मापनी - 2122 2122 2122
आपसे इतनी मुहब्बत हो गई है
लोग कहते हैं कि आफत हो गई है
नींद मेरी हो न पायी थी मुकम्मल
फिर कोई मीठी शरारत हो गई है
ढूँढता है रोज मिलने का बहाना
आपकी इस दिल को’ आदत हो गई है
शुक्रिया जो आप मेरे घर पधारे
रौशनी में और बर्कत हो गई है
सख्त पहरे हो गए राहों में जब से
और भी मजबूत चाहत हो गई है
दिल को देकर दर्द ही पाया है लेकिन
जिन्दगी अब खूबसूरत हो गई है
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
दिल से शुक्रिया आदरणीय gumnaam pithoragarhi जी आपका
दिल से शुक्रिया आदरणीय TEJ VEER SINGH जी आपका
दिल से शुक्रिया आदरणीया Neelam Upadhyaya जी आपका
दिल से शुक्रिया आदरणीय Shyam Narain Verma जी आपका
वाह क्या खूब ग़ज़ल कही है वाह.......
हार्दिक बधाई आदरणीय बसंत कुमार जी। बेहतरीन गज़ल।
सामना जब से किया है मुश्किलों का
और भी मजबूत चाहत हो गई है
"ढूँढता हर रोज मिलने का बहाना
आपकी इस दिल को’ आदत हो गई है"
बहुत ही सुंदर गजल के लिए मुबारकबाद आदरणीय बसंत कुमार जी ।
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई! सादर |
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी ह्रदय से आभार आपका
दिल लिया है या दिया है कुछ भी कहिये
जिन्दगी अब खूबसूरत हो गई है
बहुत खूब.....कोटि कोटि बधाई
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