त्रिपाठी जी बहुत बहुत बधाई                ग़ज़ल को गुनगुनाने की थी हसरत ।
तस्व्वुर में तराना चल रहा है ।। ये खूब कही  आपने 

Comment by Mahendra Kumar on January 17, 2019 at 9:09pm

बढ़िया ग़ज़ल हुई है आदरणीय नवीन जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. 

1. //दिया था जो वसीयत में तुम्हें वो । 
    अभी तक वह खज़ाना चल रहा है ।।// इस शेर के ऊला में "वो" और सानी में "वह" आपस में टकराने के कारण खटक रहे हैं.

2. //सुना है शह्र की चर्चा में आगे ।  
    तुम्हारा ही फ़साना चल रहा है ।।// यह शेर दो बार पोस्ट हो गया है.

सादर.

Comment by TEJ VEER SINGH on January 17, 2019 at 3:12pm

हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी।लाज़वाब गज़ल।

शराफत बिक रही बाज़ार में अब ।
शरीफों का बयाना चल रहा है ।।

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