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परिवर्तन या अपवर्तन (लघुकथा)

"बेटा, फल के आने से वृक्ष तक झुक जाते हैं, वर्षा के समय बादल झुक जाते हैं, संपत्ति के समय सज्जन भी नम्र हो जाते हैं। परोपकारियों का स्वभाव ही ऐसा होता है! कह गए अपने तुलसीदास जी, समझे!" महाविद्यालय की कैंटीन में राजनीतिक गुफ़्तगु करते छात्र-समूह में से एक ने दूसरे की बात सुनकर हिदायत देने की कोशिश कर डाली!


"अबे, यह सब क़िताबों में ही रहने दे और आज की दुनिया की बात कर!" दूसरे छात्र ने चाट का दोना वेस्टबिन में डालते हुए कहा - "फल आने के अहंकार से संस्कार झुक जाते हैं, धनवर्षा के समय वे झुक जाते हैं, संपत्ति के समय सज्जन रूपी संस्कारी भी दुर्जन, शोषक और आतंकी से हो जाते हैं! धन बढ़ाने के लिए परोपकारियों का आडंबर-भाव ही ऐसा है!"


(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by babitagupta on May 1, 2018 at 2:01pm

सरजी,आज की युवा पीढ़ी ही क्या ,सभी उस संक्रमण काल से गुजर रहे हैं जहां ना तो वो विरासत में मिले संस्कारों को सही ढंग से अपना पा रहे हैं और ना ही पूरु तरह से आधुनिक माहौल में ढल पा रहे.लघु कथा द्वारा बहुत ही सटीक कटाछ किया हैं.आभार.

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 30, 2018 at 11:08pm

अपने विचार साझा करते हुए मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब और जनाब नीलेश शेव्गांवकर साहिब।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 29, 2018 at 9:34am

ग़ज़ब की लघुकथा हुई है.. लगभग ऐसे ही वाकये का संस्मरण कभी पेश करूँगा मैं भी जो छात्र जीवन में मैंने अनुभव किया है.. मैं भी उस दूसरे छात्र की तरह था कही...
रचना से अधिक बधाई शीर्षक के लिए देना चाहूँगा आप को..
ढेरों दाद 
सादर 

Comment by Mohammed Arif on April 29, 2018 at 7:52am

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,

                                      बहुत ही कटाक्षपूर्ण लघुकथा । आज का युग संक्रमण-काल का दौर है । सबकुछ विपरीत हो रहा है । सारी उक्तियाँ और किंवदंतियाँ उलट हो गई है । बेहतरीन लघुकथा के लिए दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

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