For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

संडे छुट्टी को कैश करने के लिए शनिवार को ही निकल लिए । प्रोग्राम लेट बना इसलिए रिजर्वेशन तो मिला लेकिन आरएसी सीट मिली। कोई खास परेशानी की बात नहीं थी दिल्ली से मथुरा है ही कितनी दूर। सहयात्री गोरा चिट्टा कश्मीरी लड़का था। जो हाथ में डायरी और कलम लिए सोच में डूबा था।
"कश्मीरी हो बॉस।"
"हाँ ",उसका जबाव बहुत संक्षिप्त था।
"यहाँ कब से हो ", बेधड़क उसके पास गया तो उसने खड़े होकर बैठने के लिए जगह बनाई।
"दस बारह साल हो गये जब अम्मी अब्बू नहीं रहे तभी से "
ओह् .... थोड़ी देर हम दोनों चुप रहे । फिर धीरे से नजरें चुराते हुए पूछा "जिहादियों ने ?"
एक फीकी सी हँसी हँसा " क्या मालूम, सब तो एक ही लिबास पहनते हैं क्या जिहादी, क्या फौजी। तब छोटा सा तो था , समझ ही कितनी थी। "

उसकी आवाज में जो ठंडक थी वह नसों को जमा देने के लिए काफी था । माहौल बदलने के ख्याल से कहें या लोअर मिडिल क्लास की फितरत, पता नहीं कहाँ से मन में सवाल उपजा " और खाना खुराक कैसे चलता है। "
" एक चचा है सउदी में, वही कुछ भेजते रहते हैं और कुछ लिख पढ़ लेता हूं। ", उसने खुली डायरी की ओर इशारा किया।
क्या लिखता है देखने के लिए डायरी उठाई तो देखा, दो पंक्तियां लिखी थी - आकाश ने चुपके से धरती के कान में कुछ कहा और धरती धानी चुनर ओढ़कर शरमाते हुए भाग खड़ी हुई ।
आगे पीछे कुछ समझ नहीं आया तो खिंचाई करने की सोची "तब तुम वहीं थे क्या ?"
वो पहली बार नार्मली मुस्कुराया था शायद " ये क्षितिज की बात है।"
उसकी बातों की गहराई में डूबने का मेरा कोई इरादा न था " भाई ये प्यार मोहब्बत की फिलासफी लिखने से कितने पैसे मिल जाते होंगे। करेंट अफेयर्स पर लिखो तो ठीक ठाक पैसे मिल जाएंगे। "
उसने मुस्कुराहट यथावत रखने की कोशिश की लेकिन मुट्ठियां भींच ली " नहीं मैं तो मोहब्बत ही लिखूंगा ?"
दुनियादारी का ज्ञान देना बुद्धिजीवियों का सबसे जरुरी काम है , हमने भी फर्ज निभाया "इससे तो चूल्हा नहीं चलनेवाला , कुछ और काम सोच ले।"
अबकी वह खुलकर हँसा "सोच रखा है रोज एक देग बिरयानी लेकर सीपी में खड़ा हो जाऊंगा तो रोजी रोटी का संकट कभी नहीं होगा।"
बिरयानी शब्द सुनकर छठी इन्द्री सक्रिय हो गई । मैं धीरे से उठ खड़ा हुआ। अब तक जितना मासूम दिखता था उसके उलट बेरहम था " डिब्बे में हैं डिनर में आपको भी खिलाऊंगा फिर बताना , कैसी है मेरी रेसिपी "

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 493

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 27, 2018 at 4:32pm

बहुत सुन्दर ढंग से बात कही है...बधाई आदरणीय

Comment by Samar kabeer on April 25, 2018 at 2:29pm

जनाब कुमार गौरव जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on April 25, 2018 at 1:00pm

हार्दिक बधाई आदरणीय कुमार गौरव जी।बेहतरीन प्रस्तुति।आज की ज्वल्लंत समस्या को आइने में उतारती लघुकथा।

Comment by Neelam Upadhyaya on April 25, 2018 at 11:19am

अक्सर ऐसा होता है की हम सामने वाले को कमतर आंक लेते हैं । अच्छे विषयवस्तु पर रची गयी लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें कुमार गौरव जी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
1 minute ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.लक्ष्मण सिंह मुसाफिर साहब,  अच्छी ग़ज़ल हुई, और बेहतर निखार सकते आप । लेकिन  आ.श्री…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.मिथिलेश वामनकर साहब,  अतिशय आभार आपका, प्रोत्साहन हेतु !"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"देर आयद दुरुस्त आयद,  आ.नीलेश नूर साहब,  मुशायर की रौनक  लौट आयी। बहुत अच्छी ग़ज़ल…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
" ,आ, नीलेशजी कुल मिलाकर बहुत बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई,  जनाब!"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।  गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। भाई तिलकराज जी द्वार…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए आभार।…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तितलियों पर अपने खूब पकड़ा है। इस पर मेरा ध्यान नहीं गया। "
4 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी नमस्कार बहुत- बहुत शुक्रिया आपका आपने वक़्त निकाला विशेष बधाई के लिए भी…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर "
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय शिज्जू भाई, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर "
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service