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हम देखते ही रह गए दिल का मकाँ जलता हुआ

2212 2212 2212 2212

आसां कहाँ यह इश्क था मत पूछिए क्या क्या हुआ ।
हम देखते ही रह गए दिल का मकाँ  जलता हुआ ।।

हैरान है पूरा नगर कुछ तो है तेरी भी ख़ता ।
आखिर मुहब्बत पर तेरी क्यों आजकल पहरा हुआ ।।

पूरी कसक तो रह गयी इस तिश्नगी के दौर में ।
लौटा तेरी महफ़िल से वो फिर हाथ को मलता हुआ ।।

दरिया से मिलने की तमन्ना खींच लायेगी उसे ।
बेशक़ समंदर आएगा साहिल तलक  हंसता हुआ ।।

मुमकिन कहाँ है जख्म गिन पाना नये हालात में ।
घायल मिला है वह मुसाफ़िर वक्त का मारा हुआ ।।

यूँ ही ख़फ़ा क्यूँ हो गए किसने कहा कुछ आपको ।
क्यों मुस्कुराना आपका बेइंतिहा महँगा हुआ ।।

जब आसमाँ से चाँद उतरा था मेरे घर दफ़अतन ।
इस शह्र में इस बात का भी मुख़्तलिफ़ चर्चा हुआ ।।

जब सर उठाने हम चले खींचे गये तब पांव ये ।
उनको गवारा था कहाँ देखें हमें उठता हुआ ।।

अब इस कफ़स के दायरे से खुद को तू आज़ाद कर।
कहता गया मुझसे परिंदा फिर कोई उड़ता हुआ ।।

           --नवीन मणि त्रिपाठी
           मौलिक अप्रकाशित










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Comment by Naveen Mani Tripathi on October 28, 2018 at 10:41pm

आ0 बसंत कुमार शर्मा साहब हार्दिक आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on October 28, 2018 at 10:40pm

आ0 तेजवीर सिंह साहब तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by Naveen Mani Tripathi on October 28, 2018 at 10:39pm

आ0 राज नावादवी साहब तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by Naveen Mani Tripathi on October 28, 2018 at 10:38pm

आ0 कबीर सर सादर नमन के साथ आभार ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on October 28, 2018 at 9:19pm

आदरणीय नवीन जी सादर नमस्कार, आनंद आ गया , बहुत शानदार गजल हुई है, बधाई आपको 

Comment by Samar kabeer on October 28, 2018 at 5:35pm

जनाब नवीन जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by राज़ नवादवी on October 28, 2018 at 11:49am

आदरणीय नवीन मणि जी, सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति के दिल दाद के साथ मुबारकबाद. सादर 

Comment by TEJ VEER SINGH on October 27, 2018 at 10:40pm

हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी।बेहतरीन गज़ल।

खींचा गया है पाँव तब जब उठाये हम कभी ।
उनको गवारा था कहाँ देखें हमें उठता हुआ ।।

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