For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्या वो लौटा सकता था ?

बड़े ही तैश में आकर'
उसने मेरे खत लौटा दिये...

वो अँगूठी !

वो अँगूठी भी उतार फेंकी-
जिसे आजीवन,
पास रखने का वादा किया था उसने!

कभी ईश्वर को साक्षी मानकर-
एक काला धागा,
पहनाया था उसने मुझे-

"अब तुम मेरी हो चुकी हो "
फिर ये कहकर,
बाहों मे भर लिया था...

आज,फर्श पर कुछ मोती-
औंधे पड़े हैं....
उस काले धागे के साथ !

एक तस्वीर थी जो,
साथ में -
आज उसे भी,
माँग बैठा था वो....

बड़ी सफाई से-
दो टुकड़े किये थे उसने,
मगर फिर भी,
उसके कंधे पर मेरा हाथ रह गया !

मेरे अश्कों का-
ज़रा सा भी,
असर ना हुआ उस पर...
बड़ी हैरान रह गयी -
उसका ये रूप देखकर !

शायद, किसी जल्दी में था...
बार-बार उसकी नज़र,
घड़ी पर जो,जा रही थी !

फिर अगले ही पल -
उसने अपनी कलाई से घड़ी निकाली,
और ये कहते हुए मेज पर रख दी, कि -

"तुम्हारी हर चीज लौटा दी है मैंने...."
वो खत...
वो अँगूठी...
तुम्हारी तस्वीर...
और ये घड़ी !!

अभी भी कुछ बाकी हो तो ...
(झटके में जेब से बटुआ निकालकर,
नोट गिनने लगा था वो )

कितना आसान था उसके लिए ये कह देना, कि
" तुम्हारी हर चीज लौटा दी मैंने "

मैं स्तब्ध सी रह गयी...
बहुत शोर था अन्दर -
पर कुछ न कह सकी !!

इस एक पल में,
मेरी जिंदगी भर का-
जो सुकून छिन गया था....
क्या वो लौटा सकता था ?

मेरी आँखों की चमक,
मेरे होठों की हँसी....
क्या वो लौटा सकता था ?

उन चंद नोटों से,
मेरी खोयी आश....
क्या वो लौटा सकता था ?

नींद*
जो मेरी आँखों से,
रूठ कर चली गयी थी....
क्या वो लौटा सकता था ?

( मौलिक  व अप्रकाशित)

Views: 755

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रक्षिता सिंह on June 12, 2018 at 10:26am

आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार,आपकी शिर्कत और सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 12, 2018 at 5:45am

एक बेहतरीन रचना के लिए कोटि कोटि नमन ....

Comment by रक्षिता सिंह on June 11, 2018 at 11:35pm

आदरणीय सुशील जी नमस्कार,

आपकी शिर्कत और हौसला  अफजाई  के लिए बहुत बहुत शुक्रिया । आपको कविता पसंद आयी....मेरा लिखना  सार्थक हुआ।

Comment by रक्षिता सिंह on June 11, 2018 at 11:31pm

आदरणीय तेजवीर जी नमस्कार , बहुत बहुत शुक्रिया ...

Comment by रक्षिता सिंह on June 11, 2018 at 11:28pm

आदरणीया नीलम जी नमस्कार,

आपकी शिर्कत और हौसला अफजाई  के लिए  शुक्रिया ।

Comment by रक्षिता सिंह on June 11, 2018 at 11:25pm

आदरणीय महेन्द्र कुमार जी नमस्कार, 

हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Mahendra Kumar on June 11, 2018 at 7:12pm

आदरणीय रक्षिता जी, हृदयस्पर्शी लगी आपकी कविता. इस उत्तम सृजन पर मेरी तरफ़ से भी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.

//मेरी खोयी आस...//

सादर.

Comment by Neelam Upadhyaya on June 11, 2018 at 2:24pm

आदरणीया रक्षिता सिंह जी, नमस्कार। बहुत ही बढ़िया मन को छू लेने वाली कविता । प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ।

 

Comment by Sushil Sarna on June 11, 2018 at 12:20pm

आदरणीया रक्षिता सिंह जी प्रस्तुत रचना में आपने बड़ी ही सुंदरता से अंतर्मन के भावों का निरूपण किया है। शब्दों में टीस झलकती है , एक अव्यक्त वेदना रचना में मुखरित हो रही है। इस उत्तम प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।

Comment by TEJ VEER SINGH on June 11, 2018 at 11:21am

हार्दिक बधाई आदरणीय रक्षिता सिंह जी। बेहतरीन हृदय स्पर्शी कविता।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेद्र इन्सान जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई।  मतला प्रभावी हुआ है. अलबत्ता,…"
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ जी आपके ज्ञान प्रकाश से मेरा सृजन समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
17 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
21 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का…See More
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल - सीसा टूटल रउआ पाछा // --सौरभ

२२ २२ २२ २२  आपन पहिले नाता पाछानाहक गइनीं उनका पाछा  का दइबा का आङन मीलल राहू-केतू आगा-पाछा  कवना…See More
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो…"
22 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"एकदम अलग अंदाज़ में धामी सर कमाल की रचना हुई है बहुत ख़ूब बधाई बस महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के लाइन…"
yesterday
surender insan posted a blog post

जो समझता रहा कि है रब वो।

2122 1212 221देख लो महज़ ख़ाक है अब वो। जो समझता रहा कि है रब वो।।2हो जरूरत तो खोलता लब वो। बात करता…See More
yesterday
surender insan commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। अलग ही रदीफ़ पर शानदार मतले के साथ बेहतरीन गजल हुई है।  बधाई…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान देने तथा अपने अमूल्य सुझाव से मार्गदर्शन के लिए हार्दिक…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"गंगा-स्नान की मूल अवधारणा को सस्वर करती कुण्डलिया छंद में निबद्ध रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service