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वाह... जिंदगी भर की पूंजी डूब गई , वहाँ महीने का हिसाब क्या करना । " पूरी रचना का सार समेट लिया । बहुत सुंदर।
बहुत ही बेहतरीन लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय कुमार गौरव जी ।
आदरणीय गौरव जी इस रचना की अंतिम पंक्तियाँ तो दिमाग में घूंम रही हैं। सम्बाद शैली मंत्र मुग्ध करने वाली है कभी कभार ऐसी रचा पढ़ने को मिलती है।।।।शिल्प की जानकारी मुझे ज्यादा नहीं है आपकी बात मुझ तक पहुँची अनद आया।।रचना पर हार्दिक बधाई सादर
जनाब कुमार गौरव जी आदाब,बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय कुमार गौरव जी।क्या गज़ब की लघुकथा लिखी है।वाह, बेहतरीन, मज़ा आगया। लेखन शैली एवम संवाद लाज़वाब। सबसे बड़ी बात, यथार्थ को छूती हुई।पढ़ते समय ऐसा लगा, जैसे सभी पात्र मेरे सामने ही वार्तालाप कर रहे हों।बहुत खूब।
ग्रामीण पृष्ठभूमि में कथानक के अनुसार पात्रों और संवादों सहित बढ़िया प्रवाहमय भावपूर्ण रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब कुमार गौरव साहिब। दलन के कुछ संवाद तो बहुत ही बढ़िया बन गए हैं। बढ़िया अंतिम पंक्ति के साथ बढ़िया शीर्षक भी।
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