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11212 11212. 11212. 11212

हुई तीरगी की सियासतें उसे बारहा यूँ निहार कर ।
कोई ले गया मेरा चाँद है मेरे आसमाँ से उतार कर ।।

अभी क्या करेगा तू जान के मेरी ख्वाहिशों का ये फ़लसफा ।
जरा तिश्नगी की खबर भी कर कोई शाम एक गुज़ार कर ।।

मेरी हर वफ़ा के जवाब में है सिला मिला मुझे हिज्र का ।
ये हयात गुज़री तड़प तड़प गये दर्द तुम जो उभार कर ।।

ये शबाब है तेरे हुस्न का या नज़र का मेरे फितूर है ।
खुले मैकदे तो बुला रहे तेरे तिश्ना लब को पुकार कर ।।

हैं विरासतों में तमाम गम मेरे सब्र का न ले इम्तिहाँ ।
जरा मुस्कुरा के तू पास आ मेरा खुशनुमा ये दयार कर ।।

जो निभा सके नहीं उम्र भर उसे दोस्ती का भी हक नहीं ।
वो तो फैसला ये सुना गया मुझे दुश्मनों में शुमार कर ।।

यहां बिक रहीं हैं मुहब्बतें है खरीदना तो खरीद ले।
तू वफ़ा की अब न तलाश में नई जिंदगी को निसार कर ।।

नये किस्म का है ये शह्र भी नए आशिकों का ये दौर है ।
कहीं लग न जाये नज़र तुम्हें न चलो यूँ जुल्फें सँवार कर।।

- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Naveen Mani Tripathi on November 18, 2018 at 11:05am

जनाब राज़ नावादवी साहब बहुत बहुत शुक्रियः।

Comment by राज़ नवादवी on November 18, 2018 at 10:36am

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी साहिब, आदाब, सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे बधाई स्वीकार करें. सादर 

Comment by Naveen Mani Tripathi on November 16, 2018 at 4:52pm

आ0 कबीर सर सादर नमन के साथ बहुत बहुत आभार ।

Comment by Samar kabeer on November 16, 2018 at 2:59pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

कोई ले गया मेरा चाँद है मेरे आसमाँ से उतार कर'

इस मिसरे को यूं कर लें :-

'कोई ले गया मेरे चाँद को मेरे आसमाँ से उतार कर'

Comment by Naveen Mani Tripathi on November 16, 2018 at 12:06pm

आ0 ज़नाब तेजवीर सिंह जी तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by TEJ VEER SINGH on November 16, 2018 at 9:58am

हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी।बेहतरीन गज़ल।

नये किस्म का है ये शह्र भी नए आशिकों का ये दौर है ।
कहीं लग न जाये नज़र तुम्हें न चलो यूँ जुल्फें सँवार कर।।

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