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एक लम्हा ....

मेरे लिबास पर लगा
सुर्ख़ निशान 

अपनी आतिश से
तारीक में बीते
लम्हों की गरमी को
ज़िंदा रखे था

मैंने


उस निशाँन को
मिटाने की
कोशिश भी नहीं की


जाने
वो कौन सा यकीन था
जो हदों को तोड़ गया
जाने कब
मैं किसी में
और कोई मुझमें
मेरा बनकर
सदियों के लिए
मेरा हो गया

एक लम्हा
रूह बनकर
रूह में कहीं
सो गया

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 634

Comment

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 18, 2018 at 5:43pm

बेहतरीन प्रस्तुति 

Comment by narendrasinh chauhan on July 18, 2018 at 5:05pm

खूब सुंदर रचना  पर हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील जी

Comment by Mohammed Arif on July 18, 2018 at 1:28pm

एक लम्हा जो तेरा हुआ

एक लम्हा जो मेरा हुआ

कुछ तुझको दे गया

कुछ मुझको दे गया

बहुत कुछ जीने को दे गया

जाने अब उसकी आस है

हरदम रहती बस! प्यास है

अजब लम्हों का ताना-बाना होता है

जो बुनता रहता है कभी ख्व़ावों को

जगाता है हसीन रातों में

                                       सुंदर पेशकश पर हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी ।

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