For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हमे साँचे में ढाला जा रहा है

1222 1222 122
बड़ी  मुद्दत   से  टाला  जा  रहा  है ।
किसी  का  जुल्म  पाला  जा  रहा है ।। 1

मुझे   मालूम  है  वह   बेख़ता   थी ।
किया बेशक  हलाला  जा  रहा  है ।।2

लगीं हैं बोलियां फिर जिस्म पर क्यूँ ।
यहाँ  सिक्का उछाला  जा  रहा  है ।।3

कहीं  मैं   खो  न  जाऊं  तीरगी  में ।
मेरे  घर   से  उजाला  जा  रहा  है ।।4

उसे   महबूब  की आहट मिली क्या  ।
चमन  को  फिर खंगाला जा  रहा है ।।5

नशे में है कहाँ वह रिन्द अब तक ।
कदम उससे  संभाला  जा  रहा है ।।6

तुम्हारे  इश्क   में   लुटता  रहा   मैं ।
दिवाला  फिर निकाला जा  रहा  है ।।7

करेगा काम क्यों वह  नौजवां  अब ।
उदर तक तो निवाला  जा  रहा है ।।8

उसे  इज्जत  मिलेगी   कौन  जाने ।
मेरा   लेकर  हवाला  जा  रहा   है ।।9

रहूँ  खामोश  अक्सर  दर्द  सहकर ।
मुझे  सांचे  में  ढाला  जा  रहा  है ।।10

बला  का  खूब  सूरत  चाँद  होगा ।।
जिसे   लेने   रिसाला   जा   रहा   है ।।11

          -- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

 

Views: 416

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 3, 2018 at 9:01am

आ. भाई नवीन जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on May 1, 2018 at 12:29pm

आ0 श्याम नारायण वर्मा जी सादर आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on May 1, 2018 at 12:28pm

आ0 तेजवीर सिंह साहब सादर आभार 

Comment by Naveen Mani Tripathi on May 1, 2018 at 12:27pm

आ0 कबीर सर सादर आभार । हलाला वाले शेर को हटा दूंगा सर । 

Comment by TEJ VEER SINGH on May 1, 2018 at 9:30am

हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी। बेहतरीन गज़ल।

रहूँ  खामोश  अक्सर  दर्द  सहकर ।
मुझे  सांचे  में  ढाला  जा  रहा  है ।।10

Comment by Samar kabeer on April 30, 2018 at 6:13pm

जनाब नवीन जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल है, बधाई स्वीकार करें ।

दूसरा शैर स्पष्ट नहीं,'हलाला' के बारे में जानकारी हासिल करें,फिर लिखें ।

Comment by Shyam Narain Verma on April 30, 2018 at 1:28pm
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
8 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
13 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
13 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
14 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service