For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुझे विरासत में मिलीं
कुछ हथौड़ियाँ
कुछ छेनियाँ
मिला थोड़ा-सा धैर्य
कुछ साहस
थोड़ा-सा हुनर

मैं तराशने लगा
निर्जीव पत्थरों को

बना दिया
सुंदर-सुंदर मूर्तियाँ
जो कई अर्थों में
श्रेष्ठ हैं
ईश्वर द्वारा बनायी गयीं
सजीव मूर्तियों से
जिन्हें नहीं पता रिश्तों की मर्यादा
नही कर पातीं ये भेद
दूधमुँही बच्चियों, युवतियों और वृद्ध महिलाओं में

काश
एक अदद कलम
मुझे मिली होती
विरासत में

मैं होता
एक न्यायाधीश
लिखता निर्विघ्न फैसला
उन बलात्कारियों का
और तोड़ देता निब को

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 1074

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 25, 2018 at 10:33pm

सराहना हेतु दिल से आभार आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 25, 2018 at 10:09pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी, आपसे प्रतिक्रिया पाकर कविता सार्थक हुई, बहुत बात आभार।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 25, 2018 at 10:08pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी, उत्साहवर्धन करती आपकी प्रतिक्रिया हेतु बहुत  आभार। 

Comment by Shlesh Chandrakar on October 25, 2018 at 8:41pm

बहुत खूब वाह वाह


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 25, 2018 at 7:06pm

आदरणीय जनाब समर कबीर साहब, सादर प्रणाम, आपको कविता पसंद आयी, लेखन सफल हुआ, उर्दू शब्दों के बारे जानकारी अल्प है इसलिए गलती हुई, मायनों के स्थान पर अर्थों लिखना क्या उचित होगा ? सुझाव दें तो मैं पोस्ट एडिट कर लेता हूँ ।

Comment by Samar kabeer on October 25, 2018 at 3:58pm

जनाब गणेश जी "बाग़ी" साहिब आदाब,बहुत उम्दाअतुकान्त कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'  जो कई मायनों में'

इस पंक्ति में 'मायनों' कोई शब्द ही नहीं है,सहीह शब्द है "मा'ना" और इसका बहुवचन है "मआनी" देखियेगा ।

Comment by Ram Ashery on October 25, 2018 at 3:15pm

माननीय बागी जी आपको बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो इस सुंदर अभिव्यकित के लिए 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 25, 2018 at 2:28pm

समसामयिक ज्वलंत मुद्दों और स्व-चिंतन पर बेहतरीन विचारोत्तेजक सृजन हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब इंजी. गणेश जी बाग़ी साहिब। निर्जीव मूर्तियों से कमतर सजीव पत्थर-दिल वाले आपराधिक प्रवृत्ति के नर-मानव पर बेहतरीन शब्द-बाण।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 25, 2018 at 12:34pm

वाह आदरणीय बहुत ही सार्थक भावपूर्ण कविता का सृजन है..

Comment by TEJ VEER SINGH on October 25, 2018 at 9:07am

हार्दिक बधाई आदरणीय गणेश जी बागी साहब जी।बेहतरीन कविता।

काश
एक अदद कलम
मुझे मिली होती 
विरासत में

मैं होता
एक न्यायाधीश
लिखता निर्विघ्न फैसला
उन बलात्कारियों का
और तोड़ देता निब को

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
45 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
" आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
47 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
50 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय प्रेम चंद गुप्ता जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
52 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
55 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
57 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
59 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और दाद-ओ-तहसीन से नवाज़ने के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
59 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, सबसे पहले ग़ज़ल पोस्ट करने व सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल 2122 1212 22..इश्क क्या चीज है दुआ क्या हैंहम नहीं जानते अदा क्या है..पूछ मत हाल क्यों छिपाता…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई अमरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और सुझाव के लिए आभार।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन  के लिए आभार।"
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service