For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

छुटपुट अंधेरा फैलने लगा था । दलन ने बाहर साइकिल खड़ी और आकर अम्मा के पैर छुए "कार्ड छप गया भौजी तो भगवान के बाद सबसे पहला आपको अर्पण करने आया हूं । "
"जय हो , बाल बच्चा सुखी रहे। अरे हाँ बिटिया ने झुमके के लिए कहा था। बनवा लाये हैं, ले जाओ दिखा देना । एकदम डिट्टो सेम डिजाइन है जैसा रमेश की बहू के लिए बनवाया था। "
अम्मा कार्ड को निहारती हर्ष ने भर गई "अरे बहू आलमारी में जेवरवाला बटुआ होगा नया सा, वो लाकर देना जरा। "
दलन वही जमीन पर पालथी मार के बैठ गया।
अम्मा की बतकही शुरू हो गई "और बता दूध देने क्यों नहीं आ रहा आजकल , लगन के बाद कब से आ रहा है वापस दूध देने। पैकेट वाले दूध में तो एकदम स्वाद नहीं आता। एक दिन मैं जरा मायके क्या गई, तूने दूध देना ही बंद कर दिया । "
दलन के चेहरे पर उदासी के बादल छा गये " बस अम्मा वो काम छोड़ दिया। जस नहीं है उसमें । "
"अरे यही दूध बेच के इतना धन संपदा बनाये हो, जस कैसे नहीं है। "
वह कोई सफाई देता उससे पहले बहू जेवर का डब्बा लेकर आ गई। उसने मुँह फेर लिया जबतक बहू सामने रही उसने नजरें झुकाये रखी।
अम्मा की अनुभवी नजरों में बात छुप न सकी । बहू के अंदर जाते ही दलन के माथे पर हाथ रख दिया "अम्मा को न बताएगा क्या हुआ ?"
फफक के रो पड़ा दलन " बिटिया बहूरानी जैसे झुमका की बनवाने की बात की थी सो हमने पूछ लिया झुमका कहाँ से बनवाया बहुत सुंदर है । "
अम्मा उलझ गई "तो ?"
"तो बहूरानी हमें बोली दूध देने आते हो भगोने में दूध डालो और चलते बनो, ज्यादा नजर दौड़ाये तो अंखिये फोड़ देंगे। बताइए रमेश बबुआ को इहे साइकिल पर केतना घुमाया ओकी बहू हमको ऐसे बोली। घर घर के चूल्हे तक पहुंच रही है लेकिन हमेशा लंगोट इतना कस के बाँधें है कि गर्दन पर ओतना कस दें तो आदमी का रामनाम सत् हो जाए।"
अम्मा ने लीपापोती करनी चाही "अरे नहीं आजकल जुग जमाना खराब है उसी तरह तुमको भी समझ ली । नई आई है, उसको पता नहीं तुम कितने साल से दूध देते हो यहाँ । "
दलन आँखें पोंछे "उनतीस साल हो जाएंगे अगहन में ,तब हाफपैंट में आते थे अब तो देखिए बेटी का ब्याह लग गया है ।"
अम्मा अतीत में पहुंच गई "हाँ याद है सब , सच सच बता रामकृष्ण की बेटी को भगाने में तुम्हारा भी हाथ था न? तूही चिट्ठी पहुंचाता था उसको। "
"उसने कान पकड़े बेटा किरिया अम्मा हम सिर्फ एकबार पहुंचाये थे दूटकिया के लालच में और वापस में जब छौरी जबाव भेजी थी तब्बे मना कर दिए थे और रामकृष्ण चाचा को बता भी दिए थे। लेकिन प्रेम तो पानी के तरह होता है न ,रास्ता ढूंढ़िए लेता है। "
अम्मा से प्यार से धकेला "चल झूठ्ठा , तू बड़ा शरीफ । जा रात होने लगा है । और सुबह टाइम से दूध पहुंचा देना।"

खड़े होते दलन के दांत भींच गये " न अम्मा कहा न, उसमें जस नहीं है छोड़ दिया वह काम। अभी देखा न, आपने भी कह ही दी रामकृष्ण के बेटी वाली बात ।"

साइकिल पर चढ़ते दलन को रोकने के लिए अम्मा ने बह्मास्त्र फेंका "अच्छा महीने का हिसाब लेने तो आएगा कि नहीं ।"
दलन बिना पीठ घुमाए साइकिल बढ़ा दिए " रहने दो अम्मा जहाँ जिंदगी भर की पूंजी डूब गई , वहाँ महीने का हिसाब क्या करना । "
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 817

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahila on May 9, 2018 at 12:11am

वाह... जिंदगी भर की पूंजी डूब गई , वहाँ महीने का हिसाब क्या करना । " पूरी रचना का सार समेट लिया । बहुत सुंदर।

Comment by Neelam Upadhyaya on May 8, 2018 at 3:00pm

बहुत ही बेहतरीन लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय कुमार गौरव जी ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 7, 2018 at 12:15am

आदरणीय गौरव जी  इस रचना की अंतिम पंक्तियाँ तो दिमाग में घूंम रही हैं। सम्बाद शैली मंत्र मुग्ध करने वाली है  कभी कभार ऐसी रचा पढ़ने को मिलती है।।।।शिल्प की जानकारी मुझे ज्यादा नहीं है आपकी बात मुझ तक पहुँची अनद आया।।रचना पर हार्दिक बधाई सादर

Comment by Samar kabeer on May 6, 2018 at 2:00pm

जनाब कुमार गौरव जी आदाब,बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on May 6, 2018 at 11:03am

हार्दिक बधाई आदरणीय कुमार गौरव जी।क्या गज़ब की लघुकथा लिखी है।वाह, बेहतरीन, मज़ा आगया। लेखन शैली एवम संवाद लाज़वाब। सबसे बड़ी बात, यथार्थ को छूती हुई।पढ़ते समय ऐसा लगा, जैसे सभी पात्र मेरे सामने ही वार्तालाप कर रहे हों।बहुत खूब।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 6, 2018 at 7:09am

ग्रामीण पृष्ठभूमि में कथानक के अनुसार पात्रों और संवादों सहित बढ़िया प्रवाहमय भावपूर्ण रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब कुमार गौरव साहिब। दलन के कुछ संवाद तो बहुत ही बढ़िया बन गए हैं।  बढ़िया अंतिम पंक्ति के साथ बढ़िया शीर्षक भी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी नमस्कार बहुत- बहुत शुक्रिया आपका आपने वक़्त निकाला विशेष बधाई के लिए भी…"
31 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय शिज्जू भाई, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकार करें. सादर "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी, बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय नीलेश भाई, क्या ही खूब ग़ज़ल कही है. वाह. शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. बाकी अभ्यास…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें. गुनीजनों की सलाह पर अवश्य…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"धन्यवाद आ. गुरप्रीत भाई. आपसे शिक़ायत यह है कि हमें आपकी ग़ज़लें पढ़ने को नहीं मिल रही…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. समर सर की इस्लाह से तक़ाबुल ए रदीफ़ दूर हो गया है.शेर अब यूँ पढ़ा जाए .कड़कना बर्क़ का चर्बा…"
3 hours ago
Gurpreet Singh jammu replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"वाह वाह वाह आदरणीय निलेश सर, बहुत समय बाद आपकी अपने अंदाज़ वाली ग़ज़ल पढ़ने को मिली। सारी ग़ज़ल…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. लक्ष्मण जी,वैसे तो आ. तिलकराज सर ने विस्तार से बातें लिखीं हैं फिर भी मैं थोड़ी गुस्ताखी करना…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी जी"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service