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राज़ की बातें (लघुकथा)

 "आज कुछ बदलाव सा लग रहा है हर बात में, क्या बात है? सब कुछ मेरी पसंद का!"


"ये मत सोचना जानूं कि देश के बदलाव के साथ ख़ुद को बदल रही हूं!  दरअसल तुम्हारी गोली मुझे अंदर तक घायल कर गई, कल रात!"


इतना कह कर पत्नि ने शरमाते हुए पति की लिखी नई ग़ज़ल वाली पर्ची उसके सीने वाली बायीं जेब में डाल दी!


(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 3, 2018 at 5:15pm

रचना के अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब लक्ष्मण धामी ''मुसाफिर'' साहिब, जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब और मुहतरमा नीलम उपाध्याय  साहिबा।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 3, 2018 at 8:46am

क्या कहने....कोटि कोटि बधाई आदरणीय .

Comment by Neelam Upadhyaya on May 1, 2018 at 4:01pm

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, नमस्कार।  बहुत ही संक्षिप्त, अर्थपूर्ण व सुन्दर लघुकथा।  बधाई  स्वीकार करें। 

Comment by Mohammed Arif on May 1, 2018 at 7:45am

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,

                              बहुत ही संक्षिप्त किंतु सारगर्भित लघुकथा । घायल गोली से ही नहीं दिगर और चीज़ों से भी हुआ जा सकता है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 30, 2018 at 11:07pm

 बहुत बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए।

Comment by Samar kabeer on April 30, 2018 at 6:07pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बढ़िया लघुकथा, बधाई स्वीकार करें ।

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