For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुछ मुक्तक

1.
आग सीने में मगर आँखों में पानी चाहिए
साथ गुस्से के मुहब्बत की रवानी चाहिए
हाथ सेवा भी करें और' उठ चलें ये वक्त पर
ज़ुल्मतों से जा भिड़े ऐसी जवानी चाहिए।

2.
शेर की औक़ात गीदड़ की कहानी देख लो
नब्ज में जमता नहीं किसका है पानी देख लो
दुम दबाना सीखता जो क्या करेगा वो भला
हौसले का नाम ही होता जवानी देख लो।

3.
समंदर भी गमों के पी जो जाएँ
बहुत ही ख़ास हैं जिनकी अदाएँ
कहाँ हैं मौन ये खामोशियाँ भी
ज़रा तू देख तो सुनकर सदाएँ।

4.
गुल ये गर गुलजार है सब आपके सदके
जिंदगी में प्यार है सब आप के सदके
आप ने थामी जो उँगली चल पड़े हैं हम
जीत है या हार है सब आपके सदके।

5.
बड़ी खूब ये आज महफ़िल सजाई
मजा आ गया बस कसम से ऐ भाई
रुकें फिर से चलने के ही तो लिए हम
मिलेंगे कभी यूँ ही अब दो विदाई।

मौलिक अप्रकाशित

Views: 591

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 26, 2018 at 5:20pm

आदरणीय छोटे लाल जी सादर नमन सह आभार

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 26, 2018 at 5:20pm

आदरणीय समर कबीर जी सादर वन्दन, हौंसलाफ़ज़ाई व् मार्गदर्शन के लिए शुक्रिया

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 26, 2018 at 5:19pm

आदरणीय तेजवीर जी सादर नमन सह आभार

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on November 15, 2018 at 8:31am

आदरणीय राणा जी बढ़िया मुक्तक लिखने के लिए बहुत बहुत बधाई

Comment by Samar kabeer on November 14, 2018 at 12:01pm

जनाब सतविन्द्र कुमार जी आदाब,मुक्तक का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

शिल्प और गेयता पर अभी आपको समय देना होगा ।

Comment by TEJ VEER SINGH on November 13, 2018 at 10:54am

हार्दिक बधाई आदरणीय सतविंदर जी।बेहतरीन मुक्तक।

गुल ये गर गुलजार है सब आपके सदके
जिंदगी में प्यार है सब आप के सदके
आप ने थामी जो उँगली चल पड़े हैं हम 
जीत है या हार है सब आपके सदके।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service